लखनऊ/नयी दिल्ली। विपक्षी दल इस समय ज्योतिषी हो गए हैं। उन्हें मालूम है कि एनडीए की सरकार कमजोर है और जल्द गिरने वाली है। और यह भी मालूम है कि उनके इंडी गठबंधन की सरकार कब बनने वाली है। और यदि ऐसा नहीं है तो शायद इंडी गठबंधन वाले भाजपा के साथ माइंड गेम खेलने की कोशिश में हैं। ताकि भाजपा कोई गलती करे और विपक्ष को एनडीए में सेंधमारी का मौका मिले। जिस प्रकार किसी झूठ को लगातार बोला जाए तो वह सच जैसा दिखने लगता है वैसी ही कोशिश इस समय विपक्ष कर रहा है। वैसे भी उनका झूठ का पुलिंदा एक बार आम चुनाव में चल गया है। ऐसे में उनको लगता है कि आगे भी जनता उनके इस फेक नैरेटिव में फंस जाएगी। उधर भाजपा पूरे मामले में एहतियात बरत रही है। उसने विपक्ष को जवाब देने का काम अपने गठबंधन साथियों को सौंप दिया है। जवाब देने में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड अधिक मुखर है। अब देखना यह है कि इंडी गठबंधन अपनी कोशिश में सफल होता है या एनडीए उनकी साजिश का कोई तोड़ खोज निकालता है।
एक कहावत है कि किसी झूठ को बार-बार प्रचारित करो तो वह सच की शक्ल ले लेता है। उसके आगे सच की रौनक भी फीकी पड़ जाती है। अब इंडी गठबंधन को ही लीजिए। उसे मालूम है कि भाजपा नीत एनडीए ने प्री पोल अलायन्स करके 18वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में 293 सीटें हासिल की हैं। जिनमें अकेले भाजपा के पास 241 सांसद हैं। ऐसे में जब विपक्ष ये कहता है कि एनडीए सरकार के पास बहुमत नहीं है, भाजपा नीत सरकार तो दो बैसाखियों पर खड़ी है और कभी भी गिर सकती है, हास्यास्पद लगता है। यहां बात हो रही है दो वैसाखियों चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी की जिनके 16 सांसद हैं और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड की जिसके 12 सांसद हैं। पूरे विपक्ष की निगाह इन्हीं दो दलों के 28 सांसदों पर लगी हैं। इन दोनों दलों की विश्वसनीयता पर सवाल उठा कर विपक्ष लगातार हमले पर हमले किए जा रहा है। टीवी डिबेट में चर्चा का विषय कुछ भी हो, इंडी गठबंधन के प्रवक्ता घूम-फिर कर सरकार के अल्पमत में होने की बात करना नहीं भूलते। हांलांकि वे भूल जाते हैं कि कांग्रेस ने इससे भी कम सीटें लेकर 10 साल तक गठबंधन की सरकार चलाई है। अगर तब दिक्कत नहीं हुई तो अब क्या होगी।
अब विपक्ष एक नया पेज ढूंढकर लाया है। उसका कहना है कि नरेंद्र मोदी ने कभी भी गठबंधन सरकार नहीं चलाई है। अटल बिहारी वाजपेई की बात अलग थी, वे विपक्ष में भी लोकप्रिय थे और सबको साथ लेकर चलते थे। जवाब में एनडीए का कहना है कि ये सही बात है कि नरेंद्र मोदी ने कभी गठबंधन की सरकार नहीं चलाई है। परंतु हर नया काम पहली बार ही किया जाता है। नरेंद्र मोदी ने पहले कभी देश भी नहीं चलाया लेकिन मौका मिला तो दो टर्म चलाया और तीसरे टर्म की शुरुआत हो गई है। भाजपा वाले सवाल करते हैं कि क्या प्रधानमंत्री बनने के पूर्व मोरारजी देसाई, विश्वनाथ प्रताप सिंह या मनमोहन सिंह को गठबंधन की सरकार चलाने का अनुभव था, लेकिन इन सबने ने गठबंधन की सरकार चलाई।
सरकार की स्थिरता पर सवाल उठाने वाले और 99 सीटों रुक गई कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का कहना है कि बहुत नाजुक है एनडीए सरकार, जरा भी गड़बड़ होगी तो गिर जाएगी। उनका मानना है कि बीजेपी की हालत इतनी खराब है कि पीएम नरेंद्र मोदी को भी बनारस से जान बचाकर भागना पड़ा है। अगर उन्होंने प्रियंका गांधी को मोदी के खिलाफ लड़ा दिया होता तो प्रियंका गांधी तीन लाख वोटों से जीत जातीं। यानी वह इतना तो मानते हैं कि प्रधानमंत्री को हराने की क्षमता सिर्फ प्रियंका गांधी में है।
