निठल्ले कनपुरिया की चिट्ठी- आदरणीय मोदी जी, आपने भाषण में कनपुरिया जुमलों का इस्तेमाल करके हम कनपुरियों से डायरेक्ट कनेक्ट तो हो गए, पर इन जुमलों और हम कनपुरियों को बिसार न देना। बस यही इल्तिजा है। राबिता बनाये रखियेगा। जवाहरलाल नेहरू (नाराज न होइएगा जरूरत पड़ी तो नाम लिखना पड़ा), इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हाराव, एचडी देवगौड़ा, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह तक का कामपुर से बहुत गहरा राबिता (उर्दू शब्द राब्ता जिसका अर्थ रिश्ता या संबन्ध है) रहा है। कानपुर में कुछ लोग तो नेहरू को ‘ए जवाहर’ बुलाते रहे हैं। कानपुर में ही महात्मा गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पदभार सरोजनी नायडू को 100 वर्ष पहले 1925 में सौंपा था। अटल जी का ‘झाड़े रहौ कलक्टरगंज’ का जुमला तो भला कौन नहीं जानता। राजीव गांधी ने कनपुर की मलिन बस्तियां पांव-पांव नाप ली थी। यह बात दीगर कि तब वह कांग्रेस के महासचिव थे।
तत्कालीन सीएम श्रीपति मिश्र पीछे-पीछे चलते हुए हांफ रहे थे। वीपी सिंह की बेलौस बातचीत के अंदाज़ का लुत्फ भी हम कनपुरियों ने उठाया है। कनपुरिया जुमले इनके शब्दकोश में हमेशा हिफाजत पाते रहे हैं। आप ने जनसभा में जब बोला कि दुश्मन चाहे जहां रहे ‘हउंक’ देंगे। यह बोलने से पहले आपने यह भी कहा कि कनपुरिया शब्दों में कहें तो….। कसम से हम कनपुरियों का दिल गार्डन गार्डन (बाग-बाग) हो गया है। क्या है कि हम लोग थोड़ा इमोशनल टाइप के प्राणी हैं। जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए। दरअसल हमें हमारी संस्कृति बहुत प्यारी है। जो भी हमसे जुड़ता है हम रिश्ते निभाने की किसी सीमा तक चले जाते हैं। लगता है कि कानपुर ने आपसे रिश्ता कायम कर लिया है। रिश्ता कायम करने के अपने-अपने अंदाज होते हैं।
अचानक ग़ालिब याद आ गए। “हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और” एक प्रसिद्ध शेर है जो मिर्ज़ा ग़ालिब के अलग और विशिष्ट शैली की ओर इशारा करता है। यह दर्शाता है कि दुनिया में बहुत से अच्छे शायर हैं, लेकिन ग़ालिब का अंदाज़-ए-बयाँ (शैली) अद्वितीय है। कुछ ऐसी शैली मोदी जी आपकी भी है। जहां जाते हैं वहां की नब्ज पहचान कर पकड़ लेते हैं और लोग आपके मुरीद होने लगते हैं। लोग बहुत भोले हैं। कामकाज का ऑडिट करना भूल जाते हैं। इसे हम पत्रकार सोशल ऑडिट कहते हैं। कानपुर आपका आना-जाना लगा रहेगा। दर्जनों छोटे-बड़े प्रोजेक्ट हैं जिन्हें आप के कर कमलों का सदैव इंतज़ार रहेगा। खांटी कनपुरिया होने के नाते हमें लगता है कि आप के शब्दकोश में कनपुरिया जुमलों का इजाफा कर दें।
हालांकि हम तो ठहरे बकलोल पार्टी फिर भी एक छोटी सी कोशिश करते हैं। क्या करें, कानपुर की चाल ही ऐसी है। ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ यह चाल यहां के विकास की है। यपी रोज आओ तो भी वह अपने स्पीड से ही चलेगा। गरियार बैल हो गया है ससुरा। अब ‘नमामि गंगे’ को देख लो। कनपुरियों ने मान लिया है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’ नहीं हनायेंगे (नहाएंगे) गंगा। मोदी जी साफ करा देंगे तब नहाएंगे। तो, फीडबैक तो आपके कनपुरियापन से बेइंतिहा मुहब्बत का मिल रहा है। लोग खुश लगते। अभी से ही लोगों ने उपाधिमूलक शब्द ‘गुरू’ से नवाजना शुरू कर दिया है। छोटा सा किस्सा याद आ गया। बेस्ट मेम्बर पार्लियामेंट नामक सम्मान की परंपरा पीएम पीवी नरसिम्हाराव ने शुरू की थी तो पहला सम्मान अटलजी को प्राप्त हुआ। वह डिजर्व करते थे। पीएम ने सम्बोधन में कह दिया, (अटलजी की तरफ इशारा करते हुए) आप तो हमारे गुरु हैं। अटलजी भला कहां चूकने वाले, बोले मैं तो गुरू हूँ आप तो गुरू घण्टाल हैं। सन्दर्भ था अल्पमत की सरकार पांच साल तक चलाने का। अटलजी में कनपुरियापन कूट-कूटकर भरा था। लगता है देर से ही सही पर ‘कल्चरल ट्रांसफॉर्मेशन’ का दौर जन्म ले चुका है। आपके मुखारबिंदु से ‘हउंकना’ शब्द संकेत है। यकीन मानिए गुजरात के नमक की कसम, आप में कनपुरियापन कहीं न कहीं है। यह कानपुर का भाग्य चमकने जैसा है। अब विकास तेजी से दौड़ेगा कानपुर में। न दौड़ा तो आप हउंक देना। हउंकने की महिमा अपरंपार है। कभी कभी तो सब जगह से हउंके जाने वाला निरीह आखिर में घरैतिन को हउंक देता है।
दुश्मन को ऑपरेशन सिंदूर की तरह हऊँका गया तो वह भारत की तरफ देखना ही बन्द कर देगा। कानपुर के पत्रकारों, साहित्यकारों ने तमाम देशज शब्द दिए हैं जिनमें से हउंकना भी एक है। कानपुर की शब्दावली किसी एटम बम से कम थोड़े ही है। कुछ शब्द इस प्रकार हैं-जैसे-लुर, लोलम, लोलर, लोलपिन, लौझड़, लौंडिहाय, लपूड़ी, लम्पट, लूमड़, धांसू, उजबक, तिरकोतीन, ढक्कन, पिलू, बकलोल, खैचूँ, पिलिकाट, पिलियन्तन, गबड़चौथ, पैदल, हौलट, झैँयमझां, फलालैन, चौघड़, चिरकुट, चुंघट, चोंच, रागिया, खड़ूस, चघड़, खबीस, झामा, झाम, खबेड़ि, सटहा, चिताड़गोड़ीगम्म, इगड़े रे हूं….इत्यादि इत्यादि। जरूरत पड़ने पर ये प्रयोग किये जा सकते हैं। धन्यवाद बाकी फिर कभी शेष
आपका निठल्ला महेश