ॐ लौकिय: नमः ….

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सोशल मीडिया में आजकल लौकी पर कुछ ज़्यादा ही छींटाकशी हो रही है। अधिकांश लोगों ने इस भोली – भाली सब्जी की छवि विलेन जैसी बनाकर रख दी है। अगर सब्जियों की फैशन परेड कराई जाए तो हमारा दावा है कि लौकी के मुकाबले कोई नहीं ठहर पाएगा। बैगन के सिर पर ताज भले हो लेकिन क्या फायदा… कढ़ाही रूपी जंग – ए – मैदान में उतरने से पहले ही उसका ताज शहीद हो जाता है… टुकड़े – टुकड़े कर दिए जाते हैं। ऊपर से कलर… वो तो गनीमत है कि पक्का है, छूटता नहीं… वरना लोग दस्ताने पहनकर भोजन करते। आलू को छोड़कर कौन सब्जी उसका साथ देने को राजी होती है। आलू ने साथ छोड़ा तो पेट चीरकर मसाला भर दिया जाता है।

और, आलू की भी कौन सी सूरत है। किसी पर दाग तो कोई चितकबरा। अगर चिकना और दाग रहित है तो पुराने लखनऊ की गलियों जैसा ऊबड़खाबड़ – बेडौल। भिन्डी को सब्जी समुदाय की नाज़ुक नायिका का दर्जा ज़रूर प्राप्त है… लेकिन है नखरीली और चिपचिपी। कौन मुंह लगे उस गुंडी के। गाजर, मूली और टमाटर को सलाद कोटे में डाल दिया गया है। गोभी, मटर, शलजम सबको हज़म नहीं होते। सीताफल अर्थात कद्दू की शक्ल और डीलडौल खाते – पीते घरों की पत्नियों की याद दिलाता है। करेले को देखकर हरे कुष्ठ रोग का भान होता है तो कटहल शक्ल से ही हिंसक लगता है… मामूली कलेजे वाला उसे हाथ भी लगाने की हिम्मत नहीं कर सकता। अब बताइए इस परेड में है कोई लौकी जैसा हसीन और नाज़नीन।

दरअसल, समाज में लौकी की छवि खराब करने में डॉक्टरों का बहुत बड़ा हाथ है। वे मरीज़ को दवाएं लिखें या न लिखें … खाने में लौकी पहले बता देते हैं। बीमारी और लौकी को चोली – दामन का साथी बना दिया है। भई, बीमार अगर पनीर खा लेगा तो मेडिकल साइंस पर कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा। दवा वह खाता ही है लेकिन नहीं, लौकी के टैग के बिना मरीज़ का गेटअप अधूरा रहता है। शायद डाक्टरी की पढ़ाई वे लौकी खाकर करते हैं इसीलिए बाद में मरीजों पर सारी कसर निकालते हैं।

आपने कभी लौकी के गुणों पर गौर किया है। आपसे भले एक ना मिले किन्तु आपकी पत्नी से इसके 36 के 36 मिलते हैं। इसीलिए दोनों की खूब पटती भी है। आप सीने पर पत्थर रखकर दोनों को सहन करते हैं। हमारा दावा है…एक बार लौकी को प्यार भरी नज़रों से तो देखिए… वह आपकी प्लेट में कोफ्ता बनकर आ बिछेगी। लेकिन, आप तो उसे हमेशा ‘खा’ जाने वाली नज़रों से देखते हैं तो फिर लौकी ही खाइए जीरे से छौंकी हुई। आपके अच्छे भले दाम्पत्य जीवन में रायता फैलाने का हुनर रखती है लौकी… देखें कौन माई का लाल आपको इससे बचा सकता है।

दोस्तों! कोरोना के इस दौर में जब सांसें ही सांसों की दुश्मन हैं… नजदीकियां हमेशा – हमेशा के लिए दूर ले जा सकती हैं। ऐसे जानलेवा हालात में लौकी से ज़्यादा वफादार कोई नहीं… आपका पालतू डॉगी भी नहीं। इसलिए लौकी के जूस को समुद्र मंथन में निकला अमृत समझकर उदरस्थ कर डालिए… कोरोना के पिताश्री भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे। वैसे हमारी बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि हम केवल लौकी की वह सब्जी खाने का साहस जुटा रहे थे… जो पत्नी ने परोस दी है और हमें हर हालत में खानी ही है। आप अपने ईश्वर से अपने लिए दुआ करिए, हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए। ॐ लौकियः नमः!

# कमल किशोर सक्सेना