लखनऊ/नयी दिल्ली। कहते हैं कि राजनीति की बिसात हमेशा उम्मीदों पर बिछाई जाती है। राजनीति में कोई स्थाई शत्रु या मित्र नहीं होता। वैसे भी राजनीति संभावनाओं का खेल और आवश्यकताओं का मेल है। हमारे देश का मौजूदा विपक्ष भी इसी उम्मीद पर कायम है। उसे लगता है कि एनडीए में जल्द फूट पड़ेगी और उसे सरकार बनाने का मौका मिलेगा। परंतु फिलहाल इसके आसार कहीं से दिख नहीं रहे। ऐसे में विपक्ष के लिए फिलहाल यही कहा जा सकता है कि दिल बहलाने के लिए ग़ालिब ख्याल अच्छा है। प्रोटेम स्पीकर और पूर्णकालिक स्पीकर के मामले में विपक्ष लाचार होकर देखता रह गया और एनडीए ने अपने मन वाली कर ली। अभी तक विपक्ष के किसी भी मुहिम का सरकार पर कोई असर पड़ता दिख नहीं रहा। नीट जैसे पब्लिक से जुड़े मुद्दे पर भी सत्ता पक्ष दबाव में नहीं आ रहा है। और वह सीना तानकर सामने खड़ा है।
18वीं लोकसभा का परिणाम आने के बाद थोड़ा मजबूत हो गया विपक्ष सत्तापक्ष को दबाव में लेने की लगातार कोशिश में है। किंतु सत्ता पक्ष पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है। सत्ता पक्ष ने सरकार बनाने के बाद सबसे पहले अपनी पसंद का प्रोटेम स्पीकर बना लिया। इस मामले में कांग्रेस के उस दावे को खारिज कर दिया गया जिसमें उसने अपने आठ बार जीते सांसद के सुरेश को प्रोटेम स्पीकर बनाने का दबाव बनाया था। राष्ट्रपति ने एनडीए के भाजपा सांसद भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त कर शपथ दिला दी। वे लगातार सात बार चुनाव जीत कर आए हैं जबकि के सुरेश की आठ बार की जीत में गैप है। इसके बाद विपक्ष ने लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव में भी दबाव बनाने की कोशिश की। उसने कहा कि विपक्ष का उपसभापति बने तभी हम सर्वसम्मति के लिए सभापति पद पर एनडीए के प्रत्याशी का समर्थन करेंगे।
किंतु सत्ता पक्ष नहीं झुका, उसने कहा कि हम शर्तों पर कोई बात नहीं करेंगे। नतीजा यह हुआ कि दोनों तरफ से प्रत्याशी खड़े कर दिए गए। सत्ता पक्ष ने निवर्तमान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और विपक्ष ने प्रोटेम स्पीकर नहीं बन पाए कांग्रेस के सुरेश को मैदान में उतारा। बताते हैं कि इस विषय पर कांग्रेस और टीएमसी में ही मतैक्य नहीं बन पाया था था क्योंकि इस मुद्दे पर कांग्रेस ने टीएमसी से कोई बात नहीं की थी। इसलिए टीएमसी नाराज थी। इस तरह की खबरें मीडिया में भी आईं। परंतु बाद में यह भी खबर आई दोनों पार्टियों में इस विषय पर समझौता हो गया था। लेकिन दूसरे दिन सदन में जब चुनाव का वक्त आया तो विपक्ष ने मत विभाजन की मांग ही नहीं की और ओम बिरला ध्वनि मत से अध्यक्ष चुने गए। यानी विपक्ष प्रोटेम स्पीकर के बाद स्थाई स्पीकर के चुनाव में भी सत्ता पक्ष से मार खा गया। वह मत विभाजन की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया।
सूत्र बताते हैं कि विपक्ष ने मत विभाजन पर दबाव इसलिए नहीं बनाया ताकि यह भ्रम बना रहे कि विपक्ष एकजुट है। सूत्रों का कहना था कि इस बात की आशंका थी कि जब अध्यक्ष पद के लिए मतदान होता तो विपक्ष का 234 का आंकड़ा और भी कम हो जाता। क्योंकि सूत्र बताते हैं कि एनडीए ने कुछ दलों को अपने पक्ष में मतदान करने के लिए तैयार कर लिया था। ऐसे में इस मामले में किरकिरी से बचने के लिए ही विपक्ष ने मत विभाजन पर जोर नहीं दिया।
संसद के दोनों सदनों में चर्चा के दौरान भी विपक्ष ने सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की। उसने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के पहले नीट मामले पर चर्चा कराने की कोशिश की। किंतु दोनों ही सदनों के सभापतियों ने इसे नियम और परंपरा के खिलाफ बताकर उनकी मांग खारिज कर दी। हालांकि इस विषय पर दोनों सदनों में काफी हंगामा हुआ। लोकसभा तो हंगामे के कारण शुक्रवार को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। सोमवार को जब सदन की शुरुआत हुई तब भी हंगामा लगातार जारी रहा किंतु शोरगुल के बीच ही राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद पर चर्चा चलती रही।
इसके अलावा लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से ही विपक्ष ने सदन में बहुमत का अलग गणित पेश करते हुए यह कहना शुरू किया कि देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को नकार दिया है। जनता ने उनके विचारों को खारिज कर दिया है। नरेंद्र मोदी की पार्टी बीजेपी को अपने आप में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है इसलिए ये उनकी नैतिक हार है। जनता ने मोदी को दिल से निकाल दिया है। वे देश को समझ ही नहीं पा रहे हैं और अभी भी अहंकार में डूबे हुए हैं। कांग्रेस पार्टी की शीर्ष नेता और राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी ने एक अखबार में लिखे लेख में कहा कि जनता ने बीजेपी की विभाजनकारी नीति को खारिज कर दिया है। परंतु अभी भी मोदी के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। सबको साथ लेकर चलने का उनका नारा खोखला है। वे अभी भी अहंकार में डूबे हुए हैं।
उधर राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता मनोज झा का भी कहना है कि यह मोदी की हठधर्मिता है। वे जनादेश को ठीक से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। शिवसेना यूबीटी के बड़े नेता और प्रवक्ता संजय राउत का कहना है कि मोदी जी ने दो लड़कों की जोड़ी को बहुत व्यंग्य बाण बोले थे। आज उन्हीं दो लड़कों ने यूपी में उनको जोर का झटका दिया है। उधर भाजपा लगातार 99 के मुकाबले 240 सीटों की जीत का दावा कर रही है। इस बाबत भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा का कहना है कि पता नहीं कांग्रेस के लोगों ने कौन सी गणित पढ़ीं है। उन्हें 240 सांसदों के मुकाबले 99 सांसदों की संख्या अधिक मजबूत और बड़ी लग रही है। उनका आरोप है कि यह सोनिया की तानाशाही मानसिकता का रूप है।
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता नलिन कोहली का इस बाबत कहना है कि जनता ने भाजपा को नहीं कांग्रेस की तीसरी बार पराजित किया है।
हाल ही में कांग्रेस छोड़कर शिवसेना शिंदे में शामिल हुए मुरली देवड़ा का कहना है कि पिछले 10 सालों में कई देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कई बार बदल गए लेकिन मोदी लगातार भारत में सत्ता के शीर्ष पर बने हुए हैं। और मोदी अगले 5 साल तक रहने वाले हैं। विपक्ष ने नीतीश कुमार को लेकर भी भाजपा को डराने की कोशिश की। और कहा कि नीतीश का कोई भरोसा नहीं है वह कभी पलटी मार सकते हैं और इंडी गठबंधन से आकर मिलेंगे। किंतु ऐसी किसी भी संभावना को खारिज करते हुए जनता दल यूनाइटेड के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के सर्वमान्य नेता हैं। इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार राज्य के दोनों उपमुख्यमंत्री भी कह चुके हैं कि हम अगला चुनाव नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में लड़ेंगे। इसलिए अब इस पर चर्चा का कोई मतलब नहीं है। इस विषय पर सारी चर्चाओं को विराम देते हुए मुझे बताना है कि अगले साल का विधानसभा चुनाव एनडीए की ओर से नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लडा जाएगा।
ऐसे में लगता है कि एनडीए और नरेंद्र मोदी ने चुनाव के बाद लगातार नैतिक जीत दर्ज करके विपक्ष को अपनी ताकत का एहसास करा दिया है। पर विपक्ष अपने यहां फूट होने से रोके रखने के लिए लगातार यह नैरेटिव गढ़ने में लगा हुआ है कि एनडीए में फूट है और मोदी सरकार कभी भी गिर सकती है। इधर खबर मिली है कि विपक्ष ने अब एक नया गांव खेला है। वह समाजवादी पार्टी के अयोध्या से सांसद अवधेश प्रसाद पासी को लोकसभा उपाध्यक्ष बनाने की कोशिश में है। चर्चा है कि इस मुहिम को टीएमसी की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लीड कर रही हैं। सूत्रों का कहना है कि उन्होंने इस संदर्भ में भाजपा नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी वार्ता की है। चर्चा है कि विपक्ष इस बहाने राम और दलित दोनों को साधने की कोशिश में है। अवधेश प्रसाद चूंकि पासी जाति से आते हैं तो दलित फैक्टर और वे अयोध्या फैजाबाद के सांसद हैं तो राम फैक्टर को साधने की कोशिश है। विपक्ष अवधेश प्रसाद को उपाध्यक्ष बनवाकर ये मैसेज देने की कोशिश में है कि हमने सरकार को दबाव में लेकर अपना उपाध्यक्ष बनवा लिया। और चूंकि इस मूहिम को ममता बनर्जी लीड कर रही हैं इसलिए यह भी मैसेज देने की कोशिश है इंडी गठबंधन लगातार एकजुट बना हुआ है। और ममता बनर्जी इंडी गठबंधन का मजबूत हिस्सा हैं।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भाजपा और एनडीए को घेरने की कोशिश की। उन्होंने हिंदुओं को हिंसावादी कर दिया। इसके बाद सत्ता पक्ष से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बीच बीच में उठकर आपत्ति जताई। राहुल गांधी ने अग्निवीर और किसानों के मुद्दे पर भी कुछ गलत तथ्य रखकर सरकार को परेशान करने की कोशिश की थी। इसके जवाब में मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवाब देते हुए राहुल गांधी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। प्रधानमंत्री ने सदन को बताया की अग्निवीर के मुद्दे पर राहुल गांधी झूठ बोल रहे हैं कि अग्निवीर की शहादत के बाद कोई सहायता नहीं मिलती। प्रधानमंत्री ने बताया कि अग्नि वीर को शहादत के बाद उसके परिजनों को एक करोड़ से ज्यादा की धनराशि मुहैया कराई जाती है। प्रधानमंत्री ने अभी कहा कि राहुल गांधी किसानों के एमएसपी के मामले में झूठ बोल रहे हैं।। उन्होंने से अपनी बात साबित भी की। हिंदुओं को हिंसक बताने वाले बयान पर आपत्ति जताते हुए प्रधानमंत्री ने इशारे-इशारे में राहुल गांधी को नादान बच्चा तक कह डाला। उन्होंने यहां तक कह दिया कि इसे छोटे बच्चे की गलती मानकर चुप नहीं रह जा सकता। इस मामले में कठोर संदेश देने की जरूरत है। जब प्रधानमंत्री राहुल गांधी को लपेटे में ले रहे थे तब वे अपने सीट पर बहुत गंभीर मुद्रा में बैठे हुए थे।
ऐसे में कहा जा सकता है कि एनडीए सरकार का अब तक का परफॉर्मेंस यही बताता है वह किसी मुद्दे पर दबाव में आने के मूड में नहीं है। और विपक्ष चाहे कितनी भी प्रयास करे परेशान करने का, उसके पास उसके हर वार का जवाब है। उधर विपक्ष इस सच्चाई को जानने के बावजूद कि उसके पास अभी भी सरकार को परास्त करने का पर्याप्त संख्या बल नहीं है, हार मानने को तैयार नहीं है। उसे लगता है कि थोड़ी अधिक सीटें पाकर उसने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है और उसे सरकार को बेवजह परेशान करने का अधिकार मिल गया है। यानी कम सीटें पाकर सत्ता पक्ष भी खुश है और थोड़ी बढी सीटें पाकर विपक्ष भी गौरवान्वित महसूस कर रहा है। ऐसे में दोनों के लिए यही कह सकते हैं कि दिल बहलाने के लिए ग़ालिब ख्याल अच्छा है।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक