# जन्मदिन 1अगस्त पर विशेष # मोती बीए को भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है #
हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी और भोजपुरी पर समान अधिकार रखने वाले और भोजपुरी के शेक्सपियर के नाम से याद किए जाने वाले मोती बीए ने दुनिया छोड़ने से पहले लंबी गुमनाम जिंदगी गुजारी। आजादी से पहले उन्होंने एम. ए. कर लिया था लेकिन कविता के मंच पर अपनी क्रांतिकारी रचनाओं की वजह से वह तब देशभर में चर्चित हो गए जब उन्होंने बी.ए. किया था और तभी से उनके नाम के आगे यह बीए ऐसा जुड़ा कि वह हमेशा मोती बीए के नाम से ही जाने गए।
वह मोती बीए ही थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में भोजपुरी की सर्वप्रथम जय जयकार करायी थी। मोती बीए का पूरा नाम मोतीलाल उपाध्याय था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरेजी नाम के गांव में 1 अगस्त 1919 को हुआ था। बचपन से ही कविता में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी। मनपसंद कविताओं को जबानी याद कर लेते थे, फिर उन्होंने कविताएं लिखनी शुरू कर दी और देश के नामी-गिरामी कवियों में शामिल हो गए।
यही कारण है कि अपने गीतों के लिए सदा याद किए जाएंगे मोती बीए। यह अलग बात है कि भोजपुरी परिवेश से सम्बद्ध मोती बीए को यथेष्ठ सम्मान नहीं मिला। मोती बीए ने शेक्सपियर के 109 सानेट्स का हिंदी पद्यानुवाद किया है। लाहौर और मुंबई में रहकर कई हिंदी और भोजपुरी फिल्मों में गीत लिखे। हिंदी फिल्मों को भोजपुरी गीतों से परिचित कराने का श्रेय भी मोती बीए को ही जाता है।
मोती बीए की रचनाशीलता के बारे में हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था कि मुझे मोती बीए की प्रतिभा और भाषा पर अधिकार देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई। मेरे विचार से भोजपुरी के माध्यम से उत्तम से उत्तम विचारों और उदात्त भावनाओं का निबंधन होना चाहिए और मैंने महसूस किया है कि मोती जी की कविताओं में इसके बीज मौजूद हैं। हरिवंश राय बच्चन ने एक बार कहा था कि मोती बीए सरल शैली के मास्टर हैं। इनकी रचनाओं पर शोध किया जाए तो पता चलता है कि कितनी गम्भीर बातों को इन्होंने सरल से सरल शब्द मुहावरों में कह दिया है जो मुहावरा बनने की क्षमता रखती हैं।
समालोचक विश्वंभर मानव का कहना है कि मोती बीए एक ऐसे वरिष्ठ गीतकार हैं जिनके बारे में कहा जा सकता है कि उत्तर छायावाद काल में जो नया काव्यांदोलन प्रचलित हुआ और जो किसी न किसी रूप में अभी तक चल रहा है जिसे नया गीत काव्य कहते हैं, जिसमें अनेक नये गीतकारों का योग है, मोती बीए उन्हीं में से एक है। हल्दीघाटी के रचयिता श्यामनारायण पाण्डेय का कहना था कि मोती बीए भोजपुरी के सर्वाधिक प्रिय एवं आकर्षक कवि तो हैं ही, खड़ी बोली के मधुर गीत लिखने में अपने समान आप ही हैं। इनके भोजपुरी लहजे के गीतों को फिल्मों में सुनकर प्रतीत हो जाता है कि कवि किस विधा का कवि है, जो लोकजीवन के अन्दर पैठा हुआ है।
