आज से 3000 साल पहले पतंजलि नाम के योग गुरु हुए और उन्होंने योग सूत्र नाम की एक किताब लिखी जो योग दर्शन का सबसे बड़ा आधार है। योग को यदि योगसूत्र के आधार पर परिभाषित किया जाए तो सामान्य अर्थ में इसका मतलब चित्त की वृत्तियों का निरोध है। इसीलिए जिस योग को हम आज के समय में करके उसे योग की पूर्णता समझते हैं, वह सिर्फ योग दर्शन का लगभग 17% भाग है। इसी योग सूत्र में अष्टांग मार्ग बताए गए हैं। यदि व्यक्ति इन आठ मार्गो से होकर जीवन चलाता है तभी वह योगी बनता है और तभी वह योग का अर्थ समझता है।
लेकिन आज जिस तरह से यम का विलोपन हो रहा है अर्थात अहिंसा, सत्य, ब्रम्हचर्य, अस्तेय (चोरी न करना) अपरिग्रह (अतरिक्त संग्रह न करना) जैसे पांच नैतिक गुणों को बनाए रखने का नाम भी योग है। हम जिसे नियम कहते हैं और जिसके अंतर्गत शौच (ज्यादातर लोगो को कब्ज की शिकायत रहती है, पेट साफ़ ही नहीं रहता), संतोष (जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान), तप और ईश्वर (सिर्फ धार्मिक स्थानों पर जाना ही आज ईश्वर के करीब और जानने का औचारिक माध्यम रह गया है) आता है। और यह सब योग के आष्टांग मार्ग का ही हिस्सा है।
वर्तमान में योग सूत्र के अष्टांग मार्ग के एक हिस्से आसन के द्वारा शारीरिक चुस्ती को बनाए रखने के लिए बहुत से प्रचारक भारत में और विश्व में व्यवसायिक रूप से आसन को योग कहकर प्रचारित कर रहे हैं। यह सच है कि शरीर की सफलता को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक हो सकता है और गति के लिए आसान एक शारीरिक प्रबंध का उचित साधन है पर यह पूर्ण योग नहीं है। यह योग का सिर्फ आठवां हिस्सा है और इसको समझने के लिए मुख्य रूप से महिलाओं को शिवानी के उपन्यास कृष्ण कली को जरूर पढ़ना चाहिए। जिसमें लेखिका द्वारा इस बात को उकेरा गया है कि झाड़ू लगाना, मसाला पीसना, घर के काम करना, शरीर की चपलता और स्वास्थ्य के लिए क्यों जरूरी है।
इसे इस आधार पर भी समझा जा सकता है कि वर्तमान में घरों में रहने वाली महिलाओं के सापेक्ष घरेलू काम को करने वाली महिलाएं व्यवसायिक आधार पर पैसा भी कमा रही है और स्वस्थ भी ज्यादा है। जब योग की बात आती है तो प्राणायाम अर्थात सांसो के द्वारा शरीर को नियंत्रित करना भी व्यक्ति के जीवन का हिस्सा होना चाहिए। आज की भौतिकता में जिस तरह से व्यक्ति एक लिप्सा की ओर बढ़ गया है। उसमें अष्टांग मार्ग के एक प्रमुख सूत्र प्रत्याहार की आवश्यकता ज्यादा महसूस होती है। जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपनी इंद्रियों को अंतर्मुखी बनाता है और इस अंतर्मुखी बनाने की प्रक्रिया से ही अष्टांग मार्ग के एक अन्य सूत्र धारणा को प्रभावित किया जा सकता है जो एकाग्र चित्त होने में सहायक होता है।
आष्टांग मार्ग का प्रमुख सूत्र ध्यान है। जिसका ध्यान प्रबल हो जाता है, वही योग की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी समाधि की ओर बढ़ जाता जो एक सामान्य जीवन की प्रक्रिया में ना तो समझी जा सकती है और ना होती है इसे साधु-संतों तक सीमित कर दिया गया है। लेकिन योग के इस सूत्र के द्वारा ही व्यक्ति अपनी आत्मा से जुड़ता है और वह चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग वाले सिद्धांत पर इस संसारी दुनिया में रहते हुए भी हर लिप्सा लालच भोग से विरक्त होता है।
वर्तमान में योग का अर्थ सिर्फ शारीरिक आसन को कर लिया जाना ही मान लिया गया है। इससे सिर्फ कामचलाऊ तरीके से शरीर को तो लचीला बनाया जा सकता है लेकिन शरीर के अंदर चल रही रासायनिक क्रियाओं को प्रभावित करने वाली दूसरी अष्टांग मार्ग की क्रियाओं का अभाव व्यक्ति को कभी स्वस्थ नहीं रहने देता है।
यही कारण है कि व्यक्ति में संतोष, अपरिग्रह, सत्य बोलने की आदत, ब्रह्मचर्य का पालन आदि के गुणों का भी शरीर में प्रभावी होना योग की वास्तविक आवश्यकता है क्योंकि जब शरीर आंतरिक रुप से स्वस्थ होगा तभी वाह्य रूप से वह स्वस्थ दिखाई देगा। आसन को करके शरीर को भौतिक दुनिया में चलाया जा सकता है लेकिन शांति, खुशी को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए योग की संपूर्णता में अष्टांग मार्ग को अपनाया जाना ही नितांत आवश्यक है और यही 21 जून को मनाए जाने वाले विश्व योग दिवस का संपूर्णता में दिया जाने वाला संदेश है। जिसे समझने की आवश्यकता है।
शरीर की सारी क्रियाएं आंतरिक रूप से रासायनिक क्रियाओं का परिणाम है। यदि रासायनिक क्रियाएं असंतोष, लालच, ज्यादा से ज्यादा पाने की इच्छा के कारण अनियंत्रित रहेंगी तो व्यक्ति को सिर्फ आसन की विधि के द्वारा संपूर्णता में स्वस्थ नहीं रखा जा सकता है। सिर्फ कल पुर्जों से चलने वाली मशीन की तरह तेल रूपी आसन की आधार पर शरीर के कल पुर्जों को घूमने के लिए सुगम बनाया जा सकता है लेकिन योग की वास्तविक अभिव्यक्ति शांति और खुशी अष्टांग मार्ग से ही होकर गुजरती है।
इसलिए सिर्फ आसन का प्रचार प्रसार कर के और उसकी फोटो लगाकर ही विश्व योग दिवस मनाए जाने से प्रत्येक व्यक्ति को बचना चाहिए और वास्तविक अर्थ में शरीर के आंतरिक प्रबंधन को भी योग के अष्टांग मार्ग से जोड़कर विश्व योग दिवस की वास्तविकता में स्थापना करने का प्रयास करना चाहिए।
डॉ आलोक चांटिया (लेखक विगत 2 वर्षों से मानवाधिकार के कार्यों में प्रयासरत है)