लखनऊ। प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 भाजपा और मोदी सरकार के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के लिए भी राजनीतिक उर्वरक के रूप में निकल कर आया है। इस महाकुंभ ने जहां स्नान के पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़े वहीं भाजपा के लिए उर्वर जमीन तैयार की है। ताकि वह पूरे देश में अपनी राजनीतिक फसल लहलहा सके। विपक्ष के तमाम विरोधों के बावजूद, तमाम आरोपों के बावजूद विश्व भर की आधी हिंदू आबादी से अधिक और अमेरिका की दोगुनी आबादी से अधिक सनातनियों ने इस महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाई है। न सिर्फ सनातनियों ने बल्कि दूसरे धर्म के लोगों ने भी इस महा आयोजन को हाथों-हाथ लिया। और तो और जो अखिलेश यादव इस महाकुंभ की खामियां गिनाकर योगी सरकार को घेरने की कोशिश करते रहे वे भी संगम में आकर आस्था की डुबकी लगा गए। परंतु गांधी परिवार में अपनी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के चलते इस महा आयोजन से दूरी बनाए रखी। फिर भी कांग्रेस के दूसरी लाइन के नेता आए और उन्होंने आस्था की डुबकी लगाई। कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने तो दबी जुबान से ही किंतु योगी के इस आयोजन की तारीफ भी की और कहा कि इतना बड़ा आयोजन करना आसान काम नहीं है कुल मिलाकर ये आयोजन भाजपा के लिए, भाजपाइयों के लिए और सनातन के लिए उर्वरा शक्ति के रूप में उभर कर आया है।
महाकुंभ में आस्था ऐसा सैलाब उमड़ा कि मौनी अमावस्या स्नान में मची भगदड़ में 30 लोगों की मौत भी लोग भूल गए। इसका महाकुंभ पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ा। सनातनी रेला आता रहा और आस्था की डुबकी लगाता रहा। लोगों ने यहां थोड़ी-बहुत परेशानियां भी झेलीं किंतु वे आस्था के नाम पर उन्हें नकारते गए और तारीफ करते गए। अब योगी सरकार ने महाकुंभ पूर्ण होने के बाद इसमें न जा पाने वाले लोगों के लिए भी व्यवस्था कर दी है। ऐसे लोगों के लिए लगभग 300 टैंकरों में संगम का जल भरकर प्रदेश के सभी 75 जिलों में पटवाया जा रहा है ताकि सभी को संगम स्नान के पुण्य का लाभ मिल सके।
इस प्रकार बीते 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के पवित्र स्नान के बाद प्रयागराज महाकुंभ 2025 के औपचारिक पूर्णता की घोषणा हो गई है। 27 फरवरी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ स्थल पर जाकर सफाई की, सफाई कर्मियों को पुरस्कृत किया और उनके साथ भोजन भी किया। योगी ने सिपाहियों के लिए दस हजार रुपए के बोनस और एक हफ्ते की छुट्टी की घोषणा भी की। उन्होंने इस बड़े आयोजन के लिए पूरी प्रशासनिक और पुलिस मशीनरी को धन्यवाद दिया और उसकी सराहना की। उन्होंने विशेष रूप से प्रयागराज जिले के लोगों को भी धन्यवाद दिया और कहा कि यह आयोजन प्रयागराज के लोगों के सहयोग बिना संभव नहीं था। उन्होंने न सिर्फ परेशानियां झेलीं बल्कि महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं की सहायता भी की। इसके लिए प्रयागराज के लोग साधुवाद के पात्र हैं। योगी ने आगे जोड़ा कि अगर इस दौरान उनको कोई तकलीफ हुई है तो उसके लिए मैं व्यक्तिगत रूप से क्षमा प्रार्थी हूं। उधर प्रयागराज के लोगों का कहना है कि लगभग डेढ़ महीने तक जो जन सैलाब हम देख रहे थे, अब वह देखने को नहीं मिलेगा तो कुछ सुना सुना सा लगेगा। पर इतने बड़े आयोजन से प्रयागराज की धरती भी तर गई। हमें इस बात का गर्व है कि हम प्रयागराज में रहते हैं।
जहां तक प्रयागराज महाकुंभ आयोजन के आर्थिक पक्ष का सवाल है, यूपी सरकार को इससे बहुत बड़ा फायदा हुआ है, और प्रदेश की इकोनॉमी में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। पूरे महाकुंभ आयोजन के दौरान लगभग तीन लाख 35 हजार करोड़ रुपए का व्यापार हुआ। इससे प्रदेश के राजस्व में लगभग 54000 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। यानी महाकुंभ में धार्मिक आस्था के ज्वार के साथ-साथ आर्थिक संपन्नता भी मिली है। इससे समाज के हर वर्ग को कुछ न कुछ मिला है। चाहे वह पुरोहित हो, व्यापारी हो, ठेकेदार हो, रिक्शावाला हो, परिवहन व्यवस्था से जुड़ा व्यक्ति हो, रेलवे हो, सरकारी रोडवेज हो, सबको कुछ न कुछ लाभ हुआ है। सबसे बड़ा लाभ भारतीय जनता पार्टी को हुआ है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हुआ है और योगी आदित्यनाथ को हुआ है। अब तो ऐसा लगता है कि योगी आदित्यनाथ को अगले कई सालों तक शायद ही किसी विरोध का सामना करना पड़े। क्योंकि पार्टी के अंदर और पार्टी के बाहर उनके सभी विरोधियों की बोलती इस समय बंद है। इस महाकुंभ ने बिहार और पश्चिम बंगाल चुनाव के लिए भी भाजपा की जमीन तैयार की है, इसमें कोई दो राय नहीं। एक अनुमान के अनुसार इस महाकुंभ में सर्वाधिक भीड़ बिहार और पश्चिम बंगाल से आई थी। हालांकि आने वाले तो पूरे देश से लोग आए थे किंतु इन दोनों प्रांतों का विशेष उल्लेख किया जा रहा है। ऐसे में यहां आने वाले सनातनी अगर वोट में कन्वर्ट हो गए तो बिहार और पश्चिम बंगाल में भाजपा को रोकने वाला कोई दिख नहीं रहा है। बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव और उनके परिवार के लोग इस महाकुंभ में नहीं आए। इसको लेकर भी सनातनियों में बड़ी नकारात्मक चर्चा है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो इस महाकुंभ में आयीं नहीं बल्कि उन्होंने इस महाकुंभ को मृत्यु कुंभ कह दिया था। इसे लेकर भी काफी दिनों तक वार-पलटवार जारी रहा। निश्चित रूप से इन दोनों राज्यों में दोनों ही पार्टियों पर असर ही पड़ेगा, यह तय है। इस महाकुंभ में बिहार के लोगों की उपस्थिति सर्वाधिक रही। दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल और उसके बाद मध्य प्रदेश के श्रद्धालु रहे। इस बार यहां आने वालों में जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ पूरे देश के लोग थे। इसके अलावा विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के अलावा सामान्य विदेशियों ने भी संगम में डुबकी लगाई।
उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ के सफल आयोजन की तारीफ करते हुए कहा है कि पूर्वांचल का सांसद होने के नाते मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि प्रयागराज महाकुंभ एकता का महाकुंभ था। ऐसा आयोजन न पहले कभी हुआ था और न ही आगे कोई उम्मीद है। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में महाकुंभ ने बड़ी सफलता अर्जित की है। इस सफल आयोजन के लिए योगी आदित्यनाथ साधुवाद के पात्र हैं। इस महाकुंभ में आने का जुनून, इसके लिए किसी भी अव्यवस्था से लड़ने का जुनून, यहां किसी भी तरह पहुंच जाने का जुनून और किसी भी तरह 144 साल बाद लगे दुर्लभ संयोग वाले महाकुंभ में डुबकी लगा लेने का जुनून लोगों पर बुरी तरह हाबी रहा। और इन्हीं सारी बातों ने इस महाकुंभ को अकल्पनीय, अद्भुत और अविस्मरणीय बना दिया। विपक्षी नेताओं की तमाम आलोचनाओं के बावजूद सनातनियों ने किसी भी नकारात्मक प्रचार की चिंता नहीं की। उन्हें तो बस महाकुंभ में पहुंचना था, श्रद्धा की डुबकी लगानी थी और अपने जन्म सुफल करने थे। यहां हालत यह थी कि महाकुंभ प्रशासन व्यवस्था करते-करते हांफ रहा था पर यहां आने वालों का रेला नहीं रुक रहा था। शुरुआती दौर में लोगों ने अनुमान यही लगाया था कि जब अखाड़े यहां से चले जाएंगे तब महाकुंभ की भीड़ भी थोड़ी शांत होगी। फिर शांत माहौल में संगम में डुबकी लगाई जाएगी। परंतु सारे अनुमान गलत निकले। असली भीड़ तो अखाड़ों के जाने के बाद बाद आनी शुरू हुई। हर रोज औसतन एक करोड़ या उससे अधिक लोगों ने इस महाकुंभ में डुबकी लगाई। इन अखाड़ों के जाने के बाद जो भीड़ आनी शुरू हुई वह अंत तक आती रही।
यही कारण है सरकारी आंकड़े के अनुसार 45 दिन के इस महाकुंभ में 66 करोड़ से अधिक लोगों ने श्रद्धा की डुबकी लगा ली है। वैसे ये अनुमान एआई कैमरों का है। पर अगर विपक्ष की मांग के अनुसार अगर हम वास्तविक संख्या इसके आधा ही मान लें तब भी संख्या 33 करोड़ होती है। और यह आंकड़ा अमेरिका की जनसंख्या के लगभग बराबर है। यानी कि पूरा अमेरिका इस महाकुंभ में समा गया था। तो भी यह आंकड़ा 2013 के अखिलेश यादव के समय के महाकुंभ के 12 करोड़ के आंकड़े के लगभग तीन गुना है।
इस प्रकार लगता है कि यह महाकुंभ बिहार के नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एनडीए और भाजपा के लिए खाद बनकर आया है। अगर यह सनातनी ज्वार इस साल नवंबर-दिसंबर तक बरकरार रहा तो भाजपा और एनडीए को बिहार में प्रचंड बहुमत मिलने से दुनिया की कोई नहीं रोक सकता। अगर भीड़ पार्टियों की लोकप्रियता का पैमाना है तो 66 करोड़ सनातनियों का यह रेला एक मैसेज तो देकर ही गया है।
उधर 25 फरवरी को भी प्रयागराज आने वाली ट्रेनें, हवाई जहाज और सड़क मार्गों पर भीड़ के रेले ,जाम और धक्का मुक्की का दृश्य लगातार टीवी चैनलों पर दिखाया जाता रहा। यह सनातनी आस्था और विश्वास के उठने संकेत है। फिलहाल विजय रथ पर सवार भाजपा के लिए अब बिहार में चुनावी संभावनाएं बढ गई हैं। महाकुंभ से सनातनी आस्था का ऐसा ज्वार उमड़ा है कि विपक्ष इस समय निराश और हताश दिख रहा है। और इसी हताशा में उससे ऐसी बयानबाजी हो जा रही है, जो सीधे सनातनी आस्था पर चोट कर रही है। इस महाकुंभ की सफलता से विपक्ष की दिक्कत यह थी कि जैसे-जैसे महाकुंभ अपनी सफलता की ओर बढ़ रहा था वैसे-वैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और भाजपा का झंडा बुलंद हो रहा था। क्योंकि उनकी हिंदुत्व की फसल लहलहा रही थी। विपक्ष को इस बात का भय हो गया कि अगर इसी तरह सनातनी आस्था हिलोरें मारती रही तो आने वाले कई चुनावों में विपक्ष का सूपड़ा साफ हो सकता है। इस प्रकार इस महाकुंभ के आयोजन के बहाने भाजपा हिंदुओं को एकजुट करने में सफल रही। हर जाति वर्ग के लोगों ने महाकुंभ में शिरकत की और एक ही घाट पर स्नान किया, बिना भेदभाव के। एक अनुमान के अनुसार भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में लगभग 23 करोड़ लोगों ने वोट दिया था। और इस बार के संगम में स्नान करने वालों की संख्या 66 करोड़ के आसपास रही। अर्थात अगर इनमें से आधे से अधिक लोगों ने भाजपा का साथ दे दिया तो वह अजेय हो जाएगी। बशर्ते विपक्ष पिछले लोकसभा चुनाव की तरह कोई डाक्टर्ड वीडियो न वायरस कर दे। इसलिए भाजपा को इससे सावधान भी रहना होगा। अब भाजपा को कितने और सनातनी वोटरों का लाभ मिलेगा यह तो वोटर ही जानता है पर संख्या बढ़ेगी, यह तो तय है। और यही चिंता विपक्ष की थी।
इस महाकुंभ के आखिरी दिनों में यह चर्चा उठी थी की गांधी परिवार से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी इसमें हिस्सा लेंगे। पर अंततः कोई भी महाकुंभ में शामिल नहीं हुआ। बताया जाता है कि प्रियंका गांधी यहां आने को तैयार थीं लेकिन राहुल ने इसके लिए सहमति नहीं दी। इसीलिए गांधी परिवार इसमें शामिल नहीं हुआ। कांग्रेसी सूत्रों का कहना है कि दरअसल राहुल गांधी आने वाले चुनावों में एकला चलो की नीति पर अमल करने वाले हैं। इसलिए वे मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति नहीं छोड़ना चाहते हैं। उन्हें मालूम है कि सनातनी वोट तो इस समय लगभग पूरी तरह भाजपा के पक्ष में यूनाइट हो गया है। ऐसे में वे अपना मुस्लिम वोट बैंक मजबूत रखना चाहते हैं। सूत्रों का कहना है कि दक्षिण भारत के राज्यों में भी हिंदू वोट की बजाय मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति ज्यादा कारगर रहती है। वहां हिंदू सेंटिमेंट बहुत ज्यादा नहीं चल पाता है। इसी के चलते गांधी परिवार इस महाकुंभ में स्नान करने नहीं आया। हालांकि उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय का कहना है कि भले ही राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और गांधी परिवार महाकुंभ में न गया हो लेकिन मैं उनकी तरफ से गया था। और मैंने उनकी तरफ से भी डुबकी लगाई थी। वैसे इस महाकुंभ में कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू, राज्य सभा सांसद प्रमोद तिवारी आदि कई लोगों ने भी महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाई हैं। इसके अलावा दूसरी पंक्ति के कुछ और नेताओं ने भी महाकुंभ में डुबकी लगाई है। किंतु शायद हाईकमान के डर से अपने जाने का प्रचार नहीं किया। अब महाकुंभ में न आकर गांधी परिवार ने क्या खोया है, इसका पता उन्हें बिहार के विधानसभा चुनावों में चल ही जाएगा। इधर गांधी परिवार हिंदू धर्म के आयोजनों से लगातार दूरी रखने की कोशिश कर रहा है। अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भी गांधी परिवार नहीं गया था। इस बार महाकुंभ में न जाकर भी गांधी परिवार ने एक बार फिर साबित किया कि उसे मुसलमानों की अधिक चिंता है। आने वाले समय में यह उसके लिए एक बड़ी चुनौती हो सकता है। उधर पार्टी लाइन से अलग कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा है कि प्रयागराज महाकुंभ जाने का मेरा अनुभव एकदम ठीक-ठाक रहा। उन्होंने आयोजन की तारीफ करते हुए कहा कि इतना बड़ा काम करना आसान बात नहीं थी।
इसके अलावा समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव भी शुरुआती दिनों में ही जाकर संगम में डुबकी लगा आए। उनके साथ उनके पुत्र भी थे। हालांकि वहां से निकलकर उन्होंने वहां की अव्यवस्था, गंदे पानी आदि की खूब खूब चर्चा की। इसको लेकर उन्होंने योगी सरकार को कई बार कटघरे में खड़ा किया। इसके जवाब में भाजपाई भी पूछते रहे कि अगर संगम का पानी इतना खराब था तो वहां डुबकी क्यों लगाई। पत्रकारों द्वारा पूछने पर अखिलेश यादव ने कहा था कि मैंने संगम में 11 डुबकी लगाई। इस पर भाजपाइयों ने पूछा था अगर पानी इतना खराब था तो एक की बजाय 11 डुबकी कैसे लगा ली। उधर समाजवादी पार्टी के नेता आईपी सिंह का कहना है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सनातन और संस्कृति के विरोधी हैं। उन्होंने महाकुंभ में न जाकर यह साबित भी कर दिया है। इस महाकुंभ की व्यवस्था की आलोचना के चक्कर में सपा प्रमुख अखिलेश यादव, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सपा सांसद अफजाल अंसारी, राजद सुप्रीमो लालू यादव समेत कई लोगों ने सनातनियों की नाराजगी ले ली है। और हो सकता है कि इस सबका नुकसान उन्हें आने वाले कई चुनावों तक भी उठाना पड़े।
महाकुंभ के बहाने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के बीच चले वाद प्रतिवाद ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं। योगी ने आलोचना करने वालों को गिद्ध करार दिया। और कहा कि महाकुंभ में आकर जिसने जो देखना चाहा उसको उसी के हिसाब से चीजें मिलीं। यहां गिद्धों को लाश मिली। वहीं अखिलेश यादव का बचाव करते हुए उत्तर प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने योगी को इशारे इशारे में कंस तक कह डाला। अखिलेश यादव ने तो योगी पर तंज करते हुए यह तक कह दिया कि भगवा पहन लेने से कोई योगी नहीं हो जाता है। सबको मालूम है कि सीता जी को अगवा करने गए रावण ने भी भगवा कपड़े पहने थे। इस पर प्रतिवाद वार करते हुए उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने सपाइयों को कंस, रावण आदि उपाधियों से विभूषित कर दिया।
ये महाकुंभ आस्था के साथ अर्थव्यवस्था का पर्व बना : मुख्यमंत्री योगी ने इस महाकुंभ में आस्था और अर्थव्यवस्था का समावेश कर दिया था। यानी यहां एक पंथ दो काज हुए। प्रयागराज महाकुंभ के बहाने अयोध्या, काशी, मथुरा-वृंदावन, विंध्याचल और गोरखपुर भी आर्थिक दृष्टि से बम-बम रहे। प्रयागराज के साथ-साथ इन जगहों पर भी लोगों ने खूब पैसा कमाया। इसके अलावा यहां सनातनी आस्था बढ़-चलकर बोली। योगी आदित्यनाथ और भाजपा के इस आयोजन ने सनातन को एक नई ऊंचाई दी है। लोगों में यहां आने का आकर्षण इसलिए भी था क्योंकि इसी बहाने उनको काशी और अयोध्या में भी ईश्वर के दर्शन का लाभ मिल गया। इस महाकुंभ के चलते उत्तर प्रदेश की इकोनॉमी में जबरदस्त उछाल देखने को मिला। और यह उत्तर प्रदेश की जनता के कल्याण के लिए खर्च होगा। मुख्यमंत्री का कहना है कि महाकुंभ ने प्रदेश में पंचतीर्थ बना दिये। इस कारण प्रयागराज के साथ काशी, अयोध्या, गोरखपुर, मथुरा-वृंदावन और विंध्याचल में भी श्रद्धालु पहुंचे। एक तुलनात्मक आंकड़े के अनुसार मक्का में 24 दिन में 1 करोड़ 40 लाख, वेटिकन सिटी में 80 लाख जबकि अयोध्या में इसका 12 गुना यानी 16 करोड़ श्रद्धालु पहुंचे। यह उत्तरप्रदेश का नया सामर्थ्य दिखाता है।
सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय रही मोनालिसा : इस महाकुंभ में मोनालिसा नाम की एक माला बेचने वाली लड़की की किस्मत भी चमक गई। उसकी खूबसूरत आंखों का नशा लोगों पर ऐसा चढ़ा कि उस पर बेतहाशा रील बने। नतीजा यह हुआ कि वह रातोंरात मशहूर हो गई। उसकी खूबसूरती से प्रभावित होकर एक फिल्म डायरेक्टर सनोज मिश्रा ने उसे हीरोइन बनने का आफर दिया और अपने साथ ले गए। खबर है कि इस समय उसकी ट्रेनिंग चल रही है। यानी मोनालिसा के लिए यह महाकुंभ बहुत शुभ साबित हुआ। इसके अलावा महाकुंभ में 10000 लोगों द्वारा एक पर्दे पर हाथों की छाप देकर बनाई गई एक पेंटिंग ने गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना स्थान दर्ज कराया। इसके अलावा इस महाकुंभ में 36 साल पहले बिछड़े दो दोस्त भी मिले।
भाजपा को डाक्टर्ड वीडियो से बचना होगा : देश की आधी से अधिक सनातनी आबादी कुंभ नहा आई है। लेकिन कुछ लोगों की जातिवादी ठसक और नफरत है, कि जाती नहीं। करुणा आती है ऐसे लोगों पर, इन सेक्यूलर चैंपियन लोगों पर। एक बार सोच कर देखिए कि उत्तराखंड में अगर ग़ैर भाजपाई सरकार होती तो क्या प्रयाग में गंगा-यमुना की यही अविरल धारा मिलती, इसी तरह कल-कल बहती हुई। क्या वह ग़ैर भाजपाई सरकार, उत्तराखंड में ही पानी रोक नहीं लेती।
जहां तक सवाल कुंभ में आने वाली भीड़ का है तो कुंभ की भीड़ से घबराने वाले मति मंदों पर तरस आता है। भीड़ तो अयोध्या में भी थी। तो क्या लोकसभा चुनाव में अयोध्या की वह गदराई हुई भीड़ भाजपा के वोट बैंक में कनवर्ट हो पाई, नहीं। कांग्रेस ने आरक्षण का एक जिन्न खड़ा किया, डाक्टर्ड वीडियो चलवा दिया मोदी, अमित शाह का कि आरक्षण समाप्त कर देंगे। जबकि असल वीडियो था कि मुस्लिम आरक्षण समाप्त कर देंगे। पर मुस्लिम हटाकर कांग्रेस ने चुनाव की धारा मोड़ दी। अमित शाह ने एफआईआर, सिंबालिक अरेस्ट वगैरह तो करवा दिया, कुछ कांग्रेसियों का। पर अमित शाह ने इसे यूट्यूब से हटवाना ज़रूरी नहीं समझा। उधर अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के गांवों में एक मुहिम की तरह इस वीडियो को वायरल कर दिया। और आरक्षण के इस जिन्न के आगे अयोध्या के राम हार कर चित्त हो गए। और अखिलेश क़ामयाब होकर जय अवधेश करने लगे। फ़सल बोई थी कांग्रेस ने और अखिलेश काट ले गए। तो जैसे आरक्षण के आगे अयोध्या की भीड़ भाजपा के वोटर में नहीं तब्दील हो सकी तो क्या गारंटी है कि कुंभ की भीड़ तब्दील हो जाए ? आरक्षण नहीं, कुछ और आ जाए तो ? इसलिए भाजपा को इस बार सावधान रहने की जरूरत है। * दयानंद पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार
खजाना तो भरा ही, भाजपा की झोली भी भरी : प्रदेश के ख़ज़ाने में इस महाकुंभ ने लगभग 54000 करोड़ का राजस्व दिया है। यानी कुल सात हजार करोड़ रुपए खर्च करके 54000 करोड़ का राजस्व। साथ ही हिंदू जनमानस को जातियों में बंटने से भी रोका गया है। यह अद्भुत है। सनातन और अर्थव्यवस्था के उछाल का यह अद्भुत संगम रहा। जिस प्रकार इस महाकुंभ में सनातनी विना भेदभाव के एक साथ डुबकी लगा रहे थे, वह बेजोड़ था। निश्चित रूप से इस आयोजन ने भाजपा और योगी आदित्यनाथ को मजबूत किया है। और अगर यह वोट बैंक में बदल जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। इस महाकुंभ में जो पर्यटन करने गया, सिर्फ उसे ही तकलीफ मिली। जो तीर्थाटन करने गया, उसने संगम में पवित्र डुबकी लगाई और धन्य-धन्य होकर वापस लौट आया। * अरुण शाही, वरिष्ठ राजनीतिक सम्पादक, राष्ट्रीय सहारा, लखनऊ
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक