भारत का विपक्ष-अधजल गगरी छलकत जाए

* विपक्षी गठबंधन की सोच यह है कि हम दौड़ ही नहीं पाए तो क्या, भाजपा को भी तो उसकी मनचाही मंजिल नहीं मिली * विपक्ष खुश है कि उसने मोदी को पूर्ण बहुमत से रोक दिया भले ही वे मिलकर भी भाजपा की बराबरी नहीं कर पाए * जिन्होंने डेढ़ सौ सीटों पर ही गठबंधन सरकार चलाई है उन्हें भी 241 सीटें पाने वाले नरेंद्र मोदी की क्षमता पर संदेह है

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लखनऊ। विपक्ष इस सच को जानने के बावजूद कि वह मात्र 234 सीटों पर सिमट गया है, वह अभी भी यह मानने को तैयार नहीं कि नरेंद्र मोदी 295 सीटों के प्री पोल अलायंस के साथ प्रधानमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। मंत्रिमंडल बन गया है, विभागों का भी बंटवारा हो गया है किन्तु विपक्ष को अभी भी लगता है कि यह सरकार अब गिरी तो तब गिरी। राजनीति संभावनाओं का खेल और आवश्यकताओं का मेल है। इसी उम्मीद में विपक्ष आस लगाए बैठा है कि शायद बिल्ली के भाग्य से छींका टूटेगा और एनडीए का कोई नाराज साथी उनसे जाकर मिलेगा। और फिर नये समीकरण बनेंगे। हालांकि एनडीए के गठबंधन सहयोगी बार-बार कह रहे हैं कि हम पूरी मजबूती से नरेंद्र मोदी और भाजपा के साथ खड़े हैं। किंतु विपक्ष है कि मानने के लिए तैयार ही नहीं। भोजपुरी में ऐसी स्थिति को ही शायद थेथरई कहा जाता है। ऐसे लोगों के लिए तो सिर्फ यही कहा जा सकता है कि दिल बहलाने के लिए ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है। वैसे राजनीति के जानकार इसे अपने घर में फूट पड़ने की आशंकाओं की काट का नाम देते हैं। उनका मानना है कि यह सिर्फ अपने लोगों को इंटैक्ट रखने की कवायद है।

आजकल की राजनीति भी गजब हो गई है। दूसरे की कमीज पर दाग है इसलिए मिट्टी में सनी अपनी कमीज साफ दिख रही है। इंडी गठबंधन की सरकार नहीं बनी कोई गम नहीं पर एनडीए सरकार कमजोर है, इस बात की विपक्ष को खुशी है। इसके पीछे अजीब-अजीब तर्क हैं। जरा बानगी देखिए। इस बाबत आम आदमी पार्टी का कहना है कि जनता ने नरेंद्र मोदी को सरकार बनाने का जनादेश नहीं दिया है। भारत की जनता ने उन्हें नकार दिया है। इसी तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी का कहना है कि बीजेपी सिर्फ हारी ही नहीं है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बनारस से जान बचाकर भागना पड़ा है। हमें अफसोस है कि हमने बहन प्रियंका गांधी को बनारस से नहीं लडाया, वरना वो कम से कम तीन लाख वोटों से प्रधानमंत्री मोदी को हरा देती। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का भी मानना है कि एनडीए को बहुमत नहीं मिला है। यह सरकार कभी भी गिर जाएगी, देखते रहिए। ये सरकार गलती से बनी अल्पमत सरकार है। कांग्रेस के यूपी अध्यक्ष अजय राय कहते हैं कि एनडीए की सरकार लंगड़ी सरकार है, दो बैसाखियों पर खड़ी है। यह कभी भी गिर सकती है।

शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत का मानना है कि जनादेश भाजपा के खिलाफ गया है। यह नरेंद्र मोदी की नैतिक हार है। बैसाखियों पर टिकी ये सरकार कभी भी गिर सकती है। इस बारे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी फ़रमाती हैं कि जनता ने खेला कर दिया और नरेंद्र मोदी को बैसाखी पर लाकर खड़ा कर दिया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि राम के नाम पर राजनीति करने वालों को राम ने ही दंड दे दिया। उन्हें फैजाबाद सीट पर करारी शिकस्त दी, यही है श्री राम का न्याय। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता तो यहां तक सवाल उठाते हैं कि नरेंद्र मोदी भाजपा संसदीय दल के नेता ही नहीं चुने गए हैं। उनका पीएम पद पर चयन ही अवैध है।

ऐसे ही बिना सिर-पैर के तर्कों के सहारे विपक्ष अपने गठबंधन के साथियों, अपनी पार्टी के जीते हुए सांसदों को सपने दिखा रहा है ताकि उनमें फूट न पड़े। राजनीति के जानकारों का मानना है ऐसा कोई तभी करता है जब उसे इस बात का खतरा होता है कि उसके गठबंधन या उसकी पार्टी में टूट हो सकती है। इस तरह के बयानों से वे अपने लोगों का मोरल ऊंचा करते हैं ताकि सभी लोग गठबंधन या पार्टी में ही बने रहें। और वे किसी लालच में बाहर निकलने की या दूसरे गठबंधन या दल जाने की न सोचें। ये सीधे-सीधे अपना घर बचाए रखने की पेशबंदी है।

इसके जवाब में सत्ताधारी गठबंधन एनडीए के नेता विपक्ष के दावों को गलत बताने में जुटे हुए हैं। उनका मानना है कि यह इंडी गठबंधन का माइंड गेम है। यह लोगों को गलत संदेश देने का प्रयास भी है। एनडीए नेताओं का कहना है कि हमारा अलायंस प्री पोल अलायंस है। यह अगले लोकसभा चुनाव तक ऐसे ही अटूट बना रहेगा। विपक्ष के पास हाथ मलते हुए देखते रहने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। विपक्ष पिछले 10 सालों से सत्ता से दूर हैं और उसके ये बयान उनकी हताशा का परिचायक हैं। इस बाबत सत्तारूढ़ गठबंधन के लोगों के बयानों की बानगी देखिए। बिहार की हम पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी कहते हैं कि विपक्ष को हार की टीस सता रही है। जब उनके पास कहने को कुछ नहीं है तो कुछ भी बोल रहे हैं। हम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बेहतर सरकार चलाएंगे। एनडीए के एक मजबूत स्तंभ और बिहार के सीएम नीतीश कुमार पूरी तरह आश्वस्त हैं और कहते हैं कि इस बार जो थोड़ा-बहुत दाएं-बाएं सीटें छिटक गई हैं न अगली बार वो सब वापस आ जाएंगी, देखिएगा। हम सब मिलकर काम करेंगे। मोदी जी जैसे कहेंगे, वैसे ही काम होगा।

जनता दल यूनाइटेड के अन्य प्रवक्ता कहते हैं कि कांग्रेस तो 99 के फेर में फस गई है, अब वह क्या बोलेगी। एनडीए के दूसरे मजबूत पिलर और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू का कहना है कि नरेंद्र मोदी देश ही नहीं विश्व के भी बड़े नेता हैं। उनके नेतृत्व में एनडीए बहुत बेहतर प्रदर्शन करेगा। हम आश्वस्त हैं। विपक्ष के दावों पर भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा का कहना है कि इंडिया को इस बारे में बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उन्हें जितनी सीटें कुल मिलाकर मिली हैं उससे ज्यादा तो अकेले भाजपा को मिली हैं। हमारे पास सरकार चलाने का जनादेश है। जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता अभिषेक झा कहते हैं कि खड़गे का बयान अपनी पार्टी के लोगों को बचाकर रखने के लिए है। ताकि उनकी पार्टी में कोई भगदड़ न हो।

कुल मिलाकर फिलहाल एनडीए की ओर से किसी भी पार्टी ने बगावत का कोई सुर अभी तक नहीं दिखाया है। आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता। क्योंकि राजनीति तो संभावनाओं का खेल और आवश्यकताओं का मेल है। परंतु अभी तक की परिस्थितियों में विपक्षी सरकार की स्थिरता के बारे में थेथरई कर रहे हैं। प्री पोल अलायंस की बहुमत की सरकार को अल्पमत की सरकार कहना उनके मानसिक दिवालियापन को भी दर्शाता है। शायद यह सरकार न बना पाने की उनकी हताशा है या फिर थोड़ी सी सफलता मिल जाने का दंभ। शायद यह कहावत विपक्ष के लिए ही बनी है कि-अधजल गगरी छलकत जाए। अर्थात जो गगरी आधी ही भरी है वह भी अपने छलकने का एहसास कर रही होती है। वैसे भारत का विपक्ष तो लगता है कि बहुमत और अल्पमत की परिभाषा ही भूल गया है। इसलिए एनडीए सरकार के अल्पमत में होने का बयान आना लगातार जारी है। बेहतर तो यह होता कि वे सच्चाई स्वीकार करके एक सार्थक विपक्ष के रूप में काम करते। जब कभी उनकी मंशा के मुताबिक एनडीए में कोई फूट पड़ती और कोई अलग होकर उनसे मिलने आता तो वे यह सारे बयान तब के लिए बचा कर रखते। परंतु ये भारत है, यहां पर सबको बोलने की आजादी है। और शायद इसी आजादी का लाभ विपक्षी उठा रहे हैं। ईश्वर उनको सद्बुद्धि दे।

अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक