देश में पानी का अकाल बढ़ रहा है लेकिन देश के नेता खुश है क्योकि पानी जब सूखेगा तब लोगों को घंटो मछली मारने के लिए कांटा फसा कर बैठना नहीं पड़ेगा। जब कही पानी नहीं रहेगा तो मछली अपने आप दिखाई देने लगेंगी और तो और उनको मारने की भी कोई समस्या नहीं।
आखिर मछली जल की रानी है… जीवन उसका पानी है… हाथ लगाओगे तो डर जाएगी और बाहर निकलोगे तो मर जाएगी। अब पानी मिले ना मिले मछली तो लोगो को मुफ्त में मिल जाएगी ना और मछली जब लोगो के पास होगी तो भुखमरी से छुटकारा मिल जायेगा। अब इसमें क्या समझना !!! मछली को लोग सुखा लेंगे (वैसे पानी के बिना खुद ही सूखे जा रहे है लोग) और फिर उसका पाउडर बना कर रख लेंगे और खाने के लिए कोई झंझट ही नहीं।
ये देश वाले भी कभी भी कुछ अच्छा देखना ही नहीं चाहते। बस पानी पानी चिल्ला रहे है.. मछली मिल रही है.. वो समझ ही नहीं पा रहे है और जब पानी नहीं रहेगा तभी तो कुछ दूसरा उपाय सोच पाएंगे। आखिर आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है (दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मन सैनिकों अपनी प्यास बुझाने के लिए अपने मूत्र को पीना शुरू कर दिया था इशारों को अगर समझो …..) और जब देश में पानी नहीं होगा तभी तो समुन्द्र का पानी मीठा किया जा सकेगा।
अब आप मर रहे है तो मरिये रहीम दास न जाने का कह गए …रहिमन पानी रखिये बिन पानी सब सून ….. पानी गए ना उबरे मोती मानस चून और वैसे भी कहा जा रहा है कि तीसरा वर्ल्ड वॉर पानी के लिए होगा और भारत से अच्छी शुरूआत इसके लिए कौन कर सकता है। आखिर हम जगत गुरु ही नहीं हम तो वर्ल्ड चैम्पियन भी है तो इस मामले में क्यों पीछे रहे। अब बिना पानी के मछली की तरह तड़फ रहे है तो कम से कम ये तो जान गए की बेचारी मछली कितना तड़फती है। ते का जाने पीर पराई जेक पैर न पड़े बिवाई (चलिए ये मुहावरा भी आपने आखिर सिद्ध कर ही लिया) वैसे आप लोग तरबूज की तरह आदमी का प्रयोग पानी से बचने के लिए ना कर दीजिएगा (मानव के शरीर में 70 % पानी होता है) क्योकि आपका क्या भरोसा.. आपको पढ़ाया गया कि परोपकार के लिए नदी बहती है और वृक्ष फल देते है।
और आपका शरीर भी परोपकार के लिए ही है। प्लीज पानी के लिए एक दूसरे को मारिएगा नहीं। वैसे अभी तक आप लोग पानी का कोई विकल्प नहीं सोच पाए। जब हमारा देश तीन तरफ से समुन्द्र से घिरा है और क्या मजाल मानसून की जो हिमालय के आगे दम ना तोड़ दे तो आप क्यों प्यासे है !!! कही आपने पेड़ तो ज्यादा नहीं काट डाले.. पर क्यों ना कटे.. अब इस दुनिया में आये तो अपने पीछे एक मनुष्य को छोड़ जाने की मनुश्य जो मान कर आये थे और लीजिए अब पेड़ों के जंगल से ज्यादा घरों के जगल हो गए तो पानी कहा से आएगा !!! नहीं नहीं आ सकता है जब पेड़ नहीं होंगे तो आपको पसीना आएगा और पसीना भी तो पानी ही है।
वो बात अलग है कि थोड़ा नमकीन होगा कोई बात नहीं आप जनसँख्या बढ़ाते रहिये क्योकि जब पपीहा स्वाति नक्षत्र की बूँद पीकर पूरा साल जिन्दा रह सकती है तो आप तो इस पृथ्वी के सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। आप तो सैकड़ो साल बिना कुछ खाये पिए तपस्या कर सकते है तो बिना पानी पिए क्यों नहीं रह सकते (एक व्यक्ति 7 दिन बिना पानी के जिन्दा रह सकता है) ये देखिये मेरे दिमाग में एक आईडिया आ गया। आखिर भारत में पैदा होने का यही फायदा है। अब आपको करना ये है कि आप अपने घर की मिटटी में छोटे छोटे गड्ढे खोदिए करीब 2 इंच के और उसमे छोटे छोटे दोने या कटोरी रख दीजिये रात में करीब 100-200 कटोरी या दोना रखिये।
रात भर में ओस की बूंदों से वो कटोरी भर जाएगी। अब आप सारी कटोरी का पानी एक बाल्टी में इकट्ठा कर ले लीजिए। बिलकुल हीरे जैसा पानी आपके घर में हाजिर है। जिनके घर जमीन न बची हो (घर बनने की होड़ में किसी घर में अब कच्ची मिटटी का हिस्सा मिलता कहा है) तो वो छत का प्रयोग कर सकते है (फ़्लैट वाले माफ़ करें) जी आपको ये मजाक ही लगेगा क्योकि हमने द्रोपदी के खुलती साड़ी को भी मजाक समझा.. तो मेरी बात का मजाक लगना ठीक ही है पर ये मजाक अफ्रीका के मसयि जनजाति के लोग रोज रात में करते है और रोज सुबह वो बड़े पड़े पत्तो में इकठ्ठा ओस की बूंदों को एकत्र करके अपने दैनिक काम करते है।
पर आप ठहरे शहरी भला.. आप जंगलों के लोगो और वो भी जनजाति के लोगो की बात क्यों मानने लगे। आप कोई कम है क्या सर कटा सकते है लेकिन सर झुका सकते नहीं तो क्यों ऐसे पानी एकत्र करे। जो भगवान ने लिखा होगा वो होकर रहेगा अगर प्यासे मरना लिखा है तो कोई माई का लाल पानी पिला ही नहीं सकता और ये भगवान का आशीर्वाद नहीं तो क्या है कि बिना कोई मेहनत किये मछली मिल रही है !!!
जिसने पैदा किया वही हमें पालेगा.. जब उसने मछली दी है तो कल पानी भी देगा पर हम ये ओस की बूँद तो नहीं इकट्ठा करेंगे !!! जी देखिये लोग तालाब नदी पोखर की तरफ दौड़ रहे है.. आप भी दौड़ो कही मछली छूट ना जाये जब रानी हाथ में आ जाएगी तो पानी तो आ ही जायेगा (वो बात अलग है आपके मुंह में) आइये इस देश में पानी को समझे.. कीमती आभूषण समझ कर अभी से उसको सुरक्षित करने का अभियान चलाये.. यही इस व्यंग्य का उद्देश्य है …।
डॉ आलोक चांटिया