लखनऊ/नयी दिल्ली। संघ की पलक्कड़ में आयोजित समन्वय बैठक में भाजपा के नये कार्यकारी अध्यक्ष का नाम और भाजपा का आगामी लाइन आफ एक्शन दोनों ही तय हो जाएगा। इस बैठक में यूपी भाजपा के थमे हुए पावर गेम का भी पटाक्षेप हो जाने की उम्मीद है। पावर गेम पर फैसले की घोषणा चाहे जब हो किंतु इस बैठक में फैसला लाक हो जाएगा। संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों की ये समन्वय बैठक साल में एक बार होती है जिसमें साल भर में उठे विवादों का हल तलाशा जाता है। इस बार यह बैठक केरल के पलक्कड़ में आगामी 31 अगस्त से दो सितंबर तक प्रस्तावित है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के केंद्र सरकार में मंत्री बन जाने के बाद नये अध्यक्ष की तलाश केरल में संघ के समन्वय बैठक में पूरी होने की उम्मीद है।
चूंकि भाजपा की जिला और राज्य इकाइयों का चुनाव अभी नहीं हुआ है इसलिए अभी कार्यकारी अध्यक्ष की ही घोषणा होने की उम्मीद है। भाजपा के संविधान के अनुसार निचले स्तर के चुनाव से निकले प्रतिनिधि ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। ऐसे में अभी कार्यकारी अध्यक्ष ही चुना जाएगा। वैसे भी परंपरा तो अब यही बन गई है कि कार्यकारी वही बनता है जिसे पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया जाना होता है। गृहमंत्री अमित शाह और स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा इसके उदाहरण हैं। सूत्रों का कहना है कि इस बार किसी महिला या फिर पिछड़े वर्ग को यह पद मिल सकता है। आगामी 31 अगस्त से 2 सितम्बर तक केरल के पलक्कड़ में आयोजित इस बैठक में बीजेपी अध्यक्ष और संगठन महासचिव भी जाएंगे। ये बैठक संघ और उसके विभिन्न संगठनों में आपस में समन्वय के लिए साल में एक बार होती है।
इसके पूर्व 17 अगस्त को दिल्ली में हुई भाजपा की एक बड़ी बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री, सभी महासचिव, सचिव, सभी प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश महामंत्री संगठन, सभी मोर्चों के अध्यक्ष, के अलावा प्रधानमंत्री मोदी, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, अमित शाह भी मौजूद रहे। इस बैठक में मिला फीड बैक केरल की बैठक में काम आएगा। खबर है कि कार्यकारी अध्यक्ष का नाम तय कर लिया गया है जिस पर केरल की बैठक में मुहर लगने के बाद नाम की औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी। 17 अगस्त को हुई बैठक में पार्टी के सदस्यता अभियान के लिए तारीखों की घोषणा भी कर दी गई है। तय प्रोग्राम के अनुसार 1 सितंबर से 31 अक्टूबर तक तीन चरणों में भाजपा का सदस्यता अभियान चलेगा। यानी इसके बाद ही भाजपा के जिला और प्रांतीय सदस्य जुने जाएंगे। फिर उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा। तब तक के लिए कार्यकारी अध्यक्ष का चयन होगा।
इसके पूर्व पिछले दिनों हुई संघ और भाजपा की एक और बैठक में संघ कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले, अरुण कुमार, अमित शाह, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह मौजूद रहे। यह बैठक राजनाथ सिंह के आवास पर हुई थी। चूंकि नियमानुसार आधे राज्यों में संगठन चुनाव पूरे नहीं हुए हैं। इसलिए अभी कार्यकारी अध्यक्ष का ही चयन किए जाने पर चर्चा हुई। वैसे आमतौर पर कार्यकारी अध्यक्ष ही आगे चलकर पूर्णकालिक अध्यक्ष बनता है। यह बैठक चार घंटे चली। सूत्रों ने बताया कि बैठक में यूपी के विवाद पर भी चर्चा हुई। बैठक में कार्यकारी अध्यक्ष पद के संभावित दावेदारों देवेंद्र फडणवीस, केशव प्रसाद मौर्य के अलावा स्मृति ईरानी और वसुंधरा राजे के नाम पर भी चर्चा हुई। स्मृति ईरानी के पक्ष में एक बात यह भी जाती है कि वे धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक यानी ईसाई है। उनको अध्यक्ष बनाकर भाजपा यह संदेश देने में सफल रहेगी कि हमने एक अल्पसंख्यक को अपना अध्यक्ष बना दिया है। साथ ही वे महिला भी हैं। इस बैठक में हालिया लोकसभा चुनाव में भाजपा की दुर्गति तथा 2027 के विधानसभा चुनाव की रणनीति पर भी चर्चा हुई। इसके अलावा केरल की समन्वय बैठक के लिए चर्चा के लिए प्रस्तावित मुद्दों पर भी चर्चा हुई।
उधर भाजपा के अंदर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा की कम हो गई राजनीतिक ताकत को लेकर पार्टी स्तर पर चर्चाओं और मंथन का दौर भी जारी है। भाजपा की मातृसंस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी अपने स्तर से काम शुरू कर दिया है। संघ ने पहले ही स्वयंसेवकों को निर्देशित कर दिया है कि वे हर विधानसभा क्षेत्र में जाएं और दलितों को अपने साथ जोड़ें। साथ ही ग्राम स्तर पर संघ की शाखाएं चालू करके उसमें दलितों को विशेष रूप से शामिल करें। ताकि उनको संघ की नीतियों को समझाया जा सके और संघ के राष्ट्रवाद की मूल भावना भी साझा की जा सके।
हालांकि लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत और संघ नेता इंद्रेश कुमार के शुरुआती बयानों में ऐसा लगा कि वे नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार पर कटाक्ष कर रहे हैं। पर बाद में बयानों में संशोधन भी आए। संघ ने तो बयान जारी करके इंद्रेश कुमार के उस बयान से ही पल्ला झाड़ लिया जिसमें उन्होंने पीएम और भाजपा पर कुछ कड़े कटाक्ष किए थे। बाद में इंद्रेश कुमार ने भी अपने बयान से पल्टी मारी और कहा कि मेरे बयानों को गलत तरीके से पेश किया गया। उन्होंने आगे जोड़ा कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार ठीक काम कर रही है।
सूत्रों का कहना है कि यूपी की हार पर लगातार चर्चा में एक बात सामने आई है कि मुख्यमंत्री योगी कभी भी भाजपा संगठन में नहीं रहे। उनका अपना एक संगठन हिंदू युवा वाहिनी है जो प्रदेश के गोरखपुर, बस्ती और आजमगढ़ मंडलों में सक्रिय हैं। वे उसी के बैनर तले अपनी गतिविधियां चलाते थे। ऐसे में उनका भाजपा संगठन या उसके कार्यकर्ता से बहुत जुड़ाव नहीं रहा। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने संगठन की बजाय प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी पर अधिक भरोसा किया। इसके चलते संगठन और कार्यकर्ता उनसे दूर होते गए। परिणाम स्वरूप सांसद और विधायक भी कार्यकर्ता से दूरी रखने लगे क्योंकि योगी आदित्यनाथ के दोनों कार्यकाल में उनकी कम सुनी जाती थी। योगी का विश्वास ब्यूरोक्रेसी पर ज्यादा रहा। और वे ब्यूरोक्रेसी के सुझाव पर चलते रहे। आलम यह है कि जो काम विधायक और सांसद नहीं करा पाते हैं वह विभिन्न विभागों के सचिव, प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव सीधे संपर्क करने पर आसानी से कर दिया करते हैं। जानकार बताते हैं कि इसी से नाराज होकर भाजपा कार्यकर्ता वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में घर से नहीं निकला और उसने वोटरों को बूथ तक नहीं पहुंचाया। जिसके चलते भाजपा की यह दुर्गति उत्तर प्रदेश में हुई।
उनका मानना है कि राम मंदिर बनने और उसमें प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद जो लाभ नरेंद्र मोदी की सरकार को मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। क्योंकि विपक्ष के तमाम नकारात्मक नैरेटिव को भोथरा करने के लिए जो कार्यकर्ता फील्ड में उतर जाता था वह इस बार नहीं उतरा और घर में ही रहा। जानकारों का कहना है कि दुर्भाग्यवश भाजपा हाईकमान ने भी यह समझ लिया था कि हमने राम मंदिर का निर्माण करा दिया है और गरीबों को राशन दे ही रहे हैं। ऐसे में अब तो हम चुनाव जीत ही जाएंगे। इसीलिए कार्यकर्ताओं की बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया। न तो उनके कहने पर प्रत्याशी बदले गए और न ही कार्यकर्ताओं की सुध ली गई। इसके चलते भाजपा को उत्तर प्रदेश में बहुत तगड़ा झटका लगा और भाजपा 62 सीट से 33 पर पहुंच गई। नतीजा यह हुआ कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने इस लोकसभा चुनाव में 43 सीटें जीत लीं।
ऐसा भी नहीं था कि इसके पहले समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन नहीं रहा। वर्ष 2017 में सपा और कांग्रेस ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन वे भाजपा के आगे कुछ नहीं कर पाए और भाजपा ने प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनाए गए थे। हांलांकि इसी चुनाव के बाद केशव प्रसाद मौर्य की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी खारिज हो गई थी और तभी से भाजपा संगठन की उपेक्षा का बीज तैयार हो गया। वही बीज इस लोकसभा चुनाव में बड़ा होकर पेड़ हुआ और उसने भाजपा को झटका दे दिया।
उम्मीद की जा रही है कि केरल में होने वाले मंथन में योगी बनाम केशव विवाद का भी कुछ हल निकलेगा जो भाजपा हाईकमान के दबाव में फिलहाल शांत दिख रहा है पर अंदर अंदर सुलग रहा है। हालांकि रविवार को मिर्जापुर की एक सभा में उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने यह बयान देकर सबको चौंका दिया है कि देश में मोदी जैