नवनियुक्त आरआरए रिज़र्व बैंक का कार्यबोझ करेगा हल्का

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आरबीआई का नवनियुक्त आरआरए 1 मई से होगा सक्रिय

भारतीय रिज़र्व बैंक ने रेग्युलेशन रिव्यू अथाॅरिटी (आरआरए) के गठन के साथ ही इस पद पर आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव को नियुक्त करने का निर्णय किया है। यह एक वर्ष के लिए गठित की गई है पर आरबीआई चाहेगा तो इसकी अवधि बढ़ा भी सकता है।

पिछले दो दशकों में राष्ट्रीय और वैश्विक वित्तीय-आर्थिक परिदृश्य में अकल्पनीय त्वरित बदलावों ने अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह भारतीय रिज़र्व बैंक के समक्ष भी नित नई नियामकीय चुनौतियां खड़ी की हैं। जिससे कार्यबोझ बहुत बढ़ा है। रिज़र्व बैंक के साथ-साथ इसके नियामकीय दायरे में आने वाले सभी संस्थानों- संस्थाआें ( बैंक, एनबीएफसी, वित्तीय क्षेत्र वगैरह) के ऊपर भी नियम-कानून अनुपालन संबंधी अनिवार्य कार्यों (रिपोर्टिंग) का बोझ बहुत अधिक हो गया है।

आरआरए का उद्देश्य समीक्षा के माध्यम से नियमन प्रक्रियाओं के सरलीकरण और उनकी धार पैनी करने तथा कार्यबोझ हलका करने के बाबत संस्तुतियां प्रस्तुत करना है। देश में उदारीकरण के बाद के सालों में भी नियामकीय कार्य और इसके दायरे में आने वाले सभी संस्थानों-संस्थाओं पर अनुपालन संबंधी अनिवार्य कार्य बहुत बढ़ गया था। उस दौर में भी रिज़र्व बैंक ने ऐसा ही कदम उठाया था।

पहली बार एक वर्ष के लिए गठित आरआरए ने 1999, 1अप्रैल से कार्य प्रारंभ किया था। अब नवगठित अथाॅरिटी निम्न विषयों पर अपने सुझाव-संस्तुतियां प्रस्तुत करेगी। यह आरबीआई की नियमन प्रक्रियाओं के सरलीकरण हेतु सुझाव देगा। यह आरबीआई द्वारा संचालित विभिन्न प्रणालियों को और सक्षम करने के संबंध में उपाय सुझाएगा। अथाॅरिटी रिज़र्व बैंक द्वारा ‌जारी किए जाने वाले सर्कुलर्स, गाइडलाइंस, आदेशों, प्रतिबंधात्मक और निषेधात्मक कार्रवाइयों आदि की प्रकीर्णन प्रक्रिया (डिस्सेमिनेशन प्राॅसेस) में बदलाव ‌और सरलीकरण की आवश्यकता के अनुसार उपाय सुझाएगी।

देश में पिछले दो दशकों में नियमन विस्तार की वजह से प्रलेखीकरण संबधी काम में बहुत
इज़ाफ़ा हुआ है। अथाॅरिटी इस पर भी आवश्यक उपाय सुझाएगी। आरबीआई के कार्यकलापों की व्यापकता का अनुमान लगाना भी आसान नहीं है। जैसे-जैसे देश में आर्थिक गतिविधियां बढ़ीं, अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ। इसके बंद दरवाजे और खिड़कियां खुलती गईं। उसी से कदमताल करते हुए आरबीआई के कंधों पर जिम्मेदारियों के लदते पुलिंदों के समग्र भार का अनुमान लगाने के लिए इसकी पृष्ठभूमि को समझना ज़रूरी है।

ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत के वित्त और मुद्रा क्षेत्र के लिए साल 1920 में हिल्टन-यंग आयोग का गठन किया। इस आयोग ने 1926 में ब्रिटिश सरकार से एक केंद्रीय बैंक की स्थापना करने की संस्तुति की थी। ब्रिटिश सरकार ने 1934 में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट बनाया जिसके अंतर्गत 1935, 1 अप्रैल से रिज़र्व बैंक ने कार्य प्रारंभ किया था। शुरुआत में इसकी कुल चुकता पूंजी पांच करोड़ रुपए थी और इसमें से भी सिर्फ 22 लाख के लगभग तत्कालीन सरकार के स्वामित्व में थी।

देश के स्वतंत्र होने के बाद वर्ष 1949 में रिज़र्व बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया जोकि आज भारतीय बैंकों का बैंकर है। रिज़र्व बैंक में सबसे अहम नोट निर्गम विभाग और बैंकिंग, मुद्रा प्रबंधन, विदेशी विनिमय, व्यय और बजटीय नियंत्रण, साख‍ नियोजन, निरीक्षण, सांख्यिकीय विश्लेषण और कंप्यूटर सेवाएं, रिकार्ड और डाॅक्युमेंटेशन, आर्थिक विश्लेषण और नीति, एनबीएफसी, कृषि साख, आरबीआई सर्विस बोर्ड सहित 23 विभाग हैं।

रिज़र्व बैंक ने बीते कलेंडर वर्ष 2020 में 234 अधिसूचनाएं और 210 सर्कुलर जारी किए। तेरह हजार कर्मियों और 4 डिप्टी गवर्नरों से लैस टीम के सहयोग से कप्तान गवर्नर भारतीय अर्थव्यवस्था की पिच पर अंतहीन जोर आजमाइश में लगे हैं।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी