जानिए वर्षा ऋतु में कैसे रहें आरोग्य

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गर्मी की तपिश लू लपटों के बाद बारिश का सुहाना मौसम इंसान ही नहीं सभी जीव जंतुओं पेड़ पौधों को भी सुकून देता है। बारिश की मौसम में आहार-विहार और दिनचर्या में परिवर्तन करके हम अपनी सेहत को अच्छा रख सकते हैं। बारिश के मौसम में अपनी सेहत की रक्षा और विभिन्न बीमारियों से मुक्त हेतु योग एवं आयुर्वेद की दृष्टि से आहार व स्वस्थ जीवन शैली पर डॉक्टर रविंद्र पोरवाल ने बहुत ही सटीक जानकारी दी है। डॉ रविंद्र पोरवाल देश के जाने माने आयुर्वेदाचार्य हैं और श्रीनाथ आयुर्वेद संस्थान भगवत दास घाट सिविल लाइंस कानपुर के मुख्य चिकित्सक के रूप में विगत 30 वर्षों से अपनी निस्वार्थ सेवाएं दे रहे हैं।

ऋतु अनुसार जीवन शैली बदलें : आयुर्वेदिक दृष्टि से मौसम को वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म इन छः ऋतुओं में बाँटा गया है। आयुर्वेद और योग के पूजनीय ग्रंथों और विद्वान मनीषियों ने पूरे वर्ष स्वस्थ और निरोगी रहने के लिए इन ऋतुओं के हिसाब से जीवन शैली के साथ साथ आहार बिहार में भी परिवर्तन करने का निर्देश शास्त्रों में दिया गया है। खान-पान और जीवनशैली के छोटे-छोटे परिवर्तन पूरे परिवार को स्वस्थ निरोगता और आनंद पूर्ण जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

वर्षा ऋतु में सजगता ही आरोग्यता का मार्ग : बरसा ऋतु में शास्त्रों में बतायी गयी पथ्य और परहेज का विधिपूर्वक पालन करने से परिवार में कोई भी सदस्य जल्दी बीमार नहीं होता और जो बीमारियां गर्मी के मौसम में उत्पन्न होकर वर्षा के समय तक कष्ट दे रही है उन बीमारियों का भी शमन यानी पूरी तरह ठीक हो जाती है। ऋतु परिवर्तन के कारण किसी प्रकार के शारीरिक मानसिक कष्ट या समस्याएं उत्पन्न होने की सम्भावना नहीं रहती है।

चूंकि वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी व शीतल वायु होती है जबकि आंतरिक शरीर में बातज प्रकोप होता है जो परिवार सजग नहीं होता और सावधानी नहीं रखते उन लोगों को हड्डियों व मांसपेशियों का दर्द पेट में दर्द मरोड़ आंतों में सूजन और मीठी मीठी पीड़ा, सुबह उठने पर थकान आलस के साथ-साथ शरीर के बाहरी अंगों त्वचा पर खुजली दाग धब्बे गले में खराश बाल कान आंख पर भी बुरा प्रभाव डाल कर अस्वस्थता प्रदान करता है।

यह समस्याएं भी सताती हैं : एलर्जी सर्दी जुकाम दमां सांस फूलना कफ बहुत ज्यादा बनना और अत्यधिक खांसी आना, अनेक प्रकार के कीट पतंगों और मच्छरों के पैदा होने से विभिन्न प्रकार के बुखार मलेरिया, टाइफाइड के साथ-साथ आव दस्त उल्टी आदि रोग होने की सम्भावना रहती है। संक्रमित बासा भोजन और प्रदूषित अशुद्ध पीने का पानी भी वर्षा ऋतु में अस्वस्थता का एक बड़ा कारण होता है।

क्या खायें कैसे खाएं : वर्षा ऋतु में भूख खूब लगती है, बेसन के पकोड़े तला मसालेदार खाना अच्छा लगता है। लेकिन हमें संतुलित भोजन लेना चाहिए और भूख से ज्यादा खाना खाने से बचना चाहिए, जब भूख लगे, तभी संयमित आहार खाएं। आयुर्वेद के अनुसार बरसात के मौसम में कड़वा कसैला तीक्ष्ण खट्टा, बहुत ज्यादा नमकीन व तैलीय भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इनसे वायु विकृत हो जाती है और कफ दोष बढ़ने लगता है जो अनेक बीमारियों का सूत्रधार बन जाता है। इस मौसम में प्याज लहसुन टमाटर अदरक हरी मिर्च इत्यादि को किचन में प्रयुक्त होने वाले सूखे मसालों के साथ ज्यादा घी तेल में फ्राई करके सब्जी या दाल बना कर नहीं खाना चाहिए। उड़द दाल, पूड़ी-कचौड़ी चाट समोसा पकोड़ा अमचूर की चटनी बासी फ्रिज में रखे हुए खाद्य पदार्थों का सेवन करने से भी बचना चाहिए।

किचन में भी सावधानी रखें : भोजन में तिल का तेल या काली लाही का कड़ुवा तेल का इस्तेमाल श्रेष्ठ है। अदरक व नींबू का प्रयोग प्रतिदिन करना चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियों खाने से बचें या उन्हें अच्छी तरह नमक के पानी में धुल पर प्रयोग करें। इस ऋतु में फलों में आम जामुन मौसम की फल है। जिन्हें खूब सेवन करना चाहिए। जामुन का सेवन लिवर पेनक्रियाज गाल ब्लैडर जैसी पाचक ग्रंथियों को रोग मुक्त कर के शक्तिशाली बनाता है। वही आम बल वीर्य और शक्ति की वृद्धि करके आँतों को ताकतवर बनाता है। आम की तासीर को ठंडा करके चेप निकालकर चूसकर खाया हुआ आम पचने में हल्का तथा वायु व पित्तविकारों का शमन करता है।