सचेत रहें जरूरी है दिमाग की सफाई भी

0
1467

शरीर को विभिन्न रोगों से मुक्त करने के लिए शरीर के आंतरिक अंगों का डिटॉक्स करना आज के युग में स्वास्थ्य के प्रति सजग और सतर्क हर व्यक्ति की जिज्ञासा का विषय है। इस महत्वपूर्ण बिंदु पर श्रीनाथ चिकित्सालय भगवत दास घाट कानपुर की मुख्य चिकित्सक डॉ रजनी पोरवाल ने अत्यंत ज्ञानवर्धक, जन उपयोगी और बहुत ही सरल शास्त्रोक्त जानकारी दी है।

योग में शरीर की शोधन क्रियाएं : षटकर्म की क्रियाएं शरीर की आंतरिक अंगों में एकत्रित विष तत्वों को शरीर से बाहर निकाल कर शरीर को आंतरिक दृष्टि से स्वच्छ और निरोगी बनाने में सहायता करती हैं। षट्कर्म कि यह 6 क्रियाएं धोती, बस्ती, नेति, नौली, त्राटक और कपालभाति मानी जाती है किंतु स्वामी चरण दास जी ने अपने ग्रंथ भक्ति सागर में षट्कर्म की क्रियाओं में कुंजल को महत्वपूर्ण माना है। कुंजल को गजकर्ण भी कहा गया है।

कुंजल से शरीर डिटॉक्स करें : लिवर पेनक्रियाज और संपूर्ण पाचन प्रणाली को डिटॉक्स करने के लिए कुंजल यानी गजकर्म को सबसे सरल एवं जन सामान्य के लिए अत्यंत लाभदायक माना जाता है। इस क्रिया का अभ्यास करने के लिए प्रातः नित्य कर्म से निवृत्त होने के बाद कागासन या उकड़ू बैठकर सहने योग्य गरम पानी भरपेट पीते हैं। पानी की मात्रा चार या पांच गिलास से दस बारह गिलास तक अलग अलग व्यक्ति में उसकी शारीरिक क्षमता के अनुसार होती है। पानी पीने के बाद सीधे खड़े होकर पैर मिला लेते हैं और कमर से आगे की ओर झुककर दाहिने हाथ की बीच की तीनों उगलियो को मुंह के अंदर ले जाते हैं। जिससे पिया हुआ पानी पेट से बाहर निकलने लगता है। तीन-चार बार उंगलियों से ऐसा करने से पिया हुआ संपूर्ण पानी बाहर निकल जाता है और इस पानी के साथ स्टमक इसोफागस यहां तक की लेंरिंग्स और फेरिंग्स में एकत्रित समस्त विजातीय तत्व और हानिकारक विष तत्वों का सफाया हो जाता है। शरीर हल्का हो जाता है। भूख ना लगना, खट्टी कड़वी डकार आना, छाती में जलन होना, जी मिचलाना और खाना खाने की इच्छा ना होना, सिर दर्द रहना, पूरे दिन आलस और थकान का बना रहना, आंतों की सूजन, आंतों में गैस का बनना और पेट का फूलना, पेट साफ ना होना कब्जियत जैसी दिक्कतें समूल नष्ट हो जाती हैं। यही नहीं शरीर के अंदर कफ की अधिकता भी कुंजल के अभ्यास से ठीक हो जाती है। फलस्वरुप पुरानी ब्रोंकाइटिस, खांसी, दमा, स्वास के मरीजों को बहुत फायदा मिलता है। खर्राटे से मुक्ति दिलाने वाला अचूक चमत्कारी उपाय गजकर्म ही है।

आसन और व्यायाम के फर्क को समझें : योग के आसनों का असर शरीर के आंतरिक अंगों हृदय फेफड़ों, लीवर, पेनक्रियाज, किडनी, हड्डियों, नस नाड़ियों, आंख कान त्वचा आदि पर होता है किंतु व्यायाम पहलवानी जिम आदि हमारी मांसपेशियों को सशक्त और मजबूत बनाते हैं। इसलिए हमें प्रतिदिन 10 से 15 मिनट आसन, 5 से 10 मिनट प्राणायाम तथा हार्टफूलनेस मेडिटेशन जरूर करना चाहिए।

योगिक आसन विशेषकर अश्वचालनासन, पक्षी आसन, तिर्यक भुजंगासन, विमान आसन, नौकासन और पदचालन जैसी योगिक क्रियाएं शरीर के आंतरिक अंगों को स्वच्छ और निरोगी बनाती हैं। इन आंतरिक अंगों में एकत्रित हानिकारक तत्वों विजातीय और विष तत्वों हानिकारक बैक्टीरिया वायरस फंगस आदि को बलपूर्वक शरीर से बाहर निकाल कर आरोग्य प्रदान करते हैं। प्राणायाम शारीरिक निरोगता दीर्घायु एवं आरोग्यमय जीवन की आधारशिला है। अनेकों प्राणायाम करने से बचना चाहिए और कोई एक या दो प्राणायाम गुरु की आज्ञा से प्रतिदिन 5 से 10 मिनट का अभ्यास जीवन को निरोगता के रास्ते पर लाने का श्रेष्ठ मार्ग है।

जरूरी है दिमागी सफाई भी : आलस और टालने की मानसिक आदत के कारण दिमाग़ के अंदर की पेंडिंग फाइलों को उसके सही अंजाम तक तुरंत पहुंचाने के साथ-साथ दिमाग़ की अनुपयोगी चीजों को दिमाग से डिलीट करने के लिए हार्टफूलनेस मेडिटेशन बिना पैसे की बेजोड़ औषधि है। हार्टफूलनेस मेडिटेशन युवाओं की विभिन्न मानसिक दिक्कतों, विरोध करने की क्षमता खत्म हो जाना, नकारात्मक विचारों का ज्यादा आना, डर लगना, रात में भय से नीद का खुल जाना या फालतू की बातों को सोच सोच कर नींद ना आना जैसी समस्याएं पूरी तरह ठीक हो जाती हैं। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है.. त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है और याददाश्त मस्तिष्क की उच्चतम क्षमता तक बढ़ जाती है। क्योंकि विभिन्न अनुसंधानो ने सिद्ध किया है की हार्टफुलनेस ध्यान का अभ्यास करने से धैर्य साहस व आत्मविश्वास को बढ़ाने वाले हारमोंस का निर्माण बढ़ जाता है।

हमारा आहार हमारी औषधि : यदि हम किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो हमें ऐसे आहार का चुनाव करना चाहिए जो हमारे शरीर के आंतरिक अंगों को शक्ति दे पौष्टिकता प्रदान करें। शरीर की जरूरत के अनुसार विटामिन खनिज तत्वों की पूर्ति करें साथ ही साथ वह आहार हमारी शरीर या मस्तिष्क की जो बीमारी है उसके निदान में औषधि के रूप में भी उपयोगी हो।

विलासिता को एंजॉय करें उसके दास ना बने : विलासिता पूर्ण दिनचर्या, आलसी, श्रमहीन व बनावटी दिखावा वाला जीवन हमें रोगों के मकड़जाल में फसाता है। हमारी एक एक सांस को दुखदाई बना देता है.. सुख और चैन छीन लेता है.. नींद उड़ जाती है.. भूख़ गायब हो जाती है और दुनिया भर की जिम्मेदारियां जीवन को नर्क बना देते हैं.. वही प्राकृतिक दिनचर्या हमें दीर्घायु और निरोगी जीवन का मार्ग बताती है।

कम से कम अपने लिए सच्चे और ईमानदार बने : बुरे विचारों और खराब आचरण व गंदी सोच तनाव के साथ विभिन्न बीमारियों को जन्म देते हैं। इसलिए ईश्वर से डरे.. बुरे कर्मों से डरें.. झूठ के मार्ग को छोड़ें.. अपने से बड़ों का सम्मान करें और जीवन में सत्य निष्ठा तथा सिद्धांतों को जरूर अपनाएं। और इन सबसे अधिक कम से कम अपने प्रति जरूर सच्चे और ईमानदार बने।