लखनऊ। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान इन दिनों किसी पुरस्कार या साहित्य की वजह से नहीं बल्कि लाखों के कबाड़ को मात्र 90,000 रुपए में बेचने को लेकर चर्चा में है। आरोप है कि मिलीभगत करके लाखों रुपए का लोहा और दर्जनों अलमारी (रैक) बेचकर विभाग को चूना लगाया गया है। मामले की शिकायत पर अपर मुख्य सचिव जितेंद्र कुमार ने हिंदी संस्थान के निदेशक को इस पूरे प्रकरण की जांच कर तत्काल आख्या भेजने को कहा है।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान पर प्रदेश और केंद्र सरकार के नियम लागू होते हैं। इस संस्थान के सौंदरीकरण के समय भी तमाम प्रकार के आरोप लगे थे। उसके उपरांत अवशेष बचे (पुराना लोहा रैक, लकड़ी और आठ एयर कंडीशन) कबाड़ में पड़े थे। अब आरोप है कि उसको बेचने के लिए 3 जुलाई 2023 को पहली बार कोटेशन दिया गया। इसके अलावा प्रेमचंद सभागार और निराला सभागार से निकाले गए पुराने एयर कंडीशन, जिसमें छह विंडो एसी और दो स्प्लिट एसी थे, भी बेच दिये गये। बताया जाता है कि इन एयर कंडीशन की हालत इतनी खस्ता नहीं थी, जितनी की बता कर बेच दी गईं।
जानकारों के अनुसार नियम यह है कि इसमें टेंडर का विज्ञापन बनाकर जेम पोर्टल के ऑक्सन पेज पर अपलोड करना चाहिए था। जिससे कि पूरे देश भर के जो भी जेम से जुड़े और पात्रता की क्राईटेरिया में आने वाले लोगों को तुरंत ही यह विज्ञापन दिखने लगता। और फिर पूरे देश से निविदाएं आने लगतीं। उसके आधार पर संस्थान को लाखों रुपए की आय होती।
इसकी शिकायत तेलीबाग निवासी आनंद प्रसाद ने अपर मुख्य सचिव भाषा विभाग जितेंद्र कुमार से की। इसके बाद अपर मुख्य सचिव जितेंद्र कुमार ने 17 जनवरी 2025 को हिंदी संस्थान के निदेशक को मामले का परीक्षण कर तत्काल आख्या देने को निर्देशित किया है। आनंद कुमार ने अपने पत्र में यह भी आरोप लगाया है कि संस्थान के तीन हाल और बुकशाप के निर्माण कार्यों के संबंध में शासन के भाषा विभाग द्वारा नामित संस्था से और अलग से एक अन्य संस्था से भी निर्माण कार्यों को कराया गया है। निर्माण कार्यों के समय हाल और बुकशाप से निकली निष्प्रयोज्य सामग्री को प्रक्रिया के तरीके से नीलामी न करके कोटेशन के आधार पर लाखों की सामग्री मात्र 90,000 रूपए में बेची गई है।
गौरतलब है कि केंद्र और प्रदेश सरकार ने मैनपावर की सप्लाई और स्क्रैप की नीलामी जेम पोर्टल से ही करने के सख्त निर्देश जारी किए हुए हैं। शिकायतकर्ता का यह भी आरोप है कि संस्थान में आउटसोर्सिंग भर्ती में शासनादेशों एवं वित्तीय नियमों का उल्लंघन करते हुए मनमाने ढंग से कार्मिकों को रखा गया है। इसी प्रकार संस्थान द्वारा संचालित योजनाओं में प्रकाशन अनुदान व साहित्यकार कल्याण कोष में वर्तमान में एक ही व्यक्ति को दो अलग-अलग नाम से धनराशि का भुगतान किया जा रहा है। बहरहाल शिकायत की जानकारी और शासन द्वारा इस पूरे प्रकरण में जांच करने के निर्देशों के बाद इस घोटाले के जिम्मेदारों के हाथ पांव फूले हुए हैं।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक