प्राचीन काल से ही एक दूसरे पर वर्चस्व की लड़ाई के लिए जंग लड़ी जाती रही हैं। तोप ऐसा हथियार रहा है, जिसमें जंग के दौरान भारी तबाही मचाने की पूरी क्षमता थी। उस समय तलवार के साथ-साथ अपने दुश्मनों को खदेड़ने के लिए तोप से गोले दागे जाते थे। तोप को उस सदी का सबसे घातक हथियार माना जाता था क्यूंकि कई किलोमीटर तक लड़ाई की जाती थी। भारत में भी एक ऐसी ही तोप है जो 400 वर्षों में सिर्फ एक बार चली और तालाब बना दिया।
इस तोप का नाम है ‘जयबाण’। यह जयपुर के किले में रखी है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी तोप कहा गया है। यह जानकर आप हैरान होंगे कि 13वीं और 14वीं सदी में तोप का इस्तेमाल शुरू हो गया था। तोप ऐसा हथियार रहा है, जिसमें जंग के दौरान भारी तबाही मचाने की पूरी क्षमता होती है। जयबाण को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ तोप का दर्जा हासिल है। जयबाण तोप भले ही 400 वर्षों में सिर्फ एक बार ही चली। लेकिन जयबाण तोप ने दुनिया में तहलका मचा दिया।
दिलचस्प यह है कि इस तोप को कभी किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न ही किसी युद्ध में इसके इस्तेमाल की नौबत आई, यह काफी वजनी भी है। माना जाता है कि इसका वजन करीब 50 टन है। इसे दो पहिया गाड़ी में रखा गया है। जिस गाड़ी पर इसे रखा गया है उसके पहियों का व्यास करीब साढ़े चार फीट है। इसके अलावा इसमें दो और अतिरिक्त पहिये भी लगे हैं।
जयबाण तोप विश्व की सबसे बड़ी तोप है, जो राजस्थान के जयपुर की शान है। यह तोप जयगढ़ क़िले में स्थित है और राजस्थान के इतिहास की अमूल्य धरोहर है। जयबाण तोप की मारक क्षमता 22 मील (लगभग 35.2 कि.मी.) है। 1720 ई. के आसपास इस तोप की ढलाई की गई थी। इनका व्यास करीब नौ फीट है। इस तोप में करीब 50 किलो वजनी गोला इस्तेमाल किया जाता था।
इसके बैरल की लंबाई 6.15 मीटर है। बैरल के आगे की ओर नोक के पास की परिधि 7.2 फीट की है। वहीं, इसके पीछे की परिधि 9.2 फीट की है। बैरल के बोर का व्यास 11 इंच है और छोर पर बैरल की मोटाई 8.5 इंच है। इस तोप का निर्माण 1720 के आसपास कराया गया था। अरावली की पहाड़ी पर स्थित जयगढ़ किले के डूंगरी दरवाजे पर स्थित जयबाण तोप के बारे में माना जाता है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी और वजनदार तोप है। इस तोप की नली से लेकर अंतिम छोर की लंबाई 31 फीट 3 इंच है। तोप की नली का व्यास क़रीब 11 इंच है। इस भारी भरकम तोप को बनाने के लिए जयगढ़ में ही कारखाने का निर्माण कराया गया।
इसकी नाल भी यहीं विशेष सांचे में ढाली गई। हालांकि, इस कारखाने में और भी तोपों का निर्माण कराया गया था। दशहरे के दिन इस जयबाण तोप की खास पूजा होती है। अब आपको बताते हैं इस तोप और इसमें लगने वाले गोले की खासियत। एक बार इसका परीक्षण किया गया। जब गोला दागा गया तो वह करीब 35 किलोमीटर दूर चाकसू नामक कस्बे के निकट जाकर गिरा। जहां यह गोला गिरा वहां एक बड़ा तालाब बन गया था। इस तालाब में आज भी पानी है और स्थानीय लोग इसे अपने दिनचर्या में इस्तेमाल करते हैं। जयबाण तोप का इस्तेमाल आज तक किसी युद्ध में नहीं हुआ और न ही इसे कभी यहां से हिलाया गया।
परीक्षण के लिए इस तोप का गोला तैयार करने में 100 किलो गन पाउडर यानी बारूद की जरूरत पड़ी थी। इस तोप को बनाने के लिए जयगढ़ में ही कारखाना बनाया गया। इसकी नाल भी यहीं पर विशेष तौर से बनाए सांचे में ढाली गई थी। लोहे को गलाने के लिए भट्टी भी यहां बनाई गई। इसके प्रमाण जयगढ में आज भी मौजूद है। इस कारखाने में और भी तोपों का निर्माण हुआ।
विजयदशमी के दिन इस तोप की विशेष पूजा की जाती है। भारत का इतिहास सुनहरा ही नहीं ताकतवर भी था, तभी तो दुनिया की सबसे ख़तरनाक तोपें भारत में ही हैं तोप सदियों ज़मानों से जंग का हिस्सा रही हैं. समय के साथ इसके आकार और ताकत में परिवर्तन हुआ है. वर्तमान में इस्तेमाल होने वाली हर तोप कहीं न कहीं इतिहास की तोपों से मिलती-जुलती हैं. अगर हम इतिहास में झांके तो पता चलता है कि तोप की शुरुआत पहले पत्थर के गोले फ़ेकने से शुरू हुई, जो वक़्त के साथ लोहे के गोले और फिर बारुद भरे गोले फ़ेकने तक जा पहुंची. 280 MM मारक क्षमता वाली ये तोप जयपुर सीमा की रक्षा करती थी. राजा जय सिंह ने इसे सन 1720 में बनवाया था. इस तोप को शहर द्वार पर लाने के लिए कई हाथियों का सहारा लिया गया था. इस तोप से 50 किलो का गोला दुश्मन पर दागने की क्षमता है,