डॉक्टर्स डे पर विशेष
• एरा मेडिकल कॉलेज की डॉ जलीस फात्मा ने मरीजों के लिए सब कुछ कर दिया समर्पित
• पूरा परिवार कोविड-19 संक्रमण की चपेट में था फिर भी परिवार के साथ मरीजों का भी करतीं रहीं इलाज
लखनऊ। डॉक्टरों के समर्पण और सेवाभाव की यह बेहतरीन मिसाल है। मरीज़ों का इलाज करते-करते वह खुद कोरोना पाजिटिव हो गईं। मौत से जंग लड़ रही थीं लेकिन इस दौरान भी मरते हुए मरीज़ नहीं देखे जा रहे थे। पहले अपना इलाज करतीं थीं उसके बाद मरीजों का। यह सिलसिला चला कोरोना मरीज के तौर पर भी और पोस्ट कोविड कंडीशन में भी।
जी हां, डॉक्टरी फर्ज को जीने वाली इन चिकित्सक को जलीस फात्मा कहते हैं। डॉ. जलीस एरा मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विभाग की हेड हैं। वह कई सालों से यहां बतौर विभागाध्यक्ष काम कर रही हैं। कोरोना की पहली लहर आई तो एरा मेडिकल कॉलेज को कोविड अस्पताल बना दिया गया और इसके मैनेजमेंट की जिम्मेदारी थी डॉ जलीस पर।
 उन्होंने दिन-रात एक करके कोरोना मरीजों की सेवा की और अपने परिवार को भी देखा। कमाल की बात है कि कोरोना मरीजों के बीच में रहने के बाद भी पहली लहर में खुद को इस वायरस से बचा ले गईं लेकिन दूसरी लहर में वायरस ने इनको जकड़ ही लिया। उनका पूरा परिवार इस वायरस के संक्रमण में आ गया।
उन्होंने दिन-रात एक करके कोरोना मरीजों की सेवा की और अपने परिवार को भी देखा। कमाल की बात है कि कोरोना मरीजों के बीच में रहने के बाद भी पहली लहर में खुद को इस वायरस से बचा ले गईं लेकिन दूसरी लहर में वायरस ने इनको जकड़ ही लिया। उनका पूरा परिवार इस वायरस के संक्रमण में आ गया।
डॉ जलीस, उनके पति और एक बेटा एरा में ही भर्ती थे। दो अन्य बच्चे होम आइसोलेशन में थे। उसी दौरान मौतों का दौर चल रहा था। लिहाजा एरा में किसी मरीज की मौत हो जाने पर वह बेचैन हो जाती थीं। पेशे से डॉक्टर होने के कारण उनसे रहा नहीं गया और फिर खुद मरीज होने के बाद भी मरीजों के इलाज में जुट गईं। हर सुबह पहले खुद अपना इलाज करतीं। उसके बाद दूसरे मरीजों के लिए अपने जूनियर को दिशा-निर्देश देतीं।
डॉ. जलीस बताती हैं कि पोस्ट कोविड कंडीशन में भी उन्होंने लगातार मरीजों का इलाज किया। उनकी तबियत इस लायक नहीं थी कि वह चल फिर सकें लेकिन फिर भी लगातार अस्पताल आईं और मरीजों को परामर्श दिया। डॉ जलीस डाक्टर्स डे का सच्चा तोहफा हैं।



