अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून पर विशेष
योग विद्या के आसन वस्तुतः हमारी मानसिक आरोग्यता, शारीरिक निरोगता के साथ-साथ दीर्घ जीवन की आधारशिला है। इन्हें व्यायाम नहीं समझना चाहिए। योगिक आसनो के संदर्भ में जन उपयोगी जानकारी श्रीनाथ चिकित्सालय भगवत दास घाट कानपुर के मुख्य चिकित्सक डॉ रविंद्र पोरवाल ने दी है। डॉ रविंद्र पोरवाल योग और आयुर्वेद के देश के वरिष्ठ एवम् जाने-माने विद्वान है और केंद्रीय आयुष मंत्रालय भारत सरकार के बोर्ड मेंबर हैं।
योग के आधार ग्रंथ हठयोग प्रदीपिका में आसनों को प्रथम स्थान दिया है जबकि महान योग ऋषि घेरंड जी ने आसनों को द्वितीय स्थान और भगवान पतंजलि ने पतंजलि योग दर्शन में योगासन को तृतीय सोपान माना है। पतंजलि योग दर्शन में आसन की परिभाषा स्थिर सुखमआसनम बताई गई है। जिसका सामान्य रूप से अर्थ है शरीर की एक स्थिति विशेष में सुख पूर्वक, स्थिरता पूर्वक रुकना ही आसन है।
आसन दीर्घायु और चिरयौवन प्रदाता है : आसनों की कुल संख्या 84 लाख बताई गई है। इनमें 84 आसन प्रमुख माने जाते हैं। इन 84 प्रमुख आसनों में भी 32 आसनों को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह आसन आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही साथ इन 32 आसनों का अभ्यास साधक को शारीरिक रूप से भी निरोगी बनाता है। शरीर के बीमार, अशक्त और कमजोर अंगो को ताकत देखकर सबल व रोगमुक्त् बनाता है। शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूत करके दीर्घायु और चिर यौवन की प्राप्ति होती है। साथ ही साथ आसनों का जबरदस्त प्रभाव मन व मस्तिष्क पर भी पड़ता है और साधक को कोई मानसिक विकार और नींद संबंधी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता।
कितने और कौन सा आसन चुने : कितने और कौन-कौन से आसन करने चाहिए, यह बड़ा प्रश्न है? सामान्य रूप से प्रचलित आसनों का अभ्यास घर परिवार में बालक, युवाओं, स्त्री-पुरुष और वृद्ध सभी लोग करते हैं यह उचित नहीं है। भौतिक जीवन में आसन का चयन गुरु के मार्गदर्शन में होना चाहिए और साधक की उम्र, उसकी बीमारियां, समस्याएं उसका आहार-विहार और दिनचर्या सब चीजों को दृष्टिगत रखते हुए गुरु कुछ आसनों का अभ्यास करने का सलाह देते हैं लेकिन अति उत्साह में योग के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास रखते हुए अनेक साधन कई-कई घंटों तक अनेकों अनेक आसनों का अभ्यास करते हैं। यह सर्वथा अनुचित है क्योंकि यदि हम अपनी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए और स्वस्थ जीवन जीने के लिए आसनों का अभ्यास कर रहे हैं तो तीन से चार योगिक आसन 10 से 15 मिनट प्रतिदिन अभ्यास करना उचित है।
बच्चों स्त्रियों युवाओं और वृद्धों को उनकी आयु और उनकी शारीरिक और मानसिक आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए अलग-अलग आसनों का चयन किया जाना चाहिए। आसनों का सही चयन और शास्त्रोक्त विधि से उसका सही अभ्यास ही अभ्यासी को पूरा पूरा लाभ देता है। अन्यथा आसनों के नाम पर केवल साधक व्यायाम करता है और सामान्य व्यायाम के लाभ ही उसे मिलते हैं।
आहार में बदलाव भी जरूरी है : आसनों के अभ्यासी को अपनी दिनचर्या और आहार में भी सुधार करना चाहिए। राजसिक आहार पूड़ी पराठे अधिक तला हुआ और गरिष्ठ भोजन से परहेज करते हुए, अधिक मात्रा में सूखे मेवे और मिठाइयों के सेवन से भी बचना चाहिए। वही तामसिक आहार जैसे रखा हुआ बासा भोजन का सेवन, कई दिन पुराना दाल, सब्जी, पराठा आदि पैक्ड आहार को खाना, चाट, चटनी, चाय, कॉफी शीतल पेय, जंक फूड, फास्ट फूड, डिब्बाबंद पैकिंग में महीनों पुराना तिथि में पैक किया हुआ और कीटनाशकों से युक्त दूध, खाद्य पदार्थ, फलों का रस, छाछ या अन्य इस प्रकार के आहार का यथासंभव सेवन ना करें। सात्विक आहार साधक के लिए सर्वश्रेष्ठ है। साधक को ताजे फल, मौसम के ताजे फलों का जूस, ताजा दूध छाछ दही, मिठाइयों में गुड़ खजूर आदि, भरपूर मात्रा में हरी सब्जियां सलाद और दाल का सेवन करना चाहिए।
खाते समय यह भी ध्यान रखें : आहार नियत समय पर पूरी स्वच्छता के साथ हाथ पैर धोकर सुखासन में बैठकर करना चाहिए। ईश्वर को स्मरण करते हुए खूब चबा चबाकर भोजन ले, भोजन के पूर्व भोजन के बीच में और भोजन के बाद जल का सेवन ना करें। दिन में बार-बार, थोड़ा-थोड़ा खाना या भूख से अधिक खाना खाना और संयोग विरुद्ध आहार का सेवन योग साधक के लिए अच्छा नहीं है।कभी भी गरम खाने के बाद शीतल पेय या जल या ठंडी प्रकृति का आहार लेना उचित नहीं है। फलों के साथ अथवा भोजन के तुरंत बाद दूध का सेवन योग साधक के लिए उचित नहीं है।
कितना आहार ले : योग के अभ्यासी को खाना खाते समय आधा पेट आहार का सेवन करना चाहिए अर्थात् भूख से आधा मात्रा में ताज़ा, सात्विक और पौष्टिक आहार ले तथा भूख का चौथाई जल और चौथाई भाग पेट मे वायु के आवागमन के लिए खाली रखना चाहिए।
मिताहार योग साधना मार्ग की सफलता की सोपान है। इसलिए अत्याहार यानी शरीर की जरूरत से अधिक आहार का सेवन अथवा भूख ना लगने पर भी खाना खा लेना अच्छा नहीं है। अत्यधिक उपवास यह बहुत ही अल्प मात्रा में आहार जिससे कमजोरी थकान और आलस्य लगे योगासनों के अभ्यासी के लिए अनुचित है।