मैसूर राजमहल भारत का एक अति समृद्ध धरोहर है। कर्नाटक के मैसूर शहर स्थित यह राजमहल देश के चुनिंदा एवं खास पर्यटन स्थलों में से एक है। पुरातात्विक आन-बान एवं शान का प्रतीक यह राजमहल खूबियों से आच्छादित है। मैसूर का यह राजसी महल चामुंडी हिल्स पर स्थित है। इसे महाराजा पैलेस, राजमहल एवं अम्बा विलास पैलेस भी कहा जाता है।
वाडियार राजघराने का यह राजमहल द्रविड़, पूर्वी एवं रोमन स्थापत्य कला का अद्भुत संगमन है। विशिष्टताओं के कारण मैसूूर राजघराने का यह महल पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। स्लेटी रंग के पत्थरों से बने इस महल के गुम्बद लाल रंग के पत्थरों से सुसज्जित हैं। खास यह कि पहले यह राजमहल चंदन की लकड़ियों का बना था लेकिन पुर्नरुद्धार के बाद इस राजमहल ने एक नया रूप रंग ले लिया। चंदन के राजमहल को अब संग्रहालय के तौर पर परिवर्तित कर दिया गया है। सुन्दरता का शिखर कहे जाने वाले इस राजमहल में एक बड़ा दुर्ग है।
इस दुर्ग के गुम्बद सोने के पत्तरों से सुशोभित हैं। सूरज की रोशनी में यह गुम्बद आैर भी निखर आते हैं। मैसूर के इस राजमहल में एक गुड़िया घर भी है। इसे गोम्बे थोट्टी भी कहते हैं। इस गुड़िया घर में गुड़िया सहित साज-सज्जा की बेहतरीन सामग्री भी हैं। विशेष यह है कि इसमें लकड़ी का एक हौदा भी है। इस हौदा को सजाने में 84 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है। इस हौदे को हाथियों की पीठ पर सजाया जाता था। जिससे राजा बैठ सकें। गोम्बे थोट्टी के सामने सात तोपें भी विद्यमान हैं। इन तोपों को दशहरा सहित अन्य त्योहारों-पर्व पर दागा जाता है। राजमहल में गजद्वार भी है। यह राजमहल का प्रवेश द्वार है। राजमहल के मध्य में कल्याण मंडपम है।
यह स्थान खास तौर शादी विवाह या अन्य मांगलिक कार्यों के उपयोग के लिए निर्धारित था। इसकी छत रंगीन कांच के टुकड़ों से संरचित है। फर्श पर चमकदार पत्थर के टुकड़े लगे हैं। अन्य राजसी महलों की भांति यहां भी दीवान-ए-आम है। दीवान-ए-आम राजसी चित्रों, पोशाकों एवं हथियारों से सुसज्जित है। लकड़ी के दरवाजों की नक्काशी सुन्दरता को आैर भी बढ़ाते हैं। छतों पर लगे झाड़-फानूस राजमहल की शोभा में चार चांद लगाते हैं। दशहरा पर्व पर 200 किलो सोना से बने सिंहासन को आम जनता के लिए प्रदर्शित किया जाता है। राजमहल परिसर में प्रवेश करते ही सोने से कलश से सजा देव स्थान है।
राजमहल के ठीक सामने दिव्य-भव्य उद्यान है। राजमहल के दर-ओ-दीवार एवं स्तम्भ की बारीक एवं सुन्दर नक्काशी देखते ही बनती है। दर-ओ-दीवार पर कृष्णराजा वाडियार, उनके परिवार एवं उत्तराधिकारियों के शानदार जोशीले चित्र शोभायमान हैं। इनमें राजतिलक से लेकर सैन्यबलों के चित्र सहित यशोगाथा का वर्णन है। मध्य के विशाल कक्ष में छत नहीं है। चौतरफा गुंबद हैं। यह गुंबद रंगबिरंगे कांच के टुकड़ों से सजे हैं।
लिहाजा सूरज एवं चांद की रोशनी में राजमहल का कोना जगमगा उठता है। राजमहल का प्रथम तल पूजा-अर्चना के लिए निर्धारित था। लिहाजा यह देव स्थान है। स्तम्भ श्रंखला से घिरा दरबार हाल है। द्वितीय तल पर यह एक गोलाकार स्थान है। यहां महाराजा एवं महारानी जनता की फरियाद सुनते थे। इसी तल के पिछले भाग में तीन सिंहासन रखे हैं। यह सिंहासन महाराजा, महारानी एवं युवराज के लिए थे। राजमहल की चकाचौंध देश-दुनिया में खास ख्याति रखती है। दशहरा सहित विशेष पर्व पर राजमहल को रोशनी से सजाया जाता है।
विशेषज्ञों की मानें तो राजमहल में रोशनी के लिए 97000 बल्बों का उपयोग किया जाता है। रोशनी भी गजब की होती है। इस जगमगाहट को देख कर आंखे चौंधिया जाती हैं। मैसूर राजमहल में एक दर्जन से अधिक मंदिर एवं देव स्थान है। खास यह कि हर मंदिर की बनावट एवं वास्तुशिल्प अलग-अलग है। मैसूर रियासत के इस राजमहल को देखने के लिए दुनिया के पर्यटक आते रहते हैं।
मैसूर राजमहल अर्थात अम्बा विलास पैलेस की यात्रा के सभी आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू से मैसूर की दूरी करीब 150 किलोमीटर है। निकटतम एयरपोर्ट करीब 140 किलोमीटर दूर बेंगलुरू में है। मैसूर रेल मार्ग से जुड़ा है। लिहाजा रेल मार्ग से भी मैसूर की यात्रा की जा सकती है। सड़क मार्ग से मैसूर राजमहल की यात्रा की जा सकती है।