फिर तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को पार्टी खामखां तीन बार से वाराणसी में हरवा रही हैं। पहली ही बार प्रधानमंत्री के खिलाफ उन्हें मैदान में उतार देना चाहिए था। लेकिन अजय राय हैं कि लगातार ठोंक रहे हैं। उनका कहना है कि यदि प्रधानमंत्री इस्तीफा देकर फिर बनारस से लड़ जाएं तो कम से कम डेढ़ लाख वोटों से हारेंगे। मैं ऐसा नहीं कर पाया तो राजनीति से संन्यास ले लूंगा। पर यहां सवाल यह है कि जो राहुल गांधी तो प्रियंका को अपनी जीती रायबरेली या अमेठी सीट खाली करके लड़ाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और उनको वायनाड भेज दिया, ऐसे राहुल गांधी की बातों का क्या मोल। फिर तो लगता है कि कांग्रेस और गठबंधन साथी लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने तक मामला गर्म रखना चाहते हैं ताकि शायद अंधे के हाथ बटेर लग जाए। इसलिए वे बार-बार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को भड़का रहे हैं कि दोनों में से कोई एक लोकसभा अध्यक्ष की दावेदारी करे और एनडीए गठबंधन को तोड़ने का मौका मिल जाए। इस चुनाव तक वे अपने सांसदों को इंटैक्ट रखने के लिए ही विपक्षी इस तरह के नैरेटिव बना रहे हैं। ताकि उनका कुनबा इधर-उधर न बिखरे। 26 जून को लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने तक इस अभियान के लगातार चलने की संभावना है। अन्यथा इतनी गणित तो सभी जानते हैं कि 293 की संख्या 234 से अधिक होती है।
इसी संदर्भ में खबर है कि विपक्ष के कुछ लोग एनडीए के संपर्क में बने हुए हैं। खबर है कि वे सदन में एनडीए का पक्ष ले सकते हैं। इसमें सबसे प्रमुख नाम आम आदमी पार्टी का है। इसके पक्ष में तर्क देने वाले कहते हैं कि हवा का रुख देखकर ही आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस से गठबंधन तोड़ दिया। ताकि आवश्यकता के अनुसार बिना दबाव के निर्णय लिया जा सके। इधर कांग्रेस भी दिल्ली में जल संकट को लेकर आम आदमी पार्टी पर हमलावर है। इस कारण संबंधों में तल्खी बढी है।
हालांकि जाहिरा तौर पर आम आदमी पार्टी के नेता अभी भी एनडीए की सिंचाई करने में नहीं चूक रहे। इसके अलावा अन्य भी कुछ दल हैं जो सत्तारूढ़ गठबंधन के संपर्क में बताए जाते हैं। चर्चाएं तो यहां तक हैं कि उद्धव की शिवसेना के भी कुछ सांसद पाला बदल सकते हैं। शिवसेना शिंदे के लोग लगातार इस तरह के दावे कर रहे हैं। पर अभी तक इसकी कोई पुष्टि नहीं हो पाई है। इधर सुना है कि कन्नौज और रायबरेली में पड़े मतों का आंकड़ा मिलने के बाद अखिलेश यादव कांग्रेस से दुखी हैं। चर्चा है कि अखिलेश कन्नौज से मात्र डेढ़ लाख वोटों से जीते हैं जबकि राहुल गांधी रायबरेली से तीन लाख वोटों से जीते हैं। ऐसे में सपाई कह रहे हैं कि कांग्रेसियों ने कन्नौज में अखिलेश यादव का साथ नहीं दिया लेकिन सपा के वोटरों ने राहुल गांधी को भरपूर समर्थन दिया। इस सदर्भ में अखिलेश यादव का ट्वीट मीडिया में बहुत वायरल है। लोग उसी में अखिलेश की नाराजगी तलाश रहे हैं। शेर इस प्रकार है-
बहुत गहरा है शिकवा ओ गिला। वो तो करीब आके भी न मिला।।
हालांकि दोनों ही पार्टियों के प्रवक्ता बड़ी सफाई से इस मामले पर पूछे सवाल टाल जाते हैं।
एनडीए में फूट की आशंकाओं पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का मानना है कि उसको बहुमत नहीं मिला है। ये गलती से बनी अल्पमत की सरकार है। कांग्रेस के यूपी अध्यक्ष अजय राय कहते हैं कि ये लंगड़ी सरकार है जो दो बैसाखियों पर खड़ी है। यह कभी भी गिर सकती है। शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत का मानना है कि एनडीए सरकार एक अस्थिर सरकार है। जो कभी भी गिर सकती है। उन्हीं की पार्टी के एक और प्रवक्ता आनंद दुबे का मानना है कि ये सरकार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार की कृपा पर चल रही है, कब तक चलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। इसके अलावा सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का मानना है कि जनता ने नरेंद्र मोदी और भाजपा को नकार दिया है। उन्हें सरकार चलाने का नैतिक अधिकार नहीं है।
कुल मिलाकर ऐसे ही बिना सिर-पैर के तर्कों के सहारे विपक्ष अपने गठबंधन के साथियों, अपनी पार्टी के जीते हुए सांसदों को सपने दिखा रहा है ताकि फूट न पड़े। जानकारों का मानना है कि ऐसा कोई तभी करता है जब उसे इस बात का डर होता है कि पार्टी में टूट हो सकती है। ये सीधे-सीधे अपना घर बचाए रखने की पेशबंदी है। इस बाबत बिहार की हम पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी कहते हैं कि विपक्ष को हार की टीस सता रही है। जब उनके पास कहने को कुछ नहीं है तो कुछ भी बोलकर शिगूफा छोड़ रहे हैं। विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता अभिषेक झा कहते हैं कि खड़गे जी का बयान अपनी पार्टी के लोगों को बचाकर रखने के लिए है। ताकि कोई भगदड़ न हो। और प्री पोल अलायंस की बहुमत की सरकार को अल्पमत की बताना, सरकार न बना पाने की उनकी हताशा है।
खैर, एनडीए सरकार के अल्पमत में होने का बयान आना लगातार जारी है। पर बेहतर तो ये होता कि वे सच्चाई स्वीकार करके एक सकारात्मक विपक्ष के रूप में काम करते। और जब कभी उनकी मंशा के मुताबिक एनडीए में कोई फूट पड़ती तो तब प्रयास करके सरकार बनाते। लेकिन कहते हैं राजनीति संभावनाओं का खेल और आवश्यकताओं का मेल है। इसमें कोई स्थाई मित्र या शत्रु नहीं होता है। चूंकि चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार पहले भी पाला बदल और बारगेनिंग की राजनीति कर चुके हैं इसलिए विपक्ष को उन्हीं से अधिक उम्मीद है। परन्तु ये दोनों भी जानते हैं कि उनका नेचुरल एलायंस भाजपा के साथ ही हो सकता है। वे जब भी भाजपा के साथ मिलकर लड़े हैं तो सफल हुए हैं। ऐसे में लगता नहीं कि दोनों नेता ऐसी कोई गलती करेंगे। परंतु सबको सपने देखने का हक है। और इसीलिए विपक्ष भी देख रहा है।
अब यह चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार पर निर्भर करता है कि विपक्ष के सपने पूरे होंगे या नहीं। हां एक बात तो तय है कि लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होने तक विपक्ष का राग नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू चलता ही रहेगा। ऐसा भी नहीं है कि एनडीए के इन दोनों दलों ने विपक्ष के दावे को खारिज करते हुए कोई सार्वजनिक बयान न दिया हो। दोनों ही दलों के सर्वोच्च नेता सार्वजनिक मंच पर और उनके प्रवक्ता टीवी डिबेट में बार-बार दोहरा चुके हैं कि वे एनडीए के साथ हैं और बने रहेंगे। हम विना शर्त समर्थन दे रहे हैं। जनता दल यूनाइटेड के सर्वोच्च नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो मोदी की तारीफ करते और एकजुटता दिखाते नहीं थक रहे हैं। वहीं तेलुगु देशम के चंद्रबाबू नायडू ने तो नरेंद्र मोदी को विश्व का सबसे बड़ा नेता बताया है और बार-बार कहा है कि हम बिना शर्त समर्थन दे रहे हैं।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक