एचडीएफसी को हसमुख-दीपक ने बना दिया दुनिया का चौथा टाॅप बैंक

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और हसमुख-दीपक ने बना दिया एचडीएफसी को दुनिया का चौथा टाॅप बैंक…. पारदर्शिता और नैतिक मानदंडों का समावेश आज के टेक्नोलॉजी के दौर में भी व्यावसायिक सफलता का मूलमंत्र है बशर्ते कि ईमानदारी के साथ इस फार्मूले को अपनाया जाय। इसी मूलमंत्र पर चलकर दुनिया के टाॅप बैंकर बनने की एक रोचक स्टोरी आपको सुनाते हैं। सौ प्रतिशत तथ्यों पर आधारित रोमांचक स्टोरी का केंद्र है। भारत के निजी क्षेत्र का चमकता सितारा एचडीएफसी बैंक जो अभी -अभी तमामों तमाम देशी-विदेशी बैंकों को पछाड़ता विश्व का चौथा सबसे बड़ा- मूल्यवान बैंक बनकर भारतीय उद्यमशीलता का डंका बजा रहा है। सबसे बड़े का दम भरने वाला भारतीय स्टेट बैंक अब एचडीएफसी बैंक के सामने बौना हो गया है।

हसमुख ठाकोरदास पारेख का जन्म 1911 में सूरत में हुआ था। उन्होंने गृहनिर्माण हेतु रिटेल ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मुंबई में हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कार्पोरेशन की स्थापना वर्ष 1977 में की, तब हाउसिंग लोन मुहैया कराने वाली यह देश में पहली कंपनी बनी। सिद्धांतों को आचरण में अपनाने वाले हंसमुख पारेख ताजिंदगी बिजनेस में भी सख्ती से सिद्धांतों को लेकर चले।और इनके बल पर हाउसिंग लोन बिजनेस में एचडीएफसी न केवल टाॅपर रही बल्कि भारतीय कार्पोरेट जगत के कोहिनूर कही गई। वित्तीय क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्मभूषण से सम्मानित हसमुख अपने भतीजे दीपक पारेख में भी अपने सारे बिजनेसल एथिक्स-गुणों को रोप गए। पारेख ने कामयाबी के झंडे गाड़ने वाली एचडीएफसी लिमिटेड के बैनर तले 1994,अगस्त में मुंबई में ही एचडीएफसी बैंक लिमिटेड की स्थापना की, जिसने 1995, जनवरी से बैंकिंग शुरू की। 83 वर्षीय श्री हसमुख पारेख के 1994, नवंबर में सिधारने के बाद गज़ब की पैनी सूझ-बूझ रखने वाले दीपक पारेख तो अपने चाचा से भी कड़क निकले और एचडीएफसी लिमिटेड तथा एचडीएफसी बैंक लिमिटेड दोनों के कारोबार को बिना ब्रेक लगी तेज रफ्तार से आगे बढ़ाते ही रहे। दोनों कंपनियां अपने-अपने क्षेत्र में बेजोड़ हैं।

इस कामयाबी का रहस्य समझने की जरूरत है। सर्वेसर्वा होते हुए भी दीपक पारेख कभी भी प्रमोटर की सीट पर नहीं बैठे वह स्वयं को कंपनी का कर्मचारी मानकर समर्पित रहे, यह है कार्यशैली।विलय के प्रभावी होने के मौके पर पद्मभूषण ७८ वर्षीय दीपक पारेख ने कहा मैंने अपनी पारी पूरी कर ली, अद्यतन टेक्नोलॉजी के समावेश से एचडीएफसी की लिखी इबारत कभी नहीं मिटने दी जाएगी। पिछले साल ही पितृ कंपनी या प्रमोटर एचडीएफसी लिमिटेड का विलय एचडीएफसी बैंक में करने का निर्णय कर लिया गया था। उसी के तहत 2023, 1 जुलाई से विलय प्रभावी भी हो गया। एचडीएफसी लिमिटेड की कुल चुकता शेयर पूंजी (पेड अप शेयर कैपिटल) 368 करोड़ रुपए है, इसने 2022-23 में 60 हजार 177 करोड़ रुपए की आय पर 16 हजार 239 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया, जबकि एचडीएफसी बैंक की चुकता शेयर पूंजी 557 करोड़ रुपए, आय 1 लाख 62 हजार करोड़ रुपए और इस पर शुद्ध लाभ 44 हजार 108 करोड़ रुपए कमाया।

विलय से देश के सारे बैंक एचडीएफसी बैंक से पीछे तो हो ही गए, इससे भी अकल्पनीय उपलब्धि भारत के नाम दर्ज हो गई। बताते चलें कि टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप प्रमोटेड टाइम्स बैंक का विलय वर्ष 2000 में और 2008 में सेंचुरियन बैंक ऑफ पंजाब का विलय एचडीएफसी बैंक में किया गया था। विलय के बाद की स्थिति यह बनी है, इसकी शाखाओं की संख्या 8,300 हो गई (2023, मार्च में 7821 थी, और 3811 नगरों- कस्बों में 19727 एटीएम का नेटवर्क) और इसके ग्राहकों की संख्या 12 करोड़ के लगभग हो गई है।

वैश्विक स्तर पर सिर्फ तीन ऐसे बैंक हैं जो एचडीएफसी बैंक से आगे हैं – विश्व का सर्वाधिक मूल्यवान यानी प्रथम स्थान पर है अमेरिका का जेपी माॅरगन चेज़, इसका बाजार पूंजीकरण 34 लाख 85 हजार करोड़ रुपए है, 19 लाख 70 हजार करोड़ रुपए के बाजार पूंजीकरण वाला इंडस्ट्रियल ऐंड कामर्शियल बैंक ऑफ चाइना दूसरे स्थान पर और बैंक ऑफ अमेरिका तीसरे पायदान पर है जिसका बाजार पूंजीकरण 18 लाख 75 हजार करोड़ रुपए है। विलय के पूर्व एचडीएफसी लिमिटेड का 5 लाख 22हजार करोड़ रुपए का और एचडीएफसी बैंक का 9 लाख 51हजार करोड़ रुपए का बाजार पूंजीकरण था। विलय के बाद एचडीएफसी बैंक का पूंजीकरण 14 लाख 73 हजार करोड़ रुपए यानी यह भारतीय पारेख द्वारा पोषित विश्व में चौथा मूल्यवान बैंक बन गया।

बैंक के सीईओ हैं अकल्पनीय इसलिए कि विश्व के सबसे बड़े पांच बैंकों में एचडीएफसी बैंक चौथे पायदान पर पहुंच कर इतिहास रच दिया, जोकि भारत और भारतीयों के लिए अभी तक बस एक ख्वाब था। बैंक के नये अवतार के सारथी (सीईओ) शशिधर जगदीशन हर चार सालों में बैंक का आकार दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने के खातिर प्रति वर्ष 1500 शाखाएं खोलने का इरादा रखते हैं। देखिए, आगे होता है क्या?

प्रणतेश बाजपेयी