नाबार्ड की आय के मुकाबले दोगुना बढ़ा ब्याज, 1.64 लाख करोड़ का कर्ज

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नाबार्ड की आय के मुकाबले दोगुना बढ़ा ब्याज, १.६४ लाख करोड़ का कर्ज….  राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक – नाबार्ड की ब्याज से होने वाली आय के मुकाबले इसके ब्याज का बोझ दो गुना बढ़ गया। नाबार्ड के ऊपर कर्ज बढ़कर 1 लाख 64हजार करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गया है। इसके कर्ज वितरण की राशि और उसकी वसूली में जोखिम के मद्देनजर नाबार्ड ने भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) और अन्य बैंक में 4400 करोड़ रुपए की धनराशि जमा की है।

नाबार्ड की आय का प्रमुख स्रोत ब्याज है जो इसे वितरित किए गए ऋणों से प्राप्त होता है। साथ ही इसके सकल व्यय में भी सबसे अधिक धनराशि ब्याज के भुगतान में चली जाती है क्योंकि यह भी बड़े पैमाने पर उधार में लेकर ऋण वितरित करता है, बीच के मार्जिन से ही अपने सारे खर्चों की भरपाई करने के बाद लाभ अर्जित करता है। समग्र आय का 85-87 प्रतिशत हिस्सा समग्र व्यय में निकल जाता है, शेष धनराशि लाभ के रूप में बच जाती है। आय के तीन स्रोत हैं – ब्याज, निवेश और अन्य। जबकि खर्च की चार मदें हैं – ब्याज भुगतान, अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन भत्ते, संचालन व्यय और टैक्स।

वित्तमंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार 2022-23 में नाबार्ड की ब्याज आय 7 प्रतिशत से भी कम बढ़कर 39 हजार 482 करोड़ रुपए हुई लेकिन ब्याज का बोझ यानी ब्याज भुगतान आय की तुलना में दोगुना यानी 14 प्रतिशत बढ़कर 30 हजार 370 करोड़ रुपए हो गया। शीर्ष प्रबंधन ने 2022-23 में स्टाफ में कटौती भी की जिससे इनके वेतन भत्तों पर खर्च 422 करोड़ रुपए घटकर 1447 करोड़ (21-22 में 1865करोड़), संचालन व्यय 214 करोड़ घटकर 2820 करोड़ (3034 करोड़) टैक्स में 20 प्रतिशत की भारी कटौती (३९८ करोड़) करनी पड़ी। और 1247 करोड़ रुपए (21-22 में 1645करोड़) टैक्स चुकाया गया। तब जाकर 22-23 में 5554 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ दर्शाया जा सका। अगर बही-खातों में जुगाड़ नहीं किया गया होता तो 21-23 के मुकाबले 22-23 में शुद्ध लाभ कम हुआ होता।

नाबार्ड वित्त और पुनर्वित्त दोनों ही तरह से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है। 17 हजार करोड़ रुपए से अधिक की शेयर पूंजी पर खड़े नाबार्ड को फाइनेंसिंग के लिए बहुत बड़े स्तर पर कर्ज लेना पड़ता है। पिछले एक साल में अर्थात 2023, मार्च के अंत में इस पर कुल कर्ज बढ़कर 1 लाख 64 हजार 131करोड़ रुपए पहुंच गया। जैसाकि इसके नाम से ही इसका उद्देश्य स्पष्ट होता है। 1982 में स्थापित नाबार्ड का स्वामित्व वित्तमंत्रालय, केंद्र सरकार के अतंर्गत है। नाबार्ड देश में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों की नियामक है लेकिन इसकी विनियामकीय शक्तियां भारतीय रिज़र्व बैंक में निहित हैं।

प्रणतेश बाजपेयी