तीन पीढ़ी के कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए हैं। जितिन को, हो सकता है भाजपा 2022 के चुनावी समीकरण को देखते हुए ब्राह्मण चेहरा मान कर कोई पद दे दे, लेकिन उन्हें वह सम्मान नहीं मिलेगा जो कांग्रेस में मिलता रहा है। गाँधी परिवार और राहुल के टीम के सदस्य माने जाने वाले जितिन प्रसाद का पूरे देश भर में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में सम्मान था और एक परसेप्शन था कि वह बहुत बड़े नेता और आने वाले दिनों में राहुल गाँधी के नेतृत्व में युवा टीम के रूप में सक्रिय भूमिका निभाएंगे।
इनके पिता स्वर्गीय जीतेन्द्र प्रसाद विद्वान एवं चाणक्य की बुद्धि रखने वाले पी० वी० नरसिंह राव के राजनीतिक सलाहकार रहे। जीतेन्द्र प्रसाद का पीएम के राजनीतिक सलाहकार होने के कारण पूरे देश में प्रभाव था और उन्होंने भारी संख्या में लोगों की मदद भी की। जीतेन्द्र प्रसाद को पूरे देश की सियासत, जाति-धर्म के आकड़ों के साथ रटी हुई थी। उनसे मेरे सम्बन्ध थे और लगातार संपर्क में भी रहा। उत्तर प्रदेश के कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष के रूप में जीतेन्द्र प्रसाद से मैं निरंतर मिलता था।
पत्रकार के रूप में मैं कांग्रेस पार्टी कवर करता था। बाबा साहब के नाम से जाने, जाने वाले जीतेन्द्र प्रसाद असाधारण प्रतिभा के धनी थे और उनकी सबसे बड़ी विशेषता लोगों की मदद करना तथा वर्चस्व की सियासत की गोटे बिछा कर रखना था। जीतेन्द्र प्रसाद की सोच थी कि राजनीति में जब भी अवसर मिले तो कार्यकर्ता और समर्थक आर्थिक रूप से संपन्न रहे, इसमें सहयोग ज़रूर करना चाहिए। मैं बहुत ऐसे लोगों को जनता हूँ जो जीतेन्द्र प्रसाद के सहयोग से आर्थिक रूप से आज भी संपन्न हैं।
सोनिया गाँधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के बाद भी जीतेन्द्र प्रसाद ने पार्टी नहीं छोड़ी और हमेशा कहते थे कि वह अंतिम सांस तक कांग्रेस में ही रहेंगे। सोनिया गाँधी के खिलाफ चुनाव लड़ना कांग्रेस के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना भी है। जीतेन्द्र प्रसाद जानते थे कि वह सोनिया के खिलाफ चुनाव हारेंगे लेकिन फिर भी उन्होंने चुनाव लड़ा और अपने जीवन के अंतिम क्षण तक कांग्रेस में बने रहे। उत्तराधिकारी के रूप में जितिन प्रसाद, मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार में अलग अलग विभागों के मंत्री के रूप में सत्ता का सुख भोगा और राहुल गाँधी के टीम के सदस्य बने रहे।
पिछले लोकसभा चुनाव से जितिन प्रसाद प्रियंका गाँधी के उत्तर प्रदेश प्रभारी बनने के बाद से असहज महसूस कर रहे थे। जिसके कारण बार बार पार्टी छोड़ने की कयास लगते रहे है। जो 9 जून 2021 को वास्तविकता में बदल गयी। कारण जो भी हो प्रियंका गाँधी द्वारा की जा रही उपेक्षा या लगातार चुनाव हारने से हुई निराशा लेकिन यह सत्य है कि उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कहा है।
जितिन प्रसाद 2014, 2019 में लोकसभा और 2017 में सपा गठबंधन में विधानसभा का चुनाव लड़े थे और तीनों चुनाव हार गए। तीनों हार में जातीय समीकरण प्रमुख कारण रहा। केंद्र में मंत्री रहने के बाद क्षेत्र में काफी विकास कार्य भी कराया था लेकिन इसके बाद भी जनता ने विकास को महत्व नहीं दिया। पार्टी में उपेक्षा और हार के बाद ब्राह्मण सियासत शुरू की और प्रदेश भर में ब्राह्मण सम्मेलन में भाग लिया। ब्राह्मण पीड़ित परिवारों की मदद भी की।
ब्राह्मण सियासत ही भाजपा में आने का एक माध्यम भी बन गयी। वर्तमान समय में प्रदेश में योगी सरकार के कार्यवाही से ब्राह्मणों में काफी नाराज़गी थी। योगी सरकार में लगातार ब्राह्मणों की उपेक्षा हुई, उनकी हत्याएं हुई और हर तरीके से उपेक्षित करने का प्रयास किया गया।
ब्राह्मणों की नाराज़गी भाजपा के चिंता की विषय थी इसलिए कांग्रेस के कद्दावर नेता और प्रदेश में ब्राह्मण में अच्छी पकड़ रखने वाले जितिन प्रसाद को भाजपा नेतृत्व में शामिल किया। जिन परस्थितियों में जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हुए हैं निश्चिच रूप से उन्हें ब्राह्मण चेहरे के रूप में 2022 में सामने लाया जायेगा और इसके लिए सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि उन्हें पद के साथ ही जिम्मेदारी भी दी जाएगी लेकिन भाजपा कुछ भी दे दे, कांग्रेस में रहते हुए जो सम्मान उन्हें मिला है और आज भी प्रियंका के उपेक्षा के बाद भी मिल रहा था वैसा सम्मान, पद और ज़िम्मेदारी मिलने के बाद भी जितिन को भाजपा में नहीं मिलेगा।
इसका उदाहरण मध्य प्रदेश के कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं जिन्होंने भाजपा में शामिल होकर मध्य प्रदेश कांग्रेस सरकार गिरा दी। उन्हें राज्य सभा मिल गयी लेकिन जो सम्मान कांग्रेस में था वह नहीं मिला है और न ही मिल पायेगा। यही स्थिति भाजपा में जितिन प्रसाद की रहेगी।
राजेन्द्र द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार