चांदनी छाई धरा पर शरद ऋतु आई

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मनभावन ऋतु शरद का आगमन हो गया है। आसमान निरमल है। बादल उधम मचा कर लौट चुके हैं। तेज हवाएं थम गई हैं। ताल तालाबों ,झीलों का जल स्थिर हो गया है। तालाबों में कुमुदिनी सुभाषित होने लगी है। भोर में कमल खिल खिलाने लगे हैं। चांदनी रात रानी बेला के श्वेत फूल सुगंध बिखेरने लगे हैं। गेंदे के फूल में कलियां आने लगी हैं। गुलदाउदी, गुलाबास और कुनैन के फूलों पर भ्रमर गुंजन करने लगे हैं।

तितलियां रंग बिरंगे रंग लेकर फूलों के पास आने लगी हैं। चिड़िया चहक ने लगी है। और शरद ऋतु कांस के धवल फूलों की ओढ़नी ओढ़े कमल के फूल सा मुखड़ा लिए चहकती महकती हुई आ गई है। रात में चंद्रमा अपनी पूरी छटा के साथ आकर आसमान में विराजमान हो गया है।

चांदनी से अमृत की बूंदें झर रही है। धान के पौधों में बालियां अपना सिर झुका, किसान की राह देख रही हैं। ज्वार के भुट्टे श्वेत मोती के दाने से निखर आए हैं। बाजरा सीना ताने पका हुआ खड़ा है। चतुर किसान फसल की कटाई में जुट गए हैं। धान बाजरा, ज्वार खेत खलिहान उसे होता हुआ किसान के बखारी में आ रहा है। फागुन में जो चर्चा बसंत ऋतु की होती है। वही चर्चा कार्तिक में शरद ऋतु की होती है। शरद ऋतु में दिन में गर्मी और उमस होती है और रातें सिहरन करने वाली। शरीर में शरद सुरसुराने लगती है।

बसंत की ही तरह शरद ऋतु में संस्कृत हिंदी उर्दू के कवि शायरों और साहित्यकारों की प्रिय ऋतु है। कालिदास ने अपने ग्रंथ ऋतु संहार में शरद का मनोहारी चित्रण किया है। लो आ गई नववधू सी शोभित शरद। कालिदास ने शरद ऋतु को रितुओं की नायिका बताया है। महाकवि तुलसीदास ने राम के मुख से शरद ऋतु की महिमा बखान कराइ है।

बरखा विगत सरद ऋतु आई। सुधि न तात सीता कर पाई।।

हे लक्ष्मण, शरद ऋतु आ गई है पर अभी तक हमें प्यारी सीता की खबर नहीं मिली।

जानि सरद ऋतु खंजन आए। पाय समय जिमि सुक्रत सुहाए।।

हे लक्ष्मण, शुभा वनी ऋतु शरद आ गई है। खंजन पक्षी धरती पर उतर आए हैं पर अभी सीता की खोज खबर नहीं हुई।

फूले कांस सकल महि छाई। जनु बरखा कृत प्रगट बुढ़ाई।।

कालिदास से लेकर तुलसीदास तक और तुलसीदास से लेकर आज तक के कवियों लेखकों, शायरों ने शरद के आगमन का चित्रण अपनी रचनाओं में किया है। कितनी सुंदर शरद जिसमें शरद पूर्णिमा होती है। शरद पूर्णिमा की रात चांद से अमृत की बरसात होती है। इस वर्ष अधि मास होने के कारण सभी ऋतुयें एक एक पखवारे यानी 14-14 दिन आगे खिसक गई है।

सावन में जहां भगवान देवाधिदेव महादेव की पूजा होती है वही अश्विन मास में प्रथम पूज्य गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है। अश्विन मास के बाद नवरात्र शुरू होते हैं। इन्हें शारदीय नवरात्र कहा जाता है। शारदीय नवरात्र में मां शक्ति की सभी स्वरूपों की पूजा होती है। कुंवारी कन्या देवी का रूप मानी जाती हैं। और घर-घर उनकी पूजा कर उन्हें भोज कराया जाता है। दक्षिणा देकर सुख समृद्धि की कामना की जाती है। लोग घरों में घट स्थापित करते हैं। मूर्ति स्थापित करते हैं और उपवास व्रत रखते हैं।

शरद ऋतु में ही शक्ति की पूजा कमल नैनों से करके भगवान राम ने दशानन का वध किया था। विजयदशमी का पर्व शरद ऋतु में ही मनाया जाता है। नीलकंठ की पूजा की जाती है। शरद ऋतु में ही दिवाली मनाई जाती है। दिवाली तक किसानों का सारा धान, ज्वार, बाजरा, तिल, मूंग, उड़द, लोबिया आदि फसलें घरों में आ जाती हैं। व्यापारियों के बही खातों का मिलान होता है। और कार्तिक अमावस्या की रात दीपावली में लक्ष्मी गणेश की पूजा की जाती है।

दशहरे के बाद शरद पूर्णिमा तक गांव में खेतों की जुताई हों जाती हैं। गेहूं की बुवाई शुरू हो जाती है। गन्ने के खेत से गुड़ बनाने के लिए कोल्हू लगाए जाने लगते हैं। गांव-गांव में टेसू और झुंझिया रानी का विवाह कराया जाता हैं। उल्लास की ऋतु है शरद। सावन में नाग पंचमी से शुरू हुए अखाड़े और दंगल समाप्त होने लगते हैं और गंगा किनारे तीर्थ स्थानों पर मेले लगने शुरू हो जाते हैं। आइए उत्सव प्रधान शरद ऋतु का स्वागत करें।।

# शिवचरण चौहान