घाघ कहें सुन भड्डरी

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# शिवचरण चौहान

कहते हैं महाकवि घाघ का जन्म देवोत्थान एकादशी को सन 1753 को हुआ था। उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के पास घाघ की सराय गांव बसा हुआ है। जो उनके नाम पर बसाया गया। घाघ किसानों के कवि हैं मौसम के कवि हैं और ज्योतिष के कवि हैं। उनकी कहावतें जन-जन में प्रसिद्ध है। शिव सिंह सरोज ग्रंथ में उनकी जन्मतिथि 1753 बताई गई है जबकि पंडित राम नरेश त्रिपाठी उन्हें अकबर का समकालीन मानते हैं। घाघ की जन्म तिथि जन्म स्थान को लेकर विवाद रहा है।
कन्नौज और कानपुर के आसपास के ब्राह्मण समाज के लोग उन्हें अपना मानते हैं। आज के युग में घाघ की कहावतें सटीक उतरती है।

कहते हैं घाघ को अपनी मौत का पूर्वानुमान था और वह किसी तालाब में नहीं नहाते थे क्योंकि उनकी मौत पानी में डूबने से होगी वह जानते थे। इसलिए अकेले किसी तालाब में नहीं नहाते थे। कहते हैं बहुत सावधानी के बावजूद घाघ की मृत्यु तालाब में डूबने से ही हुई।

ये ना जाने घाघ निर् बुद्धि।
आवे मीच विनासे बुद्धि।।

जब मृत्यु आती है तो सारी भविष्यवाणियां बेकार हो जाती है। घाघ की जयंती पर उन्हें प्रणाम।