और टेस्ट ट्यूब बेबी बन गया दस हजार करोड़ का उद्योग

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और टेस्ट ट्यूब बेबी बन गया दस हजार करोड़ का उद्योग…… भारतीय दंपतियों में प्रजनन की समस्या विकराल हो रही है।इस समस्या ‌ने टेस्ट ट्यूब बेबी (जिसे कृत्रिम गर्भाधान या कृत्रिम प्रजनन भी कहा जाता है) को बहुत बड़ा उद्योग बना दिया है। नि:संतान दंपतियों को कृत्रिम गर्भाधान के जरिए संतान उपलब्ध कराने वाले इस उद्योग में अंतर्राष्ट्रीय निवेशक बड़े पैमाने पर पूंजी लगाकर मुनाफा कमाने का जुगाड़ कर रहे हैं।

पहले आपको कृत्रिम प्रजनन या टेस्ट ट्यूब बेबी की पृष्ठभूमि के बारे में बताते हैं। दंपति में किन्हीं कमियों के कारण प्राकृतिक प्रजनन संभव नहीं हो पाता है जिसके परिणामस्वरूप उन्हें संतान नहीं होती है। रिसर्च और टेक्नोलॉजी ने नि: संतान दंपतियों को कृत्रिम गर्भाधान के जरिए संतान उत्पन्न करना आसान कर दिया।

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राबर्ट्स‌ एडवर्ड्स ने 1978 में मानव गर्भ के बाहर प्रयोगशाला में एक मानव भ्रूण को विकसित करने में सफलता प्राप्त की। इस तरह भ्रूण से कृत्रिम रूप से गर्भ में रोपण किया गया और उससे उत्पन्न संतान को ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ कहा गया। दूसरे शब्दों में – महिला अंडों और पुरुष शुक्राणुओं को मिला कर प्रयोगशाला में भ्रूण विकसित किया जाता है और तब उस भ्रूण को वापस महिला गर्भ में रोपण कर दिया जाता फिर वह विशेषज्ञ की देखरेख में पेट में पलता है, इस प्रक्रिया को ‘इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (आईवीएफ) कहा जाता है।

भारत में मुंबई के जसलोक अस्पताल की डाॅ. इंदिरा हिंदुजा ने आईवीएफ से 1986, 6 अगस्त को भारत की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म कराया जिसका नाम हर्षा रखा गया था। संयोग है कि डाॅ इंदिरा हिंदुजा ने ही 2016, 8 मार्च को हर्षा की संतान को भी जन्म दिलाया। डाॅ इंदिरा अब तक सोलह हजार टेस्ट ट्यूब बेबी को जन्म दिला चुकी हैं। भारत में खान-पान, प्रदूषण, डायबिटीज में वृद्धि, तथा बंधनमुक्त जीवन शैली आदि की वजह से दंपतियों की प्रजनन शक्ति प्रभावित होने से आईवीएफ क्लिनिक की संख्या तेजी से बढ़ी है। मेडिकल रिपोर्ट्स के अनुसार देश में प्रजनन केंद्रों अर्थात आईवीएफ क्लिनिक्स की कुल संख्या 2500 से अधिक हो गई है।

देश में आईवीएफ का बाजार 16-17 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ रहा है, वर्ष 2020 में 6400 करोड़, 2021में 7480 करोड़ से बढ़कर 2022 में 8758 करोड़ रुपए से अधिक हो गया। चालू वर्ष में इसके दस हजार करोड़ रुपए से ऊपर पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। भारतीय आईवीएफ बाजार में विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी है। जानकारी है कि हांगकांग और बोस्टन की निवेशक बीपीईए क्यूटी बड़ी मात्रा में पूंजी लगा रही है।

जयपुर में अजय मरडिया द्वारा 1988 में स्थापित इंदिरा आईवीएफ देश की सबसे बड़ी और विश्व की टाप पांच आईवीएफ सेवा प्रदाताओं में है। बीस राज्यों में इसके 111 आईवीएफ सेंटर सक्रिय हैं। यह असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) के जरिए अब तक 1.25 लाख दंपतियों को कृत्रिम प्रजनन उपलब्ध करा चुकी है। हांगकांग की बीपीईएक्यूटी इंदिरा आईवीएफ की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए 600 करोड़ रुपए का निवेश कर रही है।

आईवीएफ सायकिल की लागत 1.70-2 लाख रुपए आती है, इसके बाद गर्भावस्था के नौमाह (प्रेगनेंसी पीरियड) के दौरान नियमित चेकअप -टेस्टिंग आदि पर एक लाख -डेढ़ लाख रुपए का ख़र्च अलग। इस तरह कुल खर्च 2.75-3.50लाख रुपए आता है।

प्रणतेश बाजपेयी