कोविड : गोवा की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल

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खनन बंदी ने गोवा की आर्थिक कमर तोड़ दी, पर्यटन उद्योग को लगा तगड़ा झटका

देशी-विदेशी सैलानियों से गुलज़ार रहने वाले मनोहारी समुद्र तटों, नाइट क्लबों और खनिज उद्योग से सरसब्ज गोवा की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छाए हुए हैं। पहले सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश का कहर खनन पर बरपा और ऊपर से कोविड के आक्रमण पर आक्रमण से यह कोंकणी क्षेत्र बेज़ार हो गया है।

मालूम हो कि देश की जीडीपी की तुलना में गिरजाघरों की नगरी कहे जाने वाले नन्हें से गोवा का सकल घरेलू उत्पाद ढाई गुणा अधिक रहा है। बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च, 2018 में 88 खनन पट्टों (माइनिंग लीज़) के नवीनीकरण रद्द कर दिया था, वो रोक तब से लगी हुई है। खनन कर्मी और खनिज ढुलाई में लगे ट्रक ट्रांसपोर्टरों का व्यवसाय मरणासन्न स्थिति में है।

ट्रक संगठनों के सूत्रों का कहना है कि तमाम ट्रक मालिक कर्ज की किस्तों का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। गोवा के सकल घरेलू उत्पाद में खनन का योगदान पंद्रह फीसदी के आसपास रहता था, 2017 में राज्य का सकल घरेलू उत्पाद 77 हजार करोड़ रुपए के स्तर पर था। इस कोंकणी क्षेत्र में लौह अयस्क, बाॅक्साइट, मैंगनीज, सिलिका, चूना पत्थर (लाइमस्टोन) और लिग्नाइट, सहित कई अन्य खनिजों के भंडार हैं।

सबसे अधिक लौह अयस्क का 100 करोड़ टन का भंडार है। खदानों से निकलने वाला अधिकांश लौह अयस्क चीन, जापान, ताइवान, द. कोरिया और पूर्वी यूरोप को निर्यात किया जाता था। राज्य में खनन उद्योग पूरी तरह से निजी क्षेत्र के हाथ में है। अनिल अग्रवाल का वेदांता ग्रुप इस क्षेत्र का दिग्गज खिलाड़ी है। खनन बंद होने से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लगभग तीन लाख लोग प्रभावित हैं।

धनबाद स्थित इंडियन स्कूल आफ माइंस और इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नाॅलाॅजी ने 2020 के मध्य में यहां की स्थिति रिसर्च की थी। इस रिसर्च के अनुसार गोवा में खनन बंदी से आर्थिक और सामाजिक जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। दक्षिण गोवा में सैंग्युएम, कानकोना, क्यूपेमऔर आसपास के आसपास तथा उत्तर गोवा में सत्तारी, परनेम, मापोसा और तिसवाडी इलाके में स्थित खनन क्षेत्रों में लोगों की आय घटकर पचास फीसद से भी कम रह गई है।

सरकार को खनन क्षेत्र से प्राप्त होने वाले राजस्व का खासा नुकसान उठाना पड़ता है। गोवा सरकार को 2016-17 में सिर्फ लौह अयस्क खनन से 245 करोड़ रुपए की राॅयल्टी प्राप्त हुई थी। खनन क्षेत्रों में रोजगार छिनने से लोगों को आय के वैकल्पिक साधन नहीं मिल पा रहे हैं। नौजवानों का पलायन होता जा रहा है।

पिछले साल कोविड के ‌पहले आक्रमण से राज्य के पर्यटन और इस पर आधारित उद्योगों – होटल-रेस्ट्रां- बार नाइट क्लबों से लेकर बीच और समुद्री तटों के सैर-सपाटे में लगे ट्रांसपोर्टरों, शिप्स-बोट्स सेवा प्रदाताओं को अगस्त-सितंबर 2020 से आशा की किरणें ‌दिखने शुरू ही हुईं थीं। लेकिन नए साल में कोविड के दूसरे और पहले से भयानक आक्रमण ने सैलानियों से रहित तटों से लेकर बाज़ारों, होटल-रेस्ट्रां विश्व प्रसिद्ध चर्चों और डच, पुर्तगाली स्थापत्य के अद्भुत साक्ष्य बनीं प्राचीन भव्य इमारतों में सन्नाटा पसरा हुआ है।

विश्व के दस टाॅप नाइटलाइफ शहरों में छठवें पायदान पर खड़े गोवा को सैलानियों की गहमागहमी लौटने का बेसब्री से इंतजार है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में पर्यटन का योगदान भी खनन क्षेत्र के बराबर पंद्रह फीसद रहता है। वर्ष 2019 में 9.37 लाख विदेशी और 7.27 लाख देशी मिलाकर 14.64 लाख से ज़्यादा सैलानियों ने इस कोंकण नगरी का आनंद लिया।

कोविड के दोबारा संक्रमण से मछुआरों और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों और इन पर आश्रित कामगारों पर आफत आन पड़ी है। मत्स्य उद्योग-व्यवसाय में करीब पैंतालीस हजार लोगों को रोजगार मिलता है। सामुद्रिक उत्पादों के निर्यात से गोवा को सालाना 400-500 करोड़ रुपए की आमदनी होती रही है।
खनन और पर्यटन गोवा को गोवा की लाइफ लाइन कहा जाता है। दोनों पर संकट होने से यहां के लोगों में सहज समाहित मस्ती गुमशुदा हो गई है।

एक रेटिंग एजेंसी ने कोविड के पिछले आक्रमण और इस साल दोबारा हमले से राज्य के पर्यटन क्षेत्र को सात से दस हजार करोड़ रुपए का नुकसान लगने का अनुमान लगाया है। ‘गोवा माइनिंग पीपल्स फ्रंट’, ‘साउथ गोवा ट्रक ओनर्स एसोसिएशन’ और ‘नाॅर्थ गोवा ट्रक ओनर्स एसोसिएशन’ ने लोगों की रोजी-रोटी की दुहाई देते हुए खनन बंदी और कोविड त्रासदी से राहत की गुहार लगाई है। इन संगठनों के पदाधिकारियों ने राज्य और केंद्र सरकार से खनन कार्य फिर से शुरू कराने का अनुरोध किया है।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी