सावधान ! कहीं गेहूं का आटा सेहत को खराब तो नहीं कर रहा

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पैकेट बंद गेहूं के आटे से बनी हुई रोटियां हमारा पेट तो भर सकती है। किंतु इन में मिलाए जाने वाले घातक केमिकल्स हमारी सेहत के लिए हितकारी नहीं है। इस संदर्भ में डॉ रविंद्र पोरवाल मुख्य चिकित्सक श्रीनाथ आयुर्वेद चिकित्सालय भगवत दास घाट रोड सिविल लाइंस कानपुर ने चौकाने आंख खुलने वाली जानकारी दी है।

सादा भोजन लेकिन हमेशा पेट की समस्याएं : अनेक परिवारों में सात्विक भोजन किया जाता है। हरी सब्जी दाल रायता सलाद भरपूर मात्रा में सेवन करने के बाद भी परिवार के अनेक सदस्यों को पेट की विभिन्न बीमारियां एसिडिटी गैस अपच पेट में भारीपन पेट फूलना जैसी तकलीफ में बनी रहती हैं। इन सब समस्याओं की अनेकों अनेक कारण हो सकते हैं। किंतु पेट संबंधी समस्याओं का एक बड़ा कारण पैकेट बंद गेहूं का आटा है क्योंकि बड़ी-बड़ी कंपनियां मुलायम सफेद और लज्जतदार रोटियां बनाने के लिए गेहूं की बाहरी छिलके और फाइबर को पूरी तरह छानकर बाहर निकाल देते हैं।

अनजाने में होते हैं लीवर और पेट रोगों का शिकार : गेहूं का आटा बिना फाइबर जब सेवन किया जाता है तो यह शरीर की संपूर्ण पाचक प्रणाली और पाचन ग्रंथियां जैसे लिवर पेनक्रियाज इत्यादि के लिए अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करता है। फाइबर विहीन गेहूं के आटे से बनी हुई रोटियां जब इंसान के पेट में अमाशय से आंतों में पहुंचती हैं तो यह आंतों में इकट्ठा होकर आंतों की अंदर की दीवार पर चिपक जाती हैं। आंतो द्वारा उसे नीचे मलाशय तक भेजने के लिए बहुत श्रम करना पड़ता है। जिससे पेट फूलता है और गंदी बदबूदार अधोवायु बनती है। नाभि के आस पास मीठा मीठा दर्द होता है। यही नहीं शौचालय में काफी समय तक बैठने के बावजूद भी पेट साफ नहीं होता है। यह बहुत बड़ा कारण है कि सादा बिना मिर्च मसाले का भोजन करने, चाट जंक फूड, फास्ट फूड से परहेज करने के बावजूद भी हमारी पाचन ग्रंथियां लीवर गॉलब्लैडर पैंक्रियाज और आंते धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं और दीर्घ काल में यह पेट व लीवर की गंभीर बीमारियों का रोगी बना देती हैं। हमें स्वस्थ रहने के लिए लगभग 40 ग्राम फाइबर की जरूरत होती है। यह फाइबर की मात्रा हमें रोटियों हरी पत्तेदार सब्जियों सलाद फल और सूखे मेवों से मिलना चाहिए किंतु बिना फाइबर की गेहूं के आटे से बनी हुई रोटी और हरी पत्तेदार सब्जियों के अभाव में शरीर के अंदर फाइबर की कमी हो जाती है जो भूख ना लगना भोजन का समय पर ना पचना, पेट का भारीपन और पेट फूलना, बवासीर, फिशर कोलाइटिस, आईबीएस आव मरोड़ होना और पेट साफ ना होने जैसी अनेक बीमारियों का कारक बन जाता है।

पौष्टिकता का भी खात्मा : गेहूं के छिलके को बाहर निकाल देने से रोटी तो सफेद और मलाई जैसी स्वादिष्ट और मुलायम बनती है। किंतु गेहूं के दाने के छिलके में मौजूद बड़ी संख्या में पोषक खनिज तत्व व विटामिन गेहूं के आटे का निर्माण करने वाली कंपनी द्वारा आटा निर्माण के समय ही बाहर निकल जाते हैं। साथ ही साथ गेहूं के आटे को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है। ताकि कई सप्ताह तक रखने के बाद भी आटा ना तो बेस्वाद हो ना ही उसमें कीड़े पड़े।

सेहत का खजाना है ताजा आटा : सामान्य रूप से ठंड के दिनों में गेहूं पीसने के दिन से लगभग 4 सप्ताह तक आटा खाने योग्य रहता है। गर्मी और बरसात के दिनों में 2 सप्ताह बाद ही आटा खराब होने लगता है और उसमें कीड़े पड़ने लगते हैं। उसका स्वाद कड़वा होने लगता है। जबकि बड़े-बड़े कंपनियां जो पैकिंग बंद आटे का निर्माण करती हैं, एक्सपायरी डेट सामान्य रूप से 3 महीने बाद की लिखती है। नेचुरोपैथी के सिद्धांतों के अनुसार और पोषण विज्ञानी अनुसंधानकर्ताओं की सलाह के अनुसार हमें ताजा आटा से बनी हुई रोटियां खाना चाहिए।

बंद आंखें खोलिए : जबकि पैकिंग किया गया गेहूं का आटा कई महीने तक खराब नहीं होता क्योंकि रोटियों के साथ हम घातक केमिकल्स बेंजोयल पराक्साइड जिसे फ्लोर इंप्रूवर भी कहां जाता है का भी सेवन करते हैं। चिकित्सा आचार्यों के अनुसार इसकी मात्रा 4 मिलीग्राम से 50 मिलीग्राम के बीच में होनी चाहिए। इससे अधिक मात्रा सेहत के लिए नुकसानदायक होती है लेकिन सफेद और मुलायम रोटी बनाने और पार्टी को महीनों तक कीड़ों व खराब होने से बचाने के लिए गेहूं के आटे में इसकी मात्रा तय सीमा से बहुत अधिक रखी जाती है। जिससे हमारे पाचन तंत्र व शरीर की रक्षा प्रणाली के साथ-साथ शरीर के दूसरे अन्य महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं और हमें अनजाने में ही विभिन्न प्रकार की बीमारियों की सौगात मिल जाती है।