किराडू : अनुपम स्थापत्य कला

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स्थापत्य कला का अनुपम स्थल राजस्थान का ‘किराडू”। ‘किराडू” को राजस्थान का खजुराहो भी कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। नख से सिख तक स्थापत्य कला का विलक्षण एवं अनुुपम सौन्दर्य। या यूं कहा जाये कि खण्डहर में सौन्दर्य-लालित्य एवं माधुर्य का संगमन। ‘किराडू” कभी राजस्थान का सौन्दर्य शहर था लेकिन अब तो सिर्फ स्थापत्य कलात्मकता को रेखांकित करने वाला खण्डहर रह गया। खण्डहर के इस स्थल में भी सौन्दर्य की लालिमा अभी भी आलोकित है। कण-कण एवं तृण-तृण में सौन्दर्य का अनुगूंथन दर्शकों को आकर्षित करता है। कारीगरों की कुशलता एवं वास्तुशिल्प सौन्दर्य को देख कर कलात्मकता से अभिभूत होना स्वाभाविक है।

विशेषज्ञों की मानें तो ‘किराडू” सौन्दर्य से लबरेज तो है लेकिन अभिशप्त हो गया। ‘किराडू” में सौन्दर्य शिल्प के साथ ही धार्मिकता का आवलम्बन है। सौन्दर्य शिल्प एवं धार्मिकता की अनुभूति एवं दृश्यावलोकन के लिए देश-दुनिया के पर्यटक दर्शक आते हैं। ‘किराडू” देश-दुनिया में मंिदरों की शिल्पकला के लिए विख्यात है। इस मंदिर श्रंखला का निर्माण 11 वीं शताब्दी में किया गया था लेकिन करीब नौ सौ वर्ष से यह ‘सौन्दर्य शिल्प स्थल” विरान पड़ा है।

खास यह है कि सूर्योदय से लेकर सांझ तक कोई भी आ जा सकता है लेकिन सांझ के बाद ‘किराडू” में रुकने का साहस कोई नहीं कर पाता। कारण स्थल का श्रापित होना है। विशेषज्ञों की मानें तो स्थल पर उपलब्ध शिलालेख दर्शाते हैं कि मंदिर श्रंखला का निर्माण परमार राजवंश के राजा दुलशालराज एवं उनके वंशजों ने कराया था। राजस्थान के इतिहासकारों की मानें तो ‘किराडू” सुख सुविधाओं से सम्पन्न का सुन्दर शहर था1 व्यापार भी बेहतर था। इस सुन्दर शहर को श्राप लगा जिसके बाद ‘किराडू” विरान हो गया लेकिन ‘स्थापत्यकला-शिल्पकला-सौन्दर्य” की ख्याति हो गयी।

किवदंती है कि ‘किराडू” में प्रवास करने वाला एक साधु अपने शिष्यों को ‘किराडू” में छोड़ कर देशाटन पर निकल गये लेकिन जब लौट कर आये तो क्षोभ हुआ। शिष्य अचानक बीमार हो गये थे लेकिन एक कुम्हारिन को छोड़ कर किसी ने भी बीमार शिष्यों की देखभाल नहीं की। क्रोधित साधु ने श्राप दिया कि जिस स्थान पर दयाभाव नहीं, वहां मानवजाति को नहीं होना चाहिए। बस साधु के इस श्राप के बाद ‘किराडूू” की आबादी पत्थर की हो गयी। कहावत है कि सूर्यास्त के बाद स्थल पर पत्थर बनने की आशंका से कोई नहीं रुकता। ‘किराडू” में कभी पांच विशाल सौन्दर्ययुक्त मंदिरों की श्रंखला थी।

सदियों से विरान होने के कारण काफी क्षति भी हुयी। अब विष्णु मंदिर एवं सोमेश्वर मंदिर ही सुरक्षित रह गये। सोमेश्वर मंदिर शीर्ष (सबसे बड़ा) मंदिर है। माना जाता है कि विष्णु मंदिर के निर्माण से ही स्थापत्यकला का प्रारम्भ हुआ। सोमेश्वर मंदिर को इस कला के उत्कर्ष का अंत माना जाता है। ऐसी मान्यता है। ‘किराडू” के मंदिरों का शिल्प न केवल विलक्षण है बल्कि अद्भूत है। शिल्प एवं सौन्दर्य देख कर दर्शकों को एहसास होता है कि जैसे अचरज लोक में पहंुच गये हों। ‘किराडू” की बेमिसाल कथायें-कहानियां अतीत की यशोगाथा को बयां करती हैं तो वहीं सौन्दर्य लुभाता है।

पत्थरों में विद्यमान कला का सौन्दर्य स्वत: ही अचरज पैदा करता है। सोमेश्वर मंदिर में भगवान शिव प्राण प्रतिष्ठित हैं। मंदिर की बनावट दर्शनीय है। खम्भ आधारित संरचना वाला यह मंदिर दक्षिण भारत के मीनाक्षी मंदिर का स्मरण कराता है। आवरण मध्य प्रदेश के खजुराहो को रेखांकित करता है। नीले एवं काले पत्थर श्रंखला से बने हाथी घोड़े एवं नक्कासी मंदिर के सौन्दर्य को चार चांद लगाती है। खण्डहर होने के बावजूद देश-दुनिया के दर्शक ‘किराडू” का सौन्दर्य निहारने आते हैंं।