मुझे दो बार उनसे मिलने का सौभाग्य मिला, जब मैं एक बार बम्बई से उनसे मिलने आया था। तब उनकी फिल्म गज़ब भइले रामा की शूटिंग चल रही थी। दूसरी बार लखनऊ से उनकेे घर बरहज गया। तब वह काफी बीमार थे। समकालीन साहित्यकारों की उपेक्षा से दुखी भी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में बरहज कस्बे के निकट बरेजी गांव में हुआ था। आपके पिता का नाम राधाकृष्ण उपाध्याय और माता का नाम कौशल्या (कौलेसरा) देवी था। बरहज के ‘किंग जार्ज स्कूल’ (अब हर्षचन्द इ० का०) से 1934 में हाईस्कूल और गोरखपुर के ‘नाथ चन्द्रावत कालेज’ से 1936 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। कालेज के अंग्रेजी प्रवक्ता मदन मोहन वर्मा महादेवी जी के अनुज थे। उनकी प्रेरणा से महादेवी वर्मा की काव्य रचनाओं को देखकर मोतीजी की काव्य प्रतिभा का प्रस्फुटन हुआ। ‘लतिका’, ‘बादलिका’, ‘समिधा’, ‘प्रतिबिम्बिनी’ और ‘अथेति’ उनकी प्रमुख हिंदी काव्यकृतियां हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1938 में बीए करने के बाद ही कवि सम्मेलनों में छा गये और ‘मोती बीए’ नाम से प्रसिद्ध हुए, जबकि बाद में एमए, बीटी और साहित्यरत्न की उपाधि भी अर्जित करके आजीविका के लिए पत्रकारिता से जुड़ गए और प्रसिद्ध क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल के दैनिक पत्र ‘अग्रगामी’, शिवप्रसाद गुप्त के ‘आज’ तथा बलदेव प्रसाद गुप्त के ‘संसार’ के सम्पादकीय विभाग से सम्बद्ध रहे।
इस दौरान स्वतंत्रता आन्दोलन में भी आपकी भूमिका रही और 1942 के आंदोलन में गोरखपुर तथा बनारस की जेलों में नजरबंद रहे। जेल से रिहा होने के बाद पत्रकारिता में आपका मन नहीं रमा और पं सीताराम चतुर्वेदी की सहायता से ‘पंचोली आर्ट्स पिक्चर्स’ लाहौर में फिल्मी गीत लिखने का अवसर मिला। लाहौर और फिर बम्बई में रहकर कई हिंदी और भोजपुरी फिल्मों में गीत लिखे। अशोक कुमार, किशोर साहू आदि के साथ कार्य किया। गीत लेखन के साथ ही कुशल अभिनय की भी छाप छोड़ी। हिंदी फिल्मों को भोजपुरी गीतों से परिचित कराने का श्रेय मोती बीए को ही जाता है। 1948 में रिलीज दिलीप कुमार और कामिनी कौशल अभिनीत ‘नदिया के पार'(1948) फिल्म के लिए आप द्वारा लिखे गए सभी सात गीतों में ‘कठवा के नइया बनइहे रे मलहवा’ को बालीवुड का पहला भोजपुरी गीत माना जाता है। इस फिल्म का ‘मोरे राजा हो, ले चल नदिया के पार’ गीत सुपरहिट हुआ था।
इसी में पार्श्वगायिका शमशाद बेगम ने सी. रामचन्द्र के निर्देशन में “जुलुम करे रे गोरी अंखिया तोहारी” गाया था जिसमें पुरुष स्वर सी. रामचन्द्र का ही था। दूसरे गीतों को लता, राजकुमारी, ललिता देउलकर और रफी ने गाये थे। इसके अलावा शमशाद ने इन्ही का लिखा फिल्म “राजपूत”(1951) में भी पहली बार भोजपुरी जोगीरा रफी साहब के साथ गाया था। बाद में 1984-85 में फिल्म निर्माताओं के विशेष अनुरोध पर कुछ भोजपुरी फिल्मों- गजब भइले रामा, ठकुराइन और चम्पा चमेली- के लिए गीत लिखे। ‘ठकुराइन’ फिल्म में अभिनेत्री पद्मा खन्ना के पिता की भूमिका भी निभाई। ‘मोरी अरज सुनीं महराज हो, साँवरे गिरधारी’ इसी फिल्म का मशहूर भजन है। ‘गजब भइले रामा’ फिल्म का ‘अँगनइया बीच तुलसी लगइबो हरी’ भजन हेमलता की कर्णप्रिय आवाज और रवीन्द्र जैन के सुमधुर संगीत से सजकर बहुत लोकप्रिय हुआ।
देखा जाए तो यह स्वाभाविक है कि घर-परिवार से जुड़ी भावनाएं गँवई व्यक्ति को पूरी तरह से व्यावसायिक नहीं बनने देतीं। मोतीजी को भी फिल्मी तड़क-भड़क और चाल-चलन रास नहीं आया और अन्ततः 1950 में आप बम्बई से देवरिया लौट आये। 1952 से श्रीकृष्ण इंटर कालेज, बरहज, देवरिया में अध्यापन किया। इतिहास, अंग्रेजी और तर्कशास्त्र के प्रवक्ता रहे। वर्ष 1978 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ‘आदर्श अध्यापक पुरस्कार’ से सम्मानित किये गए।
मोती बीए की अनूठी रचना शीलता की ओर नजर डालें तो खेतों में कांसे की पायल छनकाती हुई, श्यामवर्णी मजदूरिनों के सहगान की लय को कविता के संगीत में बांधने के लिए मोती बीए ने भोजपुरी को काव्य-भाषा के रूप में स्वीकार किया, यथा-
“कबले रही अनहरिया घेरेले कबले सपना रोई।
कबले सूतल रही कमलिनी भोर न ताले होई।।”
यही नहीं, मोती जी ने गांव की आत्मा को पहचाना है। उसके कोने-अतरें में छिपे हुए सौंदर्य को अपनी रचना प्रक्रिया से जोड़कर देखने का प्रयास किया है। देखा जाए तो रीति-रिवाजों, स्थितियों, अभाव एवं प्रकृति के मोहक चित्रों का सूक्ष्म अंकन महुआबारी में, खेतवा में हरवा, कटिया के सुतार, आव-आव बैला, भंदईं दवात बा, निझरि गइले अमवां आदि कविताओं में मिलता है। उनकी महुआबारी कविता हमारे जीवन का सार्थक रूपक है। इसके बारे में कहा जा सकता है कि भोजपुरी काव्य के लिए उनकी देन स्तुत्य है। गांव की धरती का महावरी रंग, अजवायनी महक और सोंधी मिट्टी की निर्दोष खुशबू उनकी कविता की ऐसी विशेषताएं हैं जो इस क्षेत्र में उनके केंद्रीय व्यक्तित्व का निर्माण कर देती हैं।
देखा जाए तो छायावादोत्तर गीतकारों में मोती बीए अकेले कवि हैं जिन्होंने हलचलों से दूर रहकर अपनी रचनाओं में छायावाद की नयी व्याख्या दी है। उनके अनुसार छाया वास्तविकता का प्रमाण है। यह अधिकता का निवारण करती है। मोती बीए के एक कविता संग्रह “सेमर के फूल” में भोजपुरी क्षेत्र के अदिमी, चउआ-चांगर, खेत खरिहान, घर-दुवार और रहन-रियासत सभी का वर्णन इतना सटीक हुआ है जैसे कैमरा से फोटो खींच रहे हों। उनकी विशेषता यह भी है कि उनकी सभी कविताओं का जन्म भोजपुरी धरती से हुआ है और उन्हीं में उस जिंदगी के वर्णन के संग संग यह भी बताया गया है कि अपना दुख-दलिद्दर भगाने के खातिर हमें क्या करना होगा जैसे “मृग कस्तूरी” कविता में कवि कहता है— “अपनी चिजुइया के जेही नाहीं पूछी। दुनिया में ओकरा के केहू नाहीं पूछी।।”
देखा जाए तो भोजपुरी इलाका की जिंदगी पर मोती बीए को पूरा गुमान है—
“दालि-रोटी आ माठा जो मीलल करी,
जबले गमछा में भूजा आ भेली रही।
तेल सरसों के बुकवा जो लागल करी, अपनी किस्मत पर झंखत चमेली रही।।”
साहित्यिक रचनाएँ—-
1.सेमर के फूल (भोजपुरी)
2.भोजपुरी सानेट
3.तुलसी रसायन (भोजपुरी)
4.भोजपुरी मुक्तक
5.मोती के मुक्तक
6.रश्के गुहर (उर्दू शायरी)
7.दर्दे गुहर (उर्दू शायरी)
8.तिनका-तिनका शबनम-शबनम (उर्दू शायरी)
9.इतिहास का दर्द (निबंध संग्रह)
10.मेघदूत (भोजपुरी काव्यानुवाद)
11.Love and Beauty
12.Beauty in Veil
13.लतिका
14.बादलिका
15.समिधा
16.प्रतिबिम्बिनी
17.अथेति
18.माझी की पुकार (काव्यानुवाद)
19.प्यार की रूपसी (काव्यानुवाद)
फिल्मी गीत —-
1.कैसे कहूँ
2.सुभद्रा
3.सिन्दूर
4.भक्त ध्रुव
5.साजन
6.नदिया के पार
7.सुरेखा हरण
8.किसी की याद
9.काफ़िला
10.अमर आशा
11.इन्द्रासन
12.राम विवाह
13.गजब भइले रामा
14.चम्पा चमेली
15.ठकुराइन
16.राजपूत
* अपने गीतों के लिए सदा याद किए जाएंगे मोती बीए।
* भोजपुरी परिवेश से सम्बद्ध मोती बीए को नहीं मिला यथेष्ठ सम्मान।
* मोती बीए ने शेक्सपियर के 109 सानेट्स का हिंदी पद्यानुवाद किया है।
* लाहौर और मुम्बई में रहकर कई हिंदी और भोजपुरी फिल्मों में गीत लिखे।
* हिंदी फिल्मों को भोजपुरी गीतों से परिचित कराने का श्रेय यह भी मोती बीए को ही जाता है।
* महादेवी वर्मा की काव्य रचनाओं को देखकर मोती जी की काव्य प्रतिभा का प्रस्फुटन हुआ।
# हेमन्त शुक्ल वरिष्ठ पत्रकार