मतदान बढ़ाना है तो चुनाव का समय बदलिए साहब

लोकसभा चुनाव का गर्मी के मौसम में पड़ता है। इसका समय छह महीना पहले या छह महीने बाद किया जाना चाहिए। सत्ता पक्ष और विपक्ष को बैठकर आपस में राय बनाना चाहिए। त्याग जिसको भी करना पड़े पर करना चाहिए

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लखनऊ। देश में चुनाव के वक्त मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए प्रयास तो बहुत किए जाते हैं पर इसमें सफलता नहीं मिलती। कारण कि लोकसभा के चुनाव ऐसे वक्त में होते हैं जब देश में प्रचंड गर्मी पड़ रही होती है। ऐसे में जनतंत्र और वोटतंत्र में विश्वास रखने वाला व्यक्ति भी कभी-कभी स्वास्थ्य कारणों से पोलिंग बूथ तक नहीं जाता है। मतदान केंद्रों पर सुविधाओं की बाबत किए गए वादे भी अक्सर नदारद रहते हैं। लोगों को न पेयजल मिलता है, न बैठने की जगह और न ही अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट रखने की सुविधा। इसके अलावा इस गर्मी में चुनाव के दौरान कई मतदान कार्मिक बीमार हूए। कुछ तो मौत की आगोश में समा गए।

जब भी देश में चुनाव आते हैं तो चुनाव आयोग जनता को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए तमाम तरह के प्रयास करता है। नेताओं, अभिनेताओं और समाज के कुलीन वर्ग के लोगों से प्रचार कराया जाता है कि लोग अधिक से अधिक मतदान के लिए आएं। किंतु कभी यह नहीं सोचा गया कि मतदान का समय क्या है, किस मौसम में हो रहा है। चुनाव आयोग और सभी राजनीतिक दल इतनी जल्दी में रहते हैं कि उन्हें जनता के सरोकार दिखते ही नहीं। वे यह तो आरोप लगा देते हैं कि जनता जागरुक नहीं है इसलिए मतदान कम हो रहा है। किंतु जनता जागरुक क्यों नहीं है इस पर किसी का कभी ध्यान नहीं जाता। ऐसे में जब 18वीं लोकसभा के लिए मतदान की प्रक्रिया एक जून 2024 को समाप्त हो गई है तो अब इस पर चिंतन करना जरूरी है। ताकि आगामी वर्ष 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव या किसी भी चुनाव के समय यह दिक्कत ना आए और मतदान प्रतिशत बढ़े। इसके लिए चुनाव आयोग, सत्ता पक्ष और विपक्ष को पूरे मन से प्रयास करना होगा। तभी मतदान प्रतिशत बढ़ेगा और लोकतंत्र मजबूत होगा।

सबसे पहले बात मतदान के मौसम और समय की करते हैं। पिछले कई बार से लोकसभा के चुनाव गर्मी के मौसम में होते हैं। तब देश में चिलचिलाती गर्मी पड़ रही होती है। ऐसे में बीमारों और बुजुर्गों को पोलिंग बूथ तक आने में दिक्कत होती है। वे या तो गर्मी के कारण या फिर स्वास्थ्य कारणों से मतदान केदो तक नहीं पहुंच पाते हैं। फिर ठीकरा उन पर फोड़ दिया जाता है और कहा जाता है कि मतदाता अभी भी जागरूक नहीं हो पाए हैं इसलिए वोटिंग परसेंटेज कम हो रहा है। यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। पर सवाल यह है कि ये चुनाव जाड़े में क्यों नहीं हो सकते जब इतनी गर्मी नहीं होती है। इस मामले में चुनाव आयोग को पहल करके सरकार और विपक्ष से बात करनी चाहिए। यदि जरूरत पड़े तो सत्ता पक्ष को अपने 6 महीने के कार्यकाल का त्याग करना चाहिए या फिर विपक्ष को ही 6 महीने और पुरानी सरकार को बर्दाश्त करना चाहिए। यह भी हो सकता है कि अगले 6 महीने के लिए देश में राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था कर दी जाए। ताकि जनता को कोई दिक्कत न हो। क्योंकि लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है। मतदान पर्याप्त होगा तो मतदान प्रतिशत बढ़ेगा। तभी लोकतंत्र की सार्थकता होगी और सही सरकार का चुनाव हो पाएगा। इस बारे में पक्ष, विपक्ष और चुनाव आयोग को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

दूसरी सबसे बड़ी समस्या मतदान केदो पर इस चिलचिलाती गर्मी में मिलने वाली सुविधाओं की है। चुनाव आयोग द्वारा खूब प्रचार किया जाता है कि आप मतदान करने लिए आइए, आपको सुविधाओं की कमी नहीं होगी। बड़े-बड़े लोगों से बाइट भी दिलवाई जाती है, निवेदन कराए जाते हैं कि लोग घरों से निकलें और मतदान करें। चुनाव आयोग आपको परेशानी नहीं होने देगा। किंतु पिछले चुनावों से यह देखा जा रहा है कि मतदान केंद्र पर पहुंचे लोगों को कोई सुविधा नहीं मिलती। यदि लंबी लाइन है तो किसी बुजुर्ग के बैठने की व्यवस्था नहीं, पेयजल की व्यवस्था नहीं। इस बार तो स्थितियां यह थीं कि लोगों को अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट, मोबाइल आदि अंदर ले जाने की अनुमति नहीं थी और बाहर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी जहां लोग अपने सामान जमा करके टोकन प्राप्त कर लें। और मतदान करके वापस लौटने पर उसे वापस प्राप्त कर सकें। कई मतदान केदो पर यह देखा गया कि लोग अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के चक्कर में भी मतदान केंद्रों से बिना वोटिंग किये ही वापस लौट गए। पुलिस वाले भी इतने निर्दयी निकले कि लोग उनसे निवेदन करते रहे कि मेरा यह मोबाइल आप अपने पास रख लो, मैं जब लौट के आऊंगा तो आपसे ले लूंगा। लेकिन उन्होंने भी इस मामले में कोई मदद नहीं की।

चुनाव आयोग को आगे चलकर इस व्यवस्था के बारे में भी सोचना होगा कि लोग मतदान केंद्रों पर जाकर अपने मतदान के लिए टोकन ले लें ताकि उन्हें लाइन न लगाना पड़े। और जब टोकन पुकारा जाए तो वे बिना भीड़ के जाकर मतदान कर सकें। इससे यह फायदा होगा कि लोग अंदाजा लगा लेंगे कि उनकी बारी एक घंटे बाद, 2 घंटे बाद कब आएगी। और लोग अपनी बारी में जाकर मतदान कर सकेंगे। लोग असुविधा से बच सकेंगे। अब यह टोकन सिस्टम कितना संभव है कितना नहीं यह तो चुनाव आयोग ही बता पाएगा किंतु अगर ऐसा हो जाए तो काफी सहूलियत हो सकती है। इसमें यह भी हो सकता है कि 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों को पहले मतदान की सुविधा दे दी जाए, जैसा कि वीआईपी के लिए किया जाता है। खैर, अब 18वीं लोकसभा के लिए मतदान प्रक्रिया संपन्न हो गई किंतु आगे कोई दिक्कत ना आए इसके लिए यह प्रयास जरूरी है। कोशिश तो यही हो कि पूरे देश का मतदान चाहे वह लोकसभा का हो या विधानसभा का एक साथ ही हो जाए। इससे जनता को बार-बार मतदान केंद्रो तक जाने की कवायद भी ना करनी पड़े।

इस दौरान सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब वायरल हुआ जिसमें कोई लड़का हनुमान जी को याद करते हुए कह रहा है कि हे प्रभु एक बार आपने अपने लिए सूरज को निगल लिया था तो एक बार फिर हम गरीबों के लिए भी सूरज को निगल लीजिए। बहुत गर्मी है, अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है। हो सकता है ये वीडियो सोशल मीडिया पर लाइक और कमेंट प्राप्त करने के लिए अपलोड किया गया हो किंतु इसकी विषय वस्तु की गंभीरता को समझना होगा। वीडियो ने कम से कम इतना तो बता ही दिया कि जिस वक्त चुनाव हो रहे थे देश में उसे वक्त कितनी गर्मी थी। ऐसा मतदान करने वाले बुजुर्गों और बीमारों ने भी सोचा होगा। बहुत से घरों में लोगों ने उन्हें इसलिए भी मतदान करने नहीं जाने दिया। क्योंकि अगर वे इस चिलचिलाती धूप में मतदान करने चले गए तो बीमार पड़ जाएंगे। इसमें दवा का जो खर्च होगा उसकी भरपाई कोई नहीं करने वाला। क्योंकि चाहे जनता हो, चाहे नेता हो, चाहे सरकार हो हर आदमी पहले अपना सोचता है। अपनी बचाने में लगे रहता है। इसलिए कोई भी व्यवस्था बने वो इतनी सुग्राह्य हो जिससे किसी को कष्ट न हो। और चुनावी सिस्टम शानदार बनकर चलता रहे।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक