लखनऊ। लड़ाई का एक सिद्धांत यह भी है कि यदि विरोधी मूर्ख हो तो उसे चिढ़ा दो, वह अपने आप पैर पटकते हुए मैदान छोड़कर भाग जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शायद लड़ाई की इस विधा के मास्टर हैं। तभी तो वे गाहे-बगाहे अपने विरोधियों पर यह सिद्धांत आजमाते रहते हैं। वे अपने प्रतिपक्षी को इतना चिढ़ा देते हैं कि वे गुस्से में आकर उनकी मनचाही इच्छा पूरी कर देते हैं। जैसा कि इस बार भी हुआ। मोदी ने कन्याकुमारी में ध्यान लगाने का क्या निर्णय लिया विरोधियों ने चिल्लाना शुरू कर दिया। असर ये हुआ कि मोदी के ध्यान कार्यक्रम का इतना प्रचार हुआ कि जिसको नहीं भी जानना था वह भी जान गया।
चुनाव के आखिरी चरण के मतदान का प्रचार खत्म होने के बाद खबर आई के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 मई की शाम से एक जून तक कन्याकुमारी में रहेंगे। वे वहां पर अम्मन माता मंदिर में मां पार्वती के कुंवारी रूप के दर्शन करेंगे और विवेकानंद राक मेमोरियल में जाकर ध्यान लगाएंगे, मौन रखेंगे। बस फिर क्या था विरोधियों में चिल्लाना शुरू कर दिया। कांग्रेस के प्रवक्ता ने तो इसे आचार संहिता का उल्लंघन बताते हुए इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की और इस कार्यक्रम का टीवी प्रसारण रोकने की मांग कर दी। दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी धमकी दी कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान कार्यक्रम टीवी पर दिखा तो वे भी इसकी शिकायत करेंगी। कांग्रेस की शिकायत पर चुनाव आयोग ने क्या किया इसकी तो जानकारी अभी तक नहीं हो पाई है किंतु नरेंद्र मोदी के ध्यान कार्यक्रम का इतना प्रचार हो गया जितने की कल्पना भाजपा ने भी नहीं की होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कन्याकुमारी में लगभग 45 घंटे रहे और बाकायदा टीवी चैनल इसको दिखाते रहे। और तो और टीवी चैनलों पर इस कार्यक्रम को लेकर डिबेट भी चलती रही।
30 मई की शाम से है टीवी चैनलों पर विपक्षी गठबंधन के नेताओं के बयान आने शुरू हो गए थे। 31 को पूरे दिन टीवी चैनलों में प्रधानमंत्री का ध्यान कार्यक्रम चर्चा का विषय बना रहा है। जितनी शिद्दत से विरोधी नेताओं ने नरेंद्र मोदी के इस कार्यक्रम का विरोध किया उतना ही लोग टीवी चैनलों पर बैठकर इसे देखते रहे। इसमें जनता का दो फायदा हुआ एक तो लगे हाथ उसने कन्याकुमारी देखा, अम्मन मा का दर्शन किया। इसमें खास बात यह रही कि सामान्य घरों की वे महिलाएं जिनका राजनीति से कोई बहुत लेना देना नहीं था वे भी बैठकर टीवी पर अम्मन माता के दर्शन करती रहीं और ध्यान कार्यक्रम को देखते रहीं। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार कई महिलाओं का तो यह कहना था कि विपक्ष भी बड़ा अजीब है। अब क्या किसी के देवी दर्शन और ध्यान पर भी रोक लगा दिया जाएगा। यह तो गलत है।
ख़ैर, इस बारे में कुछ नेताओं के बयानों की बानगी देखिए। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि मोदी ध्यान नहीं ढोंग कर रहे हैं। अगर उन्हें ध्यान ही करना है तो बंद कमरे में करना चाहिए। टीवी-कैमरा लगाकर ध्यान करना सीधे-सीधे आचार संहिता का उल्लंघन है। इसके बाद बारी आई समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की। उन्होंने कहा कि मोदी को अभी ध्यान करने की क्या जरूरत है। 4 जून के बाद तो जनता वैसे ही उनको खाली कर देगी। फिर चाहे जितना ध्यान करें। इस मसले पर बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि अब साधना से कुछ नहीं होने वाला। मोदी जी फुर्सत पाने ही वाले हैं। अब वे आराम से ध्यान लगाएंगे। टीएमसी नेता और आसनसोल से उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा ने इसे मैडिटेशन नहीं मीडिया अटेंशन करार दिया। और कहां कि प्रधानमंत्री को ये शोभा नहीं देता। इस तरह के मीडिया अटेंशन से उन्हें बचाना चाहिए। यानी कुल मिलाकर विपक्षी दलों को प्रधानमंत्री के इस ध्यान कार्यक्रम में भी वोट की राजनीति दिखी। वे विरोध करने के चक्कर में भूल गए कि वे सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चक्रव्यूह में घुसते जा रहे हैं। जिसमें फंसने के बाद वापसी की कोई गुंजाइश नहीं। और हुआ भी वही। विरोधियों ने इस पर इतना हो हल्ला मचाया कि यह बात पूरे देश में फैली। जिसको टीवी पर यह कार्यक्रम नहीं देखना था, उसने भी देखा। इसका जो मैसेज जाना था वह चला गया। विपक्षी मुंह ताकने के अलावा और कुछ नहीं कर पाए। 45 घंटे के ध्यान और साधना में मौन रहकर मोदी ने विरोधियों को पटखनी दे दिया। उन्होंने बिना बोले ही वो आवाज बुलंद कर दी है कि जिसकी गूंज बहुत दूर तक सुनाई दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके पहले भी 2019 के लोस चुनाव के समय उत्तराखंड में केदारनाथ स्थित एक गुफा में ध्यान लगाने पहुंचे थे। उसने बेवफा में लगभग 19 घंटे ध्यान मग्न रहे। तब भी विपक्ष का रुख ऐसा ही रहा था। 2014 में भी प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार समाप्त होने पर छत्रपति शिवाजी से जुड़े प्रतापगढ़ (महाराष्ट्र) में गए थे। वहां पर भी उन्होंने ध्यान लगाया था। तब भी विपक्ष इसको लेकर मोदी पर हमलावर रहा। हालांकि इस बारे में भाजपाइयों का कहना है कि वे तो चुनाव प्रचार की आपाधापी से फुरसत पाकर शांति से ध्यान लगाने चले जाते हैं, और थोड़ा मौन व्रत धारण करते हैं। इससे मेडिटेशन भी हो जाता है। अब इसमें किसी को राजनीति दिखती है तो वह हमारा सर दर्द नहीं। प्रधानमंत्री को ईश्वर का ध्यान लगाने से कोई नहीं रोक सकता। बहरहाल भाजपाइयों ने इसे नरेंद्र से लेकर नरेंद्र तक की यात्रा करार दिया है। उल्लेखनीय कि इसमें पहले वाले नरेंद्र स्वामी विवेकानंद हैं। उनका संन्यास लेने के पूर्व का नाम नरेंद्र ही था जबकि वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी का तो नाम ही नरेंद्र है।
दरअसल विपक्षी दलों की चिंता का कारण यह था कि स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे। और पश्चिम बंगाल में उनके ढेर सारे अनुयाई हैं। यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल पर ध्यान करेंगे तो इसी बहाने पश्चिम बंगाल का नाम आएगा। और जब पश्चिम बंगाल का नाम आएगा तो यह बात पश्चिम बंगाल के समर्थकों तक बिना बोले पहुंच जाएगी। पूरे मामले में विपक्षी दल मोदी के जाल में फंस गए और वही किया जिसके बारे में नरेंद्र मोदी ने सोचा था। अभी एक जून को पश्चिम बंगाल के कई लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होने हैं। देखना यह होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ध्यान, साधना से पार्टी को कितना लाभ होगा। और मोदी पश्चिम बंगाल के बाकी बचे वोटरों को कितना प्रभावित कर पाए।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक