कभी पूरी नहीं हुई मीना कुमारी की सच्चे प्यार की तलाश

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किस्से फिल्मी दुनिया के –

जैसा कि मैंने पिछले अंक में बताया था कि जिन्दगी से पाये सदमों के चलते मीना कुमारी अवसाद में चली गयीं आैर अनेक बीमारियों ने उनके शरीर में डेरा जमा लिया। वे रात रात भर जागती रहतीं। उन्हेें नींद नहीं आती। मीना कुमारी इतनी बीमार हो गईं कि उनका इलाज कर रहे डक्टर ने सलाह दी कि नींद लाने के लिए एक पेग ब्रांडी पिया करें। डक्घ्टर की यह सलाह भारी पड़ी। एक पेग, दो, तीन से चार हो गया। मीना कुमारी को शराब की लत लग गई।

‘पाकीजा” कमाल अमरोही की महत्वाकांक्षी फिल्म थी, पर वह इसे आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे। ‘पाकीजा” के रुक जाने का गम मीना कुमारी को भी था। उनकी सारी रकम भी कमाल ने इस फिल्म में लगवा दी थी। मीना कुमारी के दोस्त सुनील दत्त और नर्गिस ने ‘पाकीजा” के रशेज देखने की इच्छा जतायी। कमाल अमरोही साहब ने रशेज दिखाने के लिए इंतजाम किया अौर बताते हैं कि कमाल अमरोही का हाथ पकड़कर मीना कुमारी पूरे शो के दौरान रोती रहीं। इस बहाने तलाक के बाद पहली बार कमाल और मीना की मुलाकात हुई। सुनील दत्त आैर नर्गिस ने ‘पाकीजा” को अद्वितीय शाहकार बताया आैर इसे पूरा करने के लिए जिद सी पकड़ ली। उन्होंने सारे इंतजामात किये।

‘पाकीजा” की शूटिंग दोबारा शुरू हुई। दो गाने भी फिल्माये जाने थे। मीना कुमारी की तबीयत दिन ब दिन खराब होती जा रही थी। फिर यह तय पाया गया कि किसी अन्य अभिनेत्री से यह डांस सांग कराये जाएं। उस दौर की मशहूर नृत्यांगना पद्मा खन्ना से बात की गयी। वे तैयार हो गयीं बॉडी डबल के लिए। फिल्म जैसे तैसे तैयार होे गयी। 14 साल बाद 4, फरवरी 1972 को आखिर फिल्म ‘पाकिजा” पर्दे पर आई। मीना जी की अंतिम इच्छा इस फिल्म को थियेटर में देखने की थी। लेकिन फिल्म रिलीज होने के डेढ़ महीने के बाद उनकी हालत बहुत ज्यादा बिगड़ गयी। उन्हें 28 मार्च 1972 को सेेंट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। अंतत: 31 मार्च 1972 को लिवर सिरोसिस के चलते मीना कुमारी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें बम्बई के रहमताबाद कब्रिस्तान में दफ्ना दिया गया।

मीना कुमारी ने 33 साल के फिल्मी कैरियर में 92 फिल्मों में काम किया। उनकी ज्यादातर फिल्में हिट रहीं। बताते चलें कि मीना कुमारी को शेर ओ शायरी का भी बहुत शौक था। वह ‘नाज” उपनाम से शेरो शायरी किया करती थीं। अदाकारी के साथी मीना का यह रूप जिसे भी पता था वह मीना की इस काबिलियत का मुरीद था। मीना कुमारी की निजी डायरियों में से 250 चुनी हुई नजम, गजल, कतओं और शे”रों का एकमात्र संग्रह जिसका सम्पादन फिल्म लेखक और निर्देशक गुलजार ने विशेष रूप से प्रकाशित करवाया। मीना कुमारी और गुलजार के रिश्ते भावनाओं से भरे हुए थे। मीना ने मौत से पहले अपनी तमाम डायरी और शायरी की कापियां गुलजार को सौंप दी थीं। गुलजार ने उन्हें संपादित किया, जो ‘नाज” तखल्लुस से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई। मीना-गुलजार की भेंट फिल्म ‘बेनजीर” के सेट पर हुई थी। बिमल राय निर्देशक थे और गुलजार उनके सहायक थे। शॉट रेडी होने पर स्टार को कैमरे तक लाने के जिम्मेदारी उनकी थी। यहीं से दोस्ती में अपनापन पनपता चला गया। बाद में गुलजार जब स्वतंत्र फिल्म निर्देशक बने तो फिल्म ‘मेरे अपने” की मुख्य भूमिका गुलजार ने मीना को सौंपी। 1972 में मीना के जाने के बाद ‘मेरे अपने” कुछ समय बाद प्रदर्शित हुई और गुलजार स्वतंत्र निर्देशक बन गए। आज भी गुलजार के ऑफिस में दीवार पर ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी का चित्र बोलता-सा नजर आता है।

मीना कुमारी ने कैरिअर में जो बुलंदियां हासिल कीं, निजी जिंदगी में उतनी ही मुश्किलें झेलीं। जन्म से लेकर अंतिम घड़ी तक उन्होंने सच्चा प्यार पाने के लिए दुख ही दुख झेला। मीना कुमारी की मृत्यु के बाद तबस्सुम ने अपने कार्यक्रम ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन” में जब कमाल अमरोही से मीना कुमारी के बारे में पूछा तब अमरोही ने मीना को एक अच्छी पत्नी नहीं बल्कि एक अच्छी अभिनेत्री के रूप में याद किया, जो खुद को घर पर भी एक अभिनेत्री मानती थीं। मीना कुमारी के बारे में एक बात कही जाती है कि उन्हें सफेद रंग बेहद पसंद था। तकरीबन सभी तरह के कार्यक्रमों में वह सफेद रंग के कपड़ों में ही नजर आती थीं। इसके साथ ही उन्हें पार्टियों में जाना बिल्कुल भी पंसद नहीं था। मीना का कहना था कि ऐसी पार्टियों में उनका मन नहीं लगता था और उन्हें बोरियत महसूस होती है।

वो भी क्या दौर था जब हर किसी की जुबा पर सिर्फ मीना कुमारी का ही नाम हुआ करता था, लेकिन उन्हें भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री नहीं पहचान पाये। दरअसल शास्त्री जी को बम्बई के एक स्टूडियो में फिल्म ‘पाकीजा” की शूटिंग देखने के लिए निमंत्रण दिया गया। बता दें कि महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री की तरफ से स्टूडियो जाने के लिए शास्त्री जी पर इतना ज्यादा दबाव था कि वो मना नहीं कर पाए और स्टूडियो पहुंच गए। इस किस्से का जिक्र कुलदीप नैयर द्वारा अपनी किताब ‘आन लीडर्स एंड आइकन्स : फ्राम जिन्नाह टू मोदी” में किया है। किताब में लिखा है कि उस दौरान वहां बड़े-बड़े सितारे मौजूद थे जैसे ही मीना कुमारी ने लाल बहादुर शास्त्री को माला पहनाई शास्त्री जी ने बड़ी ही विनम्रता से मुझसे (कुलदीप नैयर) पूछा- ‘ये महिला कौन है?” मैंने हैरानी जताते हुए उनसे कहा- ‘मीना कुमारी…।” शास्त्री जी ने अपनी अज्ञानता व्यक्त की, फिर भी मैंने उनसे सार्वजनिक तौर पर इसे स्वीकार करने की अपेक्षा कभी नहीं की थी। नैयर अपनी किताब में आगे लिखा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि शास्त्री जी ये बात सार्वजनिक तौर पूछेंगे। हालांकि मैं शास्त्री जी के इस भोलेपन और ईमानदारी से बहुत प्रभावित हुआ था। बाद में लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी स्पीच में मीना कुमारी को संबोधित करते हुए कहा था कि मीना कुमारी जी मुझे माफ करना मैंने आपका नाम पहली बार सुना है।

मीना कुमारी हमेशा बड़े पैमाने पर फिल्म निर्माताओं के बीच रुचि का विषय रही हैं। 2004 में उनकी फिल्म ‘साहिब बीवी और गुलाम” का एक आधुनिक रूपांतर प्रीतीश नंदी कम्युनिकेशंस द्वारा किया जाना था, जिसमें ऐश्वर्या राय और बाद में प्रियंका चोपड़ा को उनकी छोटी बहू की भूमिका को चित्रित करना था। हालांकि, फिल्म को निर्देशक ऋतुपर्नो घोष द्वारा बाद में इसे एक धारावाहिक के रूप में बनाया गया, जिसमें अभिनेत्री रवीना टंडन ने इस भूमिका को निभाया।
2015 में यह घोषणा हुई कि तिग्मांशु धूलिया ट्रेजेडी क्वीन पर एक फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं, जो विनोद मेहता की किताब ‘मीना कुमारी – द क्लासिक बायोग्राफी” का रूपांतरण होगा। अभिनेत्री कंगना रनौत को मीना कुमारी को चरित्र निभाने के लिए संपर्क किया गया, लेकिन प्रामाणिक तथ्यों की कमी और मीना कुमारी के सौतेले बेटे ताजदार अमरोही के कड़े विरोध के बाद फिल्म को रोक दिया गया। 2017 में फिर एक कोशिश निर्देशक करण राजदान ने की। उन पर एक आधिकारिक बायोपिक निर्देशित करने का फैसला किया। इसके लिए, उन्होंने माधुरी दीक्षित और विद्या बालन से फिल्मी पर्दे पर मीना कुमारी की भूमिका निभाने के लिए संपर्क किया, लेकिन अज्ञात कारणों के चलते दोनों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। बाद में उन्होंने अभिनेत्री सन्नी लियोनी की ओर रुख किया, जिन्होंने इस किरदार में बहुत दिलचस्पी दिखाई। ऋचा चड्ढा, जया प्रदा और जान्हवी कपूर सहित कई अन्य अभिनेत्रियों ने भी शानदार आइकन की भूमिका निभाने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन कोई बात न बन सकी। 2018 में निर्माता और पूर्व बाल कलाकार कुट्टी पद्मिनी ने अभिनेता-निर्देशक जे पी चंद्रबाबू के साथ एक वेब श्रृंखला के रूप में मीना कुमारी पर एक बायोपिक बनाने की घोषणा की। पद्मिनी ने मीना कुमारी के साथ फिल्म ‘दिल एक मंदिर” में काम किया था और इस बायोपिक के साथ दिवंगत अभिनेत्री को सम्मानित करना चाहती हैं। देखिए क्या होता है।
पेश हैं उनकी मशहूर गजल के चंद असआर…
चांद तन्हा, आसमां तन्हा, दिल मिला कहां कहां तन्हा
बुझ गयी आस छुप गया तारा, थरथराता रहा धुआं तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक, छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा
(विभिन्न स्त्रोतों से साभार )

प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव