स्वस्थ रहना है तो खानपान में करें ये बदलाव… भारत में 60 के दशक के पहले तक मोटे अनाज की खेती की परंपरा थी। कहा जाता है कि हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से मोटे अनाज का उत्पादन कर रहे हैं। भारतीय हिंदू परंपरा में यजुर्वेद में मोटे अनाज का जिक्र मिलता है। 50 साल पहले तक मध्य और दक्षिण भारत के साथ पहाड़ी इलाकों में मोटे अनाज की खूब पैदावार होती थी। एक अनुमान के मुताबिक देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में मोटे अनाज की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी। मोटे अनाज के तौर पर ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना जैसे अनाज शामिल हैं।
मोटा अनाज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं। धान और गेहूं की तुलना में मोटे अनाज के उत्पादन में पानी की खपत बहुत कम होती है। इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती। ज्वार, बाजरा और रागी की खेती में धान के मुकाबले 30 फीसदी कम पानी की जरूरत होती है। एक किलो धान के उत्पादन में करीब 4 हजार लीटर पानी की खपत होती जबकि मोटे अनाजों के उत्पादन नाममात्र के पानी की खपत होती है। मोटे अनाज खराब मिट्टी में भी उग जाते हैं, ये अनाज जल्दी खराब भी नहीं होते।
हज़ारों साल से भारत में मोटे अनाज उगाने और उन्हें खानपान में शामिल करने का चलन रहा है, लेकिन पिछले कुछ सालों से इनकी जगह बाज़ार के चटपटे खाद्य पदार्थों ने ले ली है। जिसका हर्ज़ाना हमें और हमारी सेहत को भुगतना पड़ रहा है। इन मोटे अनाजों में मुख्य तौर से बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी (मड़ुआ), सांवा, कोदो, कंगनी, कुटकी और जौ शामिल हैं, जो हर लिहाज़ से हमारी सेहत के लिए फ़ायदेमंद हैं। 1960 के दशक में हरित क्रांति के नाम पर हमने इनकी जगह गेहूं व चावल को दे दिया। लेकिन दुनिया अब इन्हीं मोटे अनाजों की तरफ़ एक बार फिर लौट रही है। सभी मोटे अनाजों में कैल्शियम, फ़ाइबर, विटामिन्स, आयरन और प्रोटीन की मात्रा होती है। जो हमारे भोजन को पौष्टिक बनाते है।
बाजरा: प्रोटीन से भरपूर बाजरा हमारी हड्डियों को मज़बूत बनाता है। फ़ाइबर की अधिकता के कारण यह पाचनक्रिया में सहायक होता है और वज़न कम करने में भी मदद मिलती है। इसमें मौजूद कैरोटीन हमारी आंखों के लिए फ़ायदेमंद होता है। इसमें ऐंटी-ऑक्सिडेंट्स की भी अच्छी मात्रा होती है, जो नींद लाने और पीरियड्स के दर्द को कम करने में मदद करते हैं। यह कैंसररोधी भी है व ख़राब कोलेस्टेरॉल के लेवल को रोकने में मदद करता है। अफ्रीका मूल के इस अनाज में अमीनो एसिड, कैल्शियम, ज़िंक, आयरन, मैग्नीशियम, फ़ॉस्फ़ोरस, पोटैशियम और विटामिन बी 6, सी, ई जैसे कई विटामिन और मिनरल्स की भरपूर मात्रा पाई जाती है। बाजरे में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट, कैरोटीन पाया जाता है। बाजरे की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि इसके सेवन से कैंसर वाले टॉक्सिन नहीं बनते हैं।
रागी: रागी (मड़ुआ) उच्च पोषण वाला मोटा अनाज है। जिसके उपज की शुरुआत भारत से ही मानी जाती है।रागी कैल्शियम से भरपूर है। रागी, डायबिटीज़ पीड़ितों के लिए भी फ़ायदेमंद होती है। इसमें मौजूद ऐंटी-ऑक्सिडेंट्स नींद की परेशानी और डिप्रेशन से निकलने में भी मदद करते हैं।
ज्वार: फ़ाइबर से भरपूर ज्वार दुनिया भर में उगाया जाने वाला पांचवां सबसे महत्वपूर्ण अनाज है। वज़न कम करने और कब्ज़ को दूर करके पाचनक्रिया को दुरुस्त रखने के लिए ज्वार बढ़िया ऑप्शन है। इसमें मौजूद कैल्शियम हड्डियों की मज़बूती देने का काम करता है, जबकि कॉपर और आयरन शरीर में रेड ब्लड सेल्स की संख्या बढ़ाने और ख़ून की कमी यानी अनीमिया को दूर करने में सहायक होते हैं। गर्भवती महिलाओं और डिलिवरी के बाद के दिनों के लिए इसका सेवन फ़ायदेमंद है। इसके अलावा इसमें पोटैशियम और फ़ॉस्फ़ोरस की भी अच्छी मात्रा होती है। ज्वार का उपयोग बेबी फूड बनाने में भी होता है।
मक्का: मक्के की रोटी और साबुत भुने मक्के यानी कॉर्न से लगभग सभी लोग वाक़िफ़ होंगे। विटामिन ए और फ़ॉलिक एसिड से भरपूर मक्का दिल के मरीजों के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद होता है। इसमें कई तरह के ऐंटी-ऑक्सिडेंट्स मौजूद होते हैं, जो कैंसर सेल्स से लड़कर हमें सुरक्षित रखने में मदद करते है यह ख़राब कोलेस्टेरॉल को कंट्रोल करता है। गर्भवती महिलाओं को अपनी डायट में मक्का शामिल करना चाहिए। यह ख़ून की कमी को दूर करके गर्भ में पल रहे बच्चे को सेहतमंद रखने का काम करता है, इसमें कार्बोहाइड्रेट व कैलोरी अधिक मात्रा में पाई जाती है।
जौ: पोषक तत्वों से भरपूर जौ (बार्ले) हमारी शरीर को कई बीमारियों से बचाने का काम करता है। जौ में गेहूं की अपेक्षा अधिक प्रोटीन व फ़ाइबर मौजूद होता है, जिससे वज़न कम करने, डायबिटीज़ कंट्रोल करने, ब्लडप्रेशर को संतुलित करने में मदद मिलती है। जौ में आठ तरह के अमीनो एसिड पाए जाते हैं, जो शरीर में इंसुलिन के निर्माण में मदद करते हैं। दिल संबंधित बीमारियों के लिए भी जौ का सेवन फ़ायदेमंद होता है। यह हमारे शरीर में ऐंटी-ऑक्सिडेंट्स की मात्रा बढ़ाने में मदद करता है। इसमें ख़राब कोलेस्टेरॉल को कम करने वाले गुण भी पाए जाते हैं। इसके अलावा जौ में आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम, कैल्शियम जैसे कई महत्वपूर्ण मिनरल्स मौजूद होते हैं, जो हमारी सेहत के लिए ज़रूरी पोषकतत्व होते हैं।
मोटे अनाजों को लघोन्न फसलें भी कहा जाता है। यहाँ पर इस शब्द का प्रथम अर्द्ध भाग अर्थात् ’लघु’ का अभिप्राय इन फसलों के दाने के आकार का और शेष अंतिम भाग ’अन्न’ इन्हें खाद्यान्नों की श्रेणी में रखने का द्योतक है। इन सभी फसलों के दानों का आकार इनके पौधों के आकार की अपेक्षा छोटा होता है। अतः इन्हें छोटे या मोटे या लघु धान्य के नाम से जाना जाता है।
परम्पगत खाद्य श्रृंखला में लघुपयोगी खाद्यान्न (मोटे अनाज) जैसे सल्यारा, बाजरा ,कोदो, और रागी आदि का विशेष महत्व होता था और इसी बजह से पहले हमारी खाद्य सुरक्षा के साथ साथ पोषण सुरक्षा का भी पुख्ता इंतजाम थे। अब इन फ़सलों व खाद्यान्न का हमारे भोजन में स्थान लगभग विलुप्त हो चुका है। यह खाद्यान्न उच्चकोटी के पोषकतत्व के भण्डार होने के कारण कुपोषण व खाद्यान्न सुरक्षा के लिए उपयुक्त है। यह फ़सलें बदलते जलवायु परिवेश, फ़सल सुरक्षा, मृदा स्वास्थ्य, खाद्यान्न व पोषण सुरक्षा के साथ-साथ हमारी परम्परागत कृषि के भविष्य को सुरक्षित रख सकती है।
सीमामोहन