सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा

* अभी परिणाम की घोषणा हुई नहीं और प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी होने लगी * मल्लिकार्जुन खड़गे की एक जून को बुलाई बैठक में आने से ममता का इनकार * कांग्रेस पार्टी का सौ से ऊपर सीटें जीतने का दावा, निगाहें पीएम की कुर्सी पर

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लखनऊ। देश की 18वीं लोकसभा के लिए एक जून को आखिरी चरण का मतदान होना है। इसके बाद सभी पार्टियों और उनके प्रत्याशियों का राजनीतिक भविष्य इवीएम में कैद हो जाएगा। फिर आगामी 4 जून को पता चलेगा किसकी सरकार बन रही है। सरकार बनाने को लेकर सबके अपने-अपने दावे हैं। एनडीए जहां 400 सीटें पार कर प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त है वहीं इंडी गठबंधन बहुमत के साथ सरकार बनाने की बात कह रहा है। कांग्रेस अकेले लगभग सवा सौ सीटें जीतने का दम भर रही है। पर इसमें खास बात यह है कि अभी न तो एग्जिट पोल के परिणाम आए हैं और न ही वास्तविक परिणाम परंतु विपक्ष में प्रधानमंत्री चुनने और सरकार बनाने की तैयारियां अभी से शुरू कर दी गई हैं।

सूत न कपास और जुलाहों में लट्ठम लट्ठा, यह कहावत आजकल के राजनीतिक दलों के नेताओं पर पूरी तरह लागू हो रही है। अभी आखिरी चरण का मतदान होना बाकी है जो एक जून को है किंतु अभी से सरकार बनाने के दावे शुरू हो गए हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक जून को बाकायदा एक बैठक बुला रखी है जिसमें चुनाव बाद की राजनीतिक स्थितियों की समीक्षा की जाएगी। खबर है कि इसमें इस बात पर चर्चा होगी कि चुनाव जीतने के बाद गठबंधन के साथियों को कैसे एकजुट रखा जाए। और ऐसे कौन से रास्ते निकाले जाएं जिसमें प्रधानमंत्री पद के लिए आपस में कोई विवाद ना हो। साथ ही इस पर भी चर्चा होनी है यदि किन्ही कारणों से गठबंधन को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं मिलती हैं तो एनडीए के किन दलों को तोड़कर सरकार बनाई जा सकती है।

मल्लिकार्जुन खड़गे का बैठक संबंधी बयान आने के तुरंत बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने बयान दे दिया कि वे एक जून की मीटिंग में शामिल नहीं हो पाएंगी। उन्होंने कहा कि हमारे राज्य में उसी दिन मतदान है। और इस समय रेमेल तूफान के चलते राज्य के तटीय इलाकों का जनजीवन प्रभावित है। इसलिए मीटिंग में आना संभव नहीं है। हालांकि सूत्र इसके लिए कुछ और कारण बताते हैं। उनका कहना है कि ममता अभी से ही मीटिंग में जाकर कोई नकारात्मक संदेश नहीं देना चाहतीं। क्योंकि पश्चिम बंगाल में चुनाव का ऊंट किस करवट बैठेगा अभी कुछ कह पाना संभव नहीं है। फील्ड से जो सूचनाएं आ रही हैं उनमें टीएमसी के लिए अच्छे संकेत नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में ममता को लगता है कि राज्य छोड़कर मीटिंग करने जाना राजनीतिक होशियारी नहीं है। आने वाले समय में उनकी सरकार को कोई खतरा न हो और एनडीए की संभावित सरकार कोई दिक्कत न पैदा करें, उसकी काट खोजना जरूरी है। इस वास्तविकता को देखते हुए वे अब केंद्र से तालमेल बैठाकर चलना चाहती हैं। सूत्रों के अनुसार वैसे भी ममता बनर्जी पार्टी में अंदरूनी बगावत के मामलों से जूझ रही हैं। बताया जाता है कि पार्टी में उनके अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी का अलग गुट है। बीच-बीच में ऐसी खबरें आती भी रहीं हैं। ऐसे में अपनी राजनीति को देखते हुए ममता बनर्जी ने इस बैठक में आने से फिलहाल इनकार कर दिया है।

वैसे इस बैठक की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इंडी गठबंधन के कई घटकों का मानना है कि ये मीटिंग एक तारीख के बाद बुलाई जा सकती थी क्योंकि एक तारीख को एग्जिट पोल के परिणाम सामने आने पर स्थितियां काफी स्पष्ट हो जातीं। तब रणनीति बनाने में आसानी रहती। उधर कांग्रेस नेता सरकार बनाने को लेकर इतनी जल्दी में हैं कि उन्हें सब्र ही नहीं हो रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयराम रमेश ने तो यहां तक कह दिया कि 48 घंटे में हम पीएम पद का चेहरा ऐलान कर देंगे। कांग्रेस ने अपनी तरफ से एक फार्मूला भी छोड़ दिया है। उसका कहना है कि चुनाव परिणाम में जिस पार्टी की सर्वाधिक सीटें होंगी वही पार्टी प्रधानमंत्री पद का चेहरा देगी। ऐसे में बाकी अन्य पार्टियां कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के दावेदार को कितना स्वीकार करेंगी ये देखने वाली बात होगी। बहरहाल इस मामले में पिछले 10 सालों से सत्ता का सूखा झेल रही कांग्रेस की जल्दबाजी काबिले गौर है। सूत्रों की खबरों पर यकीन करें तो इंडी गठबंधन की ओर से राहुल गांधी की प्रस्तावित कैबिनेट पर भी चर्चा शुरू हो गई है। चर्चा है कि इसमें तेजस्वी यादव का नाम गृहमंत्री के लिए और अरविंद केजरीवाल का नाम वित्त मंत्री पद के लिए सोचा जा रहा है। अब इसमें कितनी सच्चाई है यह तो वक्त ही बताया गया किंतु इन खबरों को न तो कोई खारिज करने वाला है और न हीं इसकी पुष्टि करने वाला। कुछ लोग इसे ख्याली पुलाव मानते हैं और कुछ आने वाले दिनों की सच्चाई।

कुछ जानकार इसे 4 जून के बाद आशंकित विपक्ष के लिए नकारात्मक परिणामों से जोड़कर देख रहे हैं। उनका मानना है कि विपक्ष यह कॉन्फिडेंस इसलिए दिखा रहा है ताकि अगर नकारात्मक परिणाम आए तो हार का ठीकरा इवीएम पर फोड़ा जा सके। कुछ जानकार इसे से विपक्ष की आगामी रणनीति और एक बड़े आंदोलन की रूपरेखा के रूप में देख रहे हैं। क्योंकि जब दावे ही नहीं किए जाएंगे तब उनके टूटने पर कोर्ट तक कैसे पहुंचा जाएगा।

खैर जो भी हो आगामी 4 जून को यह स्पष्ट ही हो जाएगा कि किसकी नैया पार लगेगी और किसकी डूब जाएगी। इस मामले में जहां कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल तीन सौ सीटें जीतकर का सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त हैं। वहीं भाजपा के नेता कहते हैं कि सपने देखने का हक सबको है पर सच्चाई यही है कि एनडीए 400 पार कर मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनाने जा रहा है। ख़ैर, जनता तो वही करती है जो उसके मन में होता है। और उस पर किसी पार्टी का कोई जोर नहीं है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक