वीर सावरकर, राहुल, बयानबाजी और कोर्ट

वीर सावरकर, राहुल, बयानबाजी और कोर्ट अब वीर सावरकर से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य उठेंगे एमपी/एमएलए कोर्ट में पुणे की अदालत ने कहा- इससे राहुल के खिलाफ सुनवाई में आसानी होगी परंऊ सुप्रीम कोर्ट की सख्त चेतावनी के बावजूद नहीं सुधर रहे हैं कांग्रेसी सावरकर के खिलाफ टिप्पणी में शीर्ष कोर्ट ने नेता प्रतिपक्ष को दी है चेतावनी कोर्ट ने कहा, फिर आपने सावरकर के खिलाफ कुछ कहा तो हम खुद संज्ञान लेंगे

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नयी दिल्ली। पिछले दिनों हुई अवमानना मामले की एक सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की डांट खाकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी तो समझ गए हैं कि वीर सावरकर के बारे में अनाप-शनाप बोलना अब भारी पड़ जाएगा, लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता गाहे-बगाहे वीर सावरकर का अपमान करने से चूक नहीं रहे हैं। शायद उन्हें सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी का भी डर नहीं है। उधर पुणे की एमपी/ एमएलए कोर्ट ने तय किया है कि वह वीर सावरकर से जुड़े ऐतिहासिक तत्वों पर भी सुनवाई करेगी ताकि दूध का दूध और पानी का पानी किया जा सके। उक्त अदालत में यह मामला भी राहुल गांधी के खिलाफ वीर सावरकर के अपमान से जुड़ा हुआ है। इस मुकदमे के वादी और वीर सावरकर के पोते सात्यकि सावरकर ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी को इस अपराधिक मामले में राहत देने के लिए इसे लटकाने का प्रयास किया जा रहा है। खैर, पुणे का एमपी/ एमएलए कोर्ट अगर इस मामले की ऐतिहासिकता पर सुनवाई करता है तो यह मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे वह वीर सावरकर के बारे में चली आ रही भ्रांतियों को दूर भी कर सकता है। सावरकर के पोते सात्यकि सावरकर द्वारा दाखिल इस आपराधिक बाद को कोर्ट ने वृहद सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले को सरसरी तौर पर नहीं, बल्कि ऐतिहासिक तथ्यों के प्रकाश में वृहद बहस के बाद निस्तारित करेगी। यानी इस मामले में अब ऐतिहासिक तथ्य खंगाले जाएंगे।

उधर राहुल गांधी द्वारा वीर सावरकर के अपमान से जुड़े लखनऊ कोर्ट की नोटिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सचेत किया था कि अगर अब आपने वीर सावरकर के खिलाफ बदजुबानी की तो हम स्वयं इसका संज्ञान लेंगे। इसके बाद राहुल गांधी ने खुद को संभाला है, लेकिन अपनी पार्टी के नेताओं को नहीं संभाल पा रहे हैं। वीर सावरकर के खिलाफ उनकी बयानबाजी अभी जारी है। पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने वीर सावरकर के अपमान पर कांग्रेस प्रवक्ता को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि आप उन पर टिप्पणी कर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रहे हैं। इसी कड़ी में बीते 23 मई को टीवी डिबेट के दौरान भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने भी कांग्रेस प्रवक्ता चरणजीत सिंह सापरा को टोकते हुए कहा कि आप सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि आप इस तरह किसी का भी अपमान नहीं कर सकते। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि यदि कोई ये कहे कि गांधी जी अंग्रेजों को पत्र लिखते समय आपका विश्वासपात्र शब्द का इस्तेमाल किया करते थे, तो क्या इसे देश से गद्दारी कहा जाएगा, नहीं। कोर्ट ने कहा कि हम आपको चेतावनी देते हैं कि आप आगे इस तरह ऐसा कोई बयान नहीं देंगे, अन्यथा हमें खुद संज्ञान लेकर आपके खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ेगी। हालांकि जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने इस मामले में लखनऊ की मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा जारी नोटिस को समाप्त कर सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को राहत भी प्रदान कर दिया। लेकिन वीर सावरकर पर आए दिन होने वाली गलत टिप्पणियों पर विराम भी लगा दिया है। शीर्ष कोर्ट ने इसके अलावा राहुल की ओर से पेश एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी को भी आड़े हाथों लिया। इसके पहले नोटिस रद कराने के लिए राहुल गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, पर हाईकोर्ट ने उनकी याचिका निरस्त कर दी थी। हाईकोर्ट के उसी आदेश के खिलाफ शीर्ष कोर्ट में यह याचिका दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से अब ये साफ हो गया है कि वीर सावरकर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की इजाजत किसी को नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को फटकारते हुए टिप्पणी की कि महात्मा गांधी भी अंग्रेज वायसराय को भेजे पत्र में स्वयं को ‘आपका निष्ठावान सेवक’ लिखते थे, तो क्या उसके चलते कोई उन्हें भी अंग्रेजों का नौकर कह देगा। इसके अलावा हाईकोर्ट के कई जज भी अपने पत्राचार में मुख्य न्यायाधीश को संबोधित करते हुए खुद को सेवक लिख देते हैं, तो क्या ऐसा लिखने भर से कोई नौकर हो जाता है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि अब स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अपमान सहन नहीं किया जाएगा। जिन्होंने स्वतंत्रता दिलाई है, हमें उन्हें अपमानित नहीं करना चाहिए। लखनऊ कोर्ट के मजिस्ट्रेट ने इस शिकायत के आधार पर राहुल गांधी को तलब किया था कि उन्होंने महाराष्ट्र में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इस हिंदुत्व विचारक पर अपमानजनक टिप्पणी की थी। ट्रायल कोर्ट ने राहुल गांधी को तलब करते हुए कहा था कि उन्होंने अपने भाषण से समाज में नफरत और दुर्भावना फैलाई थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि सावरकर अंग्रेजों के सेवक थे और अंग्रेजों से पेंशन ली थी। ऐसे में उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए (शत्रुता को बढ़ावा देना) और 505 (सार्वजनिक शरारत) के तहत आरोप हैं। कोर्ट ने गैर-हाजिर रहने के लिए कांग्रेस नेता राहुल पर ₹200 का जुर्माना भी लगाया था। वीर सावरकर की मानहानि का ये मामला 2022 में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी के महाराष्ट्र में दिए गए विवादित बयान से जुड़ा है। जिसमें राहुल ने सावरकर को अंग्रेजों का नौकर बताया था। साथ ही कहा था कि वे अंग्रेजों से पेंशन लेते थे। इस पर लखनऊ के वकील नृपेंद्र पांडे ने निचली अदालत में शिकायत दर्ज कराई थी। निचली अदालत ने राहुल गांधी के खिलाफ पहली नजर में आईपीसी 153 (A) और 505 के तहत केस मानते हुए समन जारी किया था।

अभिषेक मनु सिंघवी को भी लगी फटकार : लखनऊ के मामले में राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत से कोई टिप्पणी न करने का आग्रह किया और कहा कि राहुल गांधी का समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने का कोई इरादा नहीं था। इस पर पीठ ने कहा कि आप स्वतंत्रता सेनानियों के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकते। जब आपको भारत के इतिहास के बारे में कुछ भी पता नहीं है, तो आपको ऐसी कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। जस्टिस दत्ता ने कहा कि वे एक राजनीतिक दल के नेता हैं तो इस तरह की टिप्पणी क्यों करेंगे। जज ने कहा कि आप आगे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में ऐसे गैर-जिम्मेदाराना बयान न दें। पीठ ने उनके अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी से पूछा कि क्या राहुल गांधी जानते हैं कि महात्मा गांधी भी अंग्रेजों के साथ अपने संवाद में आपका वफादार सेवक जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। जब सिंघवी ने तर्क दिया कि राहुल गांधी के खिलाफ शत्रुता और सार्वजनिक उत्पात को बढ़ावा देने के आरोप नहीं बनते, तो पीठ ने टिप्पणी की कि क्या आपके मुवक्किल को पता है कि महात्मा गांधी ने भी वायसराय को संबोधित करते समय आपका वफादार सेवक शब्द का इस्तेमाल किया था। तो क्या महात्मा गांधी को केवल इसलिए अंग्रेजों का सेवक कहा जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि मैंने भी देखा है, कलकत्ता हाईकोर्ट के हमारे जस्टिस चीफ जस्टिस को आपका सेवक लिखकर संबोधित करते थे। न्यायमूर्ति दत्ता ने आगे कहा कि क्या आपके मुवक्किल को पता है कि उनकी दादी दिवंगत इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं, तो उन्होंने भी सावरकर की प्रशंसा करते हुए एक पत्र भेजा था? शीर्ष कोर्ट के जस्टिस दत्ता ने अपनी टिप्पणी में कहा कि अगली बार कोर्ट उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए किसी मंजूरी का इंतजार नहीं करेगा। कोर्ट ने कहा कि राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के उस हिस्से में ये बयान दिया है जहां सावरकर को भगवान माना जाता है। कोर्ट ने आशंका जताई कि उनके बयान अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इसी तरह की टिप्पणी करने के लिए प्रेरित करेंगे, और यह ठीक नहीं है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में उत्तर प्रदेश राज्य और शिकायतकर्ता लखनऊ निवासी नृपेंद्र पांडे को भी आगे की सुनवाई के लिए नोटिस जारी किया है।

पुणे की अदालत में होगी ऐतिहासिक तथ्यों पर बहस : पुणे, महाराष्ट्र की एक अदालत ने भी अपने एक अहम फैसले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को फौरी राहत प्रदान कर दी है। वहां की एमपी/एमएलए कोर्ट ने राहुल गांधी के उस आवेदन को मंजूर कर लिया है जिसमें उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर की गई कथित टिप्पणी पर दर्ज आपराधिक मानहानि के मुकदमे को समरी ट्रायल केस की जगह समन ट्रायल केस में बदलने की गुजारिश की थी। राहुल गांधी ने इस मामले में ऐतिहासिक संदर्भों और साक्ष्यों पर चर्चा की मांग की थी। एमपी-एमएलए विशेष अदालत के न्यायिक मजिस्ट्रेट अमोल शिंदे ने गांधी के वकील मिलिंद पवार द्वारा दायर उक्त आवेदन को स्वीकार कर लिया। अदालत के आदेश में कहा गया है कि मामला प्रथमदृष्टया समन मुकदमे की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने कहा मौजूदा मामले में आरोपी तथ्यों और कानून के ऐसे सवाल उठा रहा है जो जटिल प्रकृति के हैं। कुछ अन्य मुद्दे भी उठाए गए हैं, जिनका निर्धारण इतिहास के आधार पर ही किया जाएगा। इसलिए, मेरे विचार से इस मामले को समरी ट्रायल केस के रूप में चलाना उचित नहीं है। मजिस्ट्रेट ने कहा कि इस मामले में आरोपी को विस्तृत साक्ष्य पेश करने होंगे और गवाहों से गहनता से जिरह भी करनी होगी। और न्याय के हित में यह आवश्यक भी है। यानी अब यह सिद्ध करने का दायित्व आरोपी पक्ष का है कि उसने जो कहा है वह तथ्यों पर आधारित है, इसलिए उसने कोई ग़लती नहीं की है। वीर सावरकर के पोते सात्यकि सावरकर ने इस अदालत में राहुल गांधी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराकर दावा किया है कि कांग्रेस नेता ने मार्च 2023 में लंदन में दिए एक भाषण में कहा था कि हिंदुत्व विचारक सावरकर ने एक किताब में लिखा है कि उन्होंने और उनके कुछ दोस्तों ने एक बार एक मुस्लिम व्यक्ति की पिटाई की थी और इससे उन्हें खुशी हुई थी। जबकि शिकायत के अनुसार, ऐसी कोई घटना कभी हुई ही और न ही सावरकर ने इस संबंध में कुछ लिखा है। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि राहुल गांधी के आरोप झूठे काल्पनिक, और दुर्भावना पूर्ण हैं। सात्यकी सावरकर ने नेता विपक्ष राहुल गांधी द्वारा अदालत में दायर सम्मन ट्रायल की मांग वाली याचिका पर आपत्ति जताई है।‌ उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल गांधी स्वतंत्रता संग्राम में वीर सावरकर की भूमिका पर अप्रासंगिक तर्क देकर मानहानि के मामले को भटकाने और लंबा खींचने की कोशिश कर रहे हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि उम्मीद है कि राहुल गांधी को अक्ल आ जाएगी और वे वीर सावरकर के खिलाफ गलत बयानबाजी नहीं करेंगे।

अब तो आदतन गलत बयानी कर रहे राहुल : लगता है राहुल गांधी अब आदतन गलतबयानी की प्रवृति का शिकार हो गए हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके खिलाफ कितनी बार कोर्ट का सम्मन जारी होता है, या फिर उनके बयानों का उनके या देश के खिलाफ क्या असर पड़ता है। पता नहीं उनके सलाहकार उन्हें कैसी सलाह दे रहे हैं जो उनका राजनीतिक कद बढ़ाने की बजाय उन्हें राजनीतिक रूप से रसातल में डालता चला जा रहा है। भाजपा और संघ परिवार को राजनीतिक रूप से घेरने के लिए कांग्रेस को अभी तक वीर सावरकर के नाम का सहारा हुआ करता था। कांग्रेस उन्हें अंग्रेजों का जासूस, अंग्रेजों का कृपा पात्र और न जाने क्या-क्या बताकर संघ परिवार और भाजपा को घेरने की कोशिश करती थी किंतु अब उस पर सुप्रीम कोर्ट की रोक लग गयी है। शीर्ष कोर्ट ने राहुल गांधी से साफ-साफ कह दिया है कि अगर अब वीर सावरकर के खिलाफ उनके द्वारा कोई अपमान जनक टिप्पणी की गई तो उसका संज्ञान लेकर कार्रवाई होगी। इसलिए फिलहाल वीर सावरकर पर कोई भी टिप्पणी करने से कम से कम राहुल गांधी तो बचेंगे ही। पर उनकी पार्टी के नेता और प्रवक्ता तो जैसे बेलगाम हैं। उन्हें किसी की चिंता नहीं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी नहीं। पर सवाल यह उठता है कि क्या राहुल गांधी आदतन या फिर जानबूझकर संघ परिवार से जुड़े लोगों के खिलाफ बयानबाजी करते हैं, ताकि उन्हें राजनीतिक माइलेज मिल सके। हालांकि एक के बाद एक अदालतों द्वारा उनके खिलाफ सम्मन जारी हो रहे हैं, कुछ मुकदमे भी चल रहे हैं, लेकिन उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता। चाहे वह सुल्तानपुर की अदालत हो, दिल्ली की अदालत हो, लखनऊ की अदालत हो या फिर पुणे की अदालत। उनके खिलाफ बदजुबानी की शिकायत की जाती है, लेकिन वह न्यायपालिका का सहारा लेकर हर बार अपने खिलाफ दायर मुकदमों को टलवा देते हैं। इस देश की न्याय व्यवस्था भी शायद राहुल गांधी को न्यायिक सुरक्षा देने के लिए ही बैठी है, क्योंकि उन्हें तत्काल राहत मिल जाती है। अगर निचली अदालत ने उनके खिलाफ कोई सम्मन जारी किया तो हाई कोर्ट में मामला जाकर रुक जाता है। यदि हाईकोर्ट ने आगे मामला बढ़ाया तो सुप्रीम कोर्ट में जाकर रुक जाता है। इस प्रकार राहुल गांधी और न्याय व्यवस्था के बीच लुकाछिपी का खेल लगातार चल रहा है। न्याय पालिका ने कभी भी राहुल गांधी के इस रवैए के बारे में विचार करने की जहमत नहीं उठाई। हर बार उन्हें कानून की बारीकियों का लाभ मिल जाता है। इसी के चलते उनकी पार्टी के प्रवक्ता भी ऐसे मामले में धुआंधार बैटिंग करके निकल जाते हैं। खैर, चाहे संघ परिवार के नेताओं का अपमान करना हो, केंद्र सरकार को घेरना हो, देश के सम्मान से खिलवाड़ करना हो, राहुल गांधी की बयानबाजी बदस्तूर जारी है। वीर सावरकर के खिलाफ बोलने पर प्रतिबंध लगने के बाद अब उन्होंने राष्ट्रीय हितों से जुड़े मामलों पर बोलना शुरू किया है। इस वक्त जब पूरे देश को एक दिखने की जरूरत है, उनको सरकार से सवाल पूछना है। ऐसे समय में जब भारत के कई संसदीय दल विदेश में जाकर ऑपरेशन सिंदूर के बारे में सच्चाई से अवगत अवगत करा रहे हैं, तब उन्हें सवाल पूछना है। खास बात यह है कि जो सवाल पाकिस्तान को पूछना चाहिए, वही सवाल राहुल गांधी कर रहे हैं, मसलन दुश्मन की ओर से हमारे कितने हवाई जहाज तबाह किए गए। ये सवाल पाकिस्तान का होना चाहिए लेकिन पूछ राहुल गांधी रहे हैं। ये शायद राहुल गांधी की राजनीतिक हताशा का परिणाम है। पहलगाम में 26 पर्यटकों की हत्या के बाद चले ऑपरेशन सिंदूर में पाक के नौ आतंकी अड्डे, 11 एयरवेस और 100 से अधिक आतंकवादियों को मारे जाने के बाद भी वे लगातार सवाल पूछ रहे हैं कि हमारे कितने लोग मारे गए, हमारी कितने हवाई जहाज पाकिस्तान ने नष्ट किए। हो सकता है उनके पास इस बारे में कोई इनपुट हो लेकिन जब सेना ने प्रेस ब्रीफिंग करके यह बता दिया कि हमें इस बारे में जितना बताना है, बता चुके हैं। इसके बावजूद राहुल गांधी के सवाल जारी हैं। इसमें दुख की बात यह है कि राहुल गांधी और उनके जैसे तमाम नेताओं के बयान पाकिस्तान की मीडिया में छाए हुए हैं, पाकिस्तानी डोजियर में उनका इस्तेमाल हो रहा है। और सारे बयान भारत की इमेज खराब करने के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं। निश्चित रूप से राहुल गांधी को विपक्ष का नेता होने के नाते सरकार से सवाल पूछने का हक है, लेकिन उन्हें टाइमिंग का ध्यान रखना होगा। उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि उनके बयानों का गलत इस्तेमाल देश के दुश्मन न करने पाएं। लेकिन जैसे लगता है कि उन्होंने पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ सुपारी ले रखी हो। लगभग हर टीवी डिबेट में भाजपा और संघ परिवार को अर्दब में लेने के लिए कांग्रेस के प्रवक्ता घूम फिर कर वीर सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि के बयानों को कोट करते हैं। हो सकता है कि उनकी बात सही भी हो लेकिन सवाल पूछने का ये उचित समय नहीं है। अब राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को यह बात कब समझ में आएगी, भगवान जाने। लेकिन उनके बयानों से देश की छवि को नुकसान पहुंच रहा है, इसमें दो राय नहीं है।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक