बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें तेजी से बढ़ने का सिलसिला थम ही नहीं रहा है। मार्च से अब तक इनकी कीमतों में 15 से 20 प्रतिशत का जोरदार इज़ाफ़ा दर्ज हो चुका है, इसके बावजूद उपभोक्ताओं को प्राइस रिवीज़न का कोई ओर-छोर समझ में नहीं आ रहा है। कीमतों में उछाल की अहम वजह बीते महीनों में इनके आयात में खासी कमी होना बताया गया है। बाजार गणित के हिसाब से आने वाले महीनों में खाद्य तेलों के मूल्य बढ़ने की ही संभावना अधिक लग रही है।
इस साल मार्च में सबसे ज्यादा बिकने वाला जो सोयाबीन रिफांइड तेल 90-92 से 95-100 रुपए लीटर के दायरे में था। उपभोक्ता को इसकी खरीद पर मौजूदा में 106-110 से लेकर 120-122 रुपए दुकानदार को देने पड़ रहे हैं। आगे नवरात्रि और त्यौहारों के आने पर कीमतें और ऊपर जा सकती हैं।
मार्च तक खुदरा स्तर पर खाद्य तेलों के मूल्य सामान्य चल रहे थे। लेकिन उसके पहले राजनैतिक पटल पर बदलाव हो चुके थे। पहले अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर में हालात अचानक पलट गए, उसके बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम संसद में 11 दिसंबर को पास होने के बाद मलेशिया के शीर्ष नेतृत्व ने इस अधिनियम को लेकर भारत पर असह्यनीय बयान दिए।
भारत ने 2020, 8 जनवरी को आरबीडी पामोलीन जिसे रिफांइड ब्लीच्ड डिओडराइज़्ड कहा जाता है, को प्रतिबंधित सूची में डाल दिया। देश में सर्वाधिक आयात मलेशिया और इंडोनेशिया से होता है। इसके आयात पर प्रतिबंध लगने सेआयातित आरबीडी की आपूर्ति यकायक थमने से घरेलू बाजार तेजी की धारणा में आ गया। यहीं से उत्पादन स्तर पर कीमतों के बढ़ने की शुरुआत हुई।
देश में खाद्य तेल उद्योग के अग्रणी संगठन साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन से ली गई जानकारी के अनुसार चालू तिलहन वर्ष 2019-20 (नवंबर से शुरू हो कर अक्टूबर में खत्म होता है) के पहले 10 महीनों में इनके आयात में 14 लाख टन की कमी आई। पिछले तिलहन वर्ष में नवंबर से गत अगस्त में समाप्त 10 महीनों में 1.23 करोड़ टन का आयात किया गया। इसकी तुलना में समान अवधि में आयात 11 प्रतिशत से भी ज़्यादा घटकर 1.09 करोड़ टन रह गया। जबकि घरेलू मांग मंथर गति से बराबर बढ़ती ही रही।
इस साल फ़रवरी-मार्च में देश के सामान्य से लेकर पाॅश यानी अलग-अलग स्तर की दुकानों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय ब्रांड का जो रिफांइड सोयाबीन तेल 90-92 रुपए से लेकर 98-100 रुपए प्रति लीटर के दाम पर बिकता था, उसकी कीमत बढ़ते-बढ़ाते मौजूदा में 120 रुपए और खास जगहों पर तो इससे भी ज्यादा भाव पर बेचा जा रहा है। इस समय सनफ्लाॅवर तेल के मूल्य फुटकर में 128-130 रुपए प्रति लीटर के उच्च स्तर पर पहुंच गए हैं, इसके भाव लगभग महीना भर पहले 115-116 रुपए के आसपास थे।
आगे बाजार के हालात (सरकार की नीत भी) और खाद्य तेलों की उपलब्धता के साथ-साथ उत्पादकों की रणनीति कीमतों के निर्धारण में भूमिका निभाएंगे। हालांकि खाद्य तेलों के प्रमुख रिफायनर जगदीश गुप्ता का कहना है कि रक्षा बंधन के बाद से बाजार में मांग कमजोर चल रही है। उन्होंने आगे देसी तिलहनों की नई फसल आ जाने और मलमास बाद त्यौहारी सीजन शुरू होने पर तेल मूल्यों में कमी होने की संभावना जताई।
भारत को खाद्य तेलों की साल दर साल बढ़ती खपत को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर इनके आयात पर निर्भर करना पड़ता है। एसोसिएशन से ली गई जानकारी के अनुसार चालू तिलहन वर्ष 2019-20 (नवंबर से दिसंबर) में घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की खपत 3.76 करोड़ टन यानी 37.60 करोड़ क्विंटल पहुंचने का अनुमान है, जबकि अमेरिकी कृषि विभाग ने 2020-21 के दौरान भारत में 3.84 करोड़ टन मांग होने का अनुमान लगाया है। भारतीय खाद्य तेलों का सालाना बाजार 1.50 लाख करोड़ रुपए से 1.55 लाख करोड़ रुपए का आंका जाता है। आयात निर्भरता इसी से स्पष्ट होती है कि देश खाद्य तेलों और तिलहनों के आयात पर सालाना 72-75 हजार करोड़ रुपए की कीमती विदेशी मुद्रा खर्च करता है।
बीते एक दशक में खाद्य तेलों के आयात में 174 प्रतिशत की बढ़त हुई। वित्त वर्ष 2019-20 में घरेलू फसलों से पैदा तिलहनों से 85.35 लाख टन (वित्त वर्ष 2018-19 में 76.87 लाख टन) खाद्य तेलों का उत्पादन हुआ था। खाद्य तेलों के कुल आयात में सबसे ज्यादा पाम आयल का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा रहता है, जबकि 25 प्रतिशत सोयाबीन तेल का और 12 प्रतिशत हिस्सा सूरजमुखी का रहता है।
सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 1949-50 में खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत सिर्फ 3 किलो थी जो बढ़कर 2016-17 में 18.50 किलो और इस साल के अंत तक 21.70 किलो के स्तर पहुंचने का अनुमान है।
प्रणतेश नारायण बाजपेयी