अब निजी क्षेत्र करेगा अफीम की खेती

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ऐक्ट में संशोधन की तैयारी

अफीम की खेती और इससे एलकलाॅएड, कोडीन सल्फेट, कोर्टानाइन, डायोनाइन, माॅर्फीन हाइड्रोक्लोराइड, माॅर्फीन सल्फेट, नार्कोटिन, थिबेइन आदि औषधीय उपयोग के पदार्थों के उत्पादन-निर्यात में निजी क्षेत्र की कंपनियों को उतारने की सरकारी योजना है। जिस पर तेजी से काम चल रहा है।

इस अभूतपूर्व योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय का राजस्व विभाग नार्कोटिक ड्रग्स ऐंड साइकाॅट्राॅपिक सब्सटैंस ऐक्ट (एनडीपीएस) 1985 में संशोधन करने की तैयारी में लगा है।

विभाग परीक्षण के तौर पर निजी क्षेत्र की दो कंपनियों से नई तकनीक पर आधारित अफीम की खेती और प्राप्त अफीम से औषधीय उपयोग के ‘एलकलाॅएड’ का उत्पादन करा चुका है। जिसके परिणाम बहुत अच्छे मिले हैं।

अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से देश में अफीम की खेती और इससे एलकलाॅएड आदि के उत्पादन- बिक्री वगैरह पर पूर्ण सरकारी नियंत्रण कायम है। विभागीय अधिकारियों -कर्मचारियों की मिलीभगत से देश में अफीम की अवैध खेती और इसका समानांतर धंधा (तस्करी) भी फलता-फूलता रहा है।

विश्व में अफगानिस्तान के बाद सबसे ज्यादा अफीम की खेती भारत में होती है। ताजा जानकारी है कि राजस्व विभाग निजी क्षेत्र के जरिए नई तकनीक से अफीम की खेती और इससे प्राप्त होने वाले एलकलाॅएड सहित अन्य बाइ प्राॅडक्ट तैयार करने के लिए उत्पादन परियोजना स्थापित करने के उद्देश्य से बहुत जल्द सलाहकारी फर्म (एक्सपर्ट) को नियुक्त करेगा।

सलाहकारी फर्म को फ्रेमवर्क तैयार करने की जिम्मेदारी दी जाएगी। यह फर्म एनडीपीएस ऐक्ट में आवश्यक संशोधन सुझाएगी, उत्पादन परियोजना के समग्र ढांचे के निर्माण की पूरी रूप रेखा तैयार करेगी। उत्पादन परियोजना के स्थापना कार्यों की माॅनिटरिंग की जिम्मेदारी भी सलाहकारी फर्म को सौंपने का निर्णय किया गया है।

यह आने वाले समय में अफीम की खेती और उत्पादन परियोजना से संबंधित किसी भी प्रकार का वैधानिक विवाद उत्पन्न होने की आंशका के मद्देनजर पहले से उसके उपाय – समाधान सुझाएगी। इस तरह से कई और कार्यों के बारे में सुझाव देने की जिम्मेदारी फर्म को सौंपने की योजना है। इसके बाद विभाग निजी क्षेत्र की सक्षम कंपनी का चयन करेगा। और चयनित कंपनी अफीम के ‘कंसन्ट्रेटेड पाॅपी स्ट्राॅ (सीपीएस) और एलकलाॅएड उत्पादन परियोजना डालेगी।

दरअसल परीक्षण के तौर पर निजी क्षेत्र की दो कंपनियों से 2017-18 और 2018-19 के दौरान नई तकनीक से खेती और एलकलाॅएड उत्पादन कराया गया था। एक कंपनी ने देशी बीजों का इस्तेमाल करते हुए ग्रीन हाउस में हाइड्रोपोनिक, एयरोपोनिक विधयों से सीपीएस तैयार किया। दूसरी कंपनी ने आस्ट्रेलिया और यूके से बीज आयात किए और सीपीएस तथा एलकलाॅएड बनाने के लिए पाॅपी स्ट्राॅ को आस्ट्रेलिया भेजा, वहां किए गए निष्कर्षण (एक्सट्रैक्शन) परिणाम में नार्कोटिक राॅ मेटीरियल अधिक मात्रा में प्राप्त हुआ।

एक कंपनी ने अपनी परीक्षण रिपोर्ट 2020, फरवरी में और दूसरी कंपनी ने अपनी रिपोर्ट जून में विभाग को सौंपी। देश में अंग्रेजों के ज़माने के तौर तरीकों से अफीम की खेती और इसकी गाद (गम) से एलकलाॅएड निकालने की पारंपरिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। खेती से लेकर उत्पादन तक किसानों पर नार्कोटिक विभाग अपने जिला अफीम अधिकारी के जरिए सख्त नियंत्रण रखता है।

