निजी क्षेत्र की भागीदारी से यूपी में स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े बदलाव की तैयारी

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लखनऊ। प्रदेश में पहले जहां हर बड़ी बीमारी का उपचार राजधानी या अन्य बड़े शहरों में ही होता था वहीं अब कई बड़े ऑपरेशन व इलाज जनपद या मण्डल पर भी मुमकिन हो पा रहे हैं। इसमें आयुष्यमान योजना का काफी योगदान है। हमने प्रगति की है लेकिन अभी और काम करना होगा। यह कहना है प्रदेश के उप मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक का। उप मुख्यमंत्री एक कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यशाला प्रदेश में स्वास्थ्य सेवा की उत्कृष्टता के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी।

उन्होंने कहा कि हम हर प्रदेशवासी की बीमारी के हिसाब से उसका इलाज और उससे संबंधित निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को मिसाल के रूप में स्थापित करने के लिए हमें ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में मध्यम व तृतीय स्तर की सेवा देने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा। उन्होंने कहा कि आज यह एक अच्छा संयोग है कि यहां स्वास्थ्य विभाग और निजी क्षेत्र के कई बड़े समूह उपस्थित हैं। मुझे उम्मीद है कि आज के इस मंथन के बाद निजी क्षेत्र की भूमिका आसान व प्रभावी होगी।

उन्होंने कहा कि प्रदेश में हर एक जिला में एक मेडिकल कॉलेज स्थापित हो रहा है। यहां मेडिकल, नर्सिंग और पैरामेडिकल कालेजों में निवेशकों के लिए अपार संभावनाएं हैं। साथ ही दवा उत्पादन, डायग्नोसिस, डायलिसिस और चिकित्सालयों के निर्माण आदि में निवेश की भी बड़ी संभावना है। साथ ही पीपीपी मॉडल पर कई शहरों में चिकित्सालय और निजी संस्थाओं के माध्यम से राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को खोलने की योजना है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 भी स्वास्थ्य सेवा को मानव अधिकार के रूप में मान्यता देती है। इसका उद्देश्य सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज बढ़ाना है। इसके लिए वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत सरकारी स्वास्थ्य व्यय पर निर्धारित करना होगा। इसके लिए ऐसी रणनीति बनानी होगी जिससे निजी प्रदाताओं से सस्ते व टिकाऊ स्वास्थ्य सेवाएं खरीदी जा सकें। खासकर जहां गैर-सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों की उपलब्धता है।

स्वास्थ्य राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह ने कहा कि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण विषय है। इसका सीधा संबंध है जीवन की गुणवत्ता से है। इस क्रम में प्रदेश की बड़ी जनसंख्या चिकित्सा के क्षेत्र में व्यापक निवेश की आवश्यकता को जन्म देती है। इस लिहाज से आज की यह कार्यशाला बहुत महत्वपूर्ण है।

इस मौके पर पार्थ सारथी सेन शर्मा, प्रमुख सचिव, चिकित्सा एवं परिवार कल्याण ने कहा कि वर्ष 2018 में आयुष्मान भारत योजना शुरू करने के पीछे दो प्रमुख उद्देश्य थे। पहला व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल करने के लिए 1.5 लाख स्वास्थ्य उप केंद्रों व प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों को स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों में परिवर्तित करना। दूसरा सरकार की ओर से वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजना। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) के जरिए देश में करीब 10.07 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों को अस्पताल में भर्ती होने, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल के लिए वित्तीय जोखिम सुरक्षा प्रदान करता है। पीएम-जेएवाई में सामान्य चिकित्सा, सामान्य सर्जरी, आर्थोपेडिक, कैंसर, किडनी, फेफड़े, मूत्र विज्ञान, नेत्र, यकृत, न्यूरोलॉजी आदि की 25 गंभीर समस्याओं के उपचार के लिए पांच लाख रुपए तक की वार्षिक मदद का प्रावधान है। मां या शिशु देखभाल सेवा का लाभ लेने के लिए कोई भी आयुष्मान कार्ड धारक किसी भी सार्वजनिक या सूचीबद्ध निजी अस्पताल में संपर्क कर सकता है।