इसके बावजूद तस्करों- विभागीय अधिकारियों कर्मचारियों और किसानों की मिलीभगत से अवैध कारोबार होता ही रहता है। इसी 4 अप्रैल को राजस्थान ऐंटी करप्शन ब्यूरो ने चित्तौड़गढ़ स्थित नार्कोटिक्स ब्यूरो के अधीक्षक सहित एक सब इंस्पेक्टर, कांस्टेबल को और 125 किलोग्राम अफीम के साथ दो अफीम दलालों को बुक किया।

बताते चलें कि देश में अफीम की खेती में मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के लगभग 1 लाख किसान हर साल 55000-70000 हेक्टेयर के बीच फसल करते हैं। जिससे प्रति हेक्टेयर औसतन 53-54 किलोग्राम से लेकर 60-65 किलोग्राम उपज होती है। पिछले पचीस सालों में सिर्फ एक वर्ष 2015-16 में देश में कुल उपज 30 हजार किलोग्राम के न्यूनतम स्तर पर दर्ज़ की गई थी।

देश में आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से1994-95 से लेकर 2018-19 तक की अवधि में कुल 1 करोड़ 75 लाख 22 हजार किलोग्राम अफीम हुई। अफीम की सर्वाधिक और सबसे अच्छी खेती मध्य प्रदेश के नीमच, मंदसौर जिले में होती है। इसके बाद राजस्थान में चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, कोटा, उदयपुर, झालावाड़ और प्रताप गढ़ में और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में होती है।

इंटरनेशनल नार्कोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की 2019 की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया था कि भारत में अफीम की वैध से ज़्यादा अवैध खेती होती है। जयपुर ग्रामीण पुलिस ने 2020 में अफीम के तेरह अवैध फार्म सीज़ किए, बीते एक वर्ष में की गई कार्रवाई में पुलिस ने अफीम के 3 लाख 20 हजार से ज्यादा पौधे और अफीम से बने 103 किलोग्राम उत्पादों को बरामद किया। तस्कर विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत में किसानों से 1-1.15 लाख रु प्रति किलोग्राम के भाव पर अफीम खरीदते थे।

राजस्थान के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक (ऐंटी करॅप्शन ब्यूरो) खलोक त्रिपाठी ने स्वयं यह खुलासा किया था। केंद्रीय राजस्व विभाग की मानें तो नार्कोटिक कर्मियों ने साल 2017 में 3000 हेक्टेयर भूमि पर अफीम की खेती नष्ट की।

इससे यह तो साबित होता है कि एक बड़ा रैकेट बरसों से चलता चला आ रहा है। एक मुख्य वजह खुले बाजार में प्रचलित मूल्यों के मुकाबले सरकार द्वारा निर्धारित मूल्यों का 4000 फीसद तक कमती रहना। मिसाल के तौर पर पिछले साल राजस्थान में सरकार ने 1000 रु प्रति किलोग्राम के मूल्य पर किसानों से अफीम खरीदी जबकि ग्रे मार्केट में भाव पचास हजार रुपए के स्तर पर था। जब तक सरकारी क्रय मूल्य व्यावहारिक स्तर पर निर्धारित नहीं किए जाएंगे अफीम की तस्करी इसी तरह होती रहेगी।

बताते चलें कि देश में सबसे पुरानी सरकारी अफीम प्रसंस्करण-एलकलाॅएड फैक्ट्री उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में है। जिसकी स्थापना अंग्रेजों ने दो सौ साल पूर्व 1820 में की थी। इसके बाद दि्वतीय विश्व युद्ध के समय 1943 में गाजीपुर में ही एलकलाॅएड संयंत्र स्थापित किया गया।

वर्ष 1935 में राजस्थान सीमा से सटे मध्य प्रदेश में फैक्ट्री लगाई गई। मध्य प्रदेश में अफीम प्रसंस्करण-एलकलाॅएड संयंत्र 1976 में शुरू किया गया था। तीसरी फैक्ट्री मंदसौर में लगाई गई पर इसे 1969 में बंद कर दिया गया।

इन फैक्ट्रियों में 9 प्रकार के अफीम उत्पाद बनाए जाते हैं। नार्कोटिक विभाग मानता है कि अफीम से औसतन 10 फीसद माॅर्फीन निकलती है। देश में गन्ना पेराई सत्र की तरह अफीम फसल वर्ष 1अक्टूबर से प्रारम्भ होकर 30 सितंबर को समाप्त होता है। नार्कोटिक विभाग अमूमन अप्रैल में किसानों से अफीम की खरीद करता है।

बड़ों में अफगानिस्तान, भारत, म्यांमार और मेक्सिको सहित 50 देशों में कुल करीब 2.70 लाख हेक्टेयर भूमि पर इसकी खेती की जाती है। खेती पर तीन देशों का वर्चस्व है। पिछले छः वर्षों से इसके सकल वैश्विक उत्पादन में तीन देशों की 96-97 फीसद हिस्सेदारी बरकरार है, 84फीसद अफीम अकेले अफ़ग़ानिस्तान में पैदा की जाती है। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था की धुरी अफीम है, कोई 4.50-4.60 लाख लोगों को रोजगार अफीम देती है और अर्थव्यवस्था में 33-35 फीसद का योगदान करती है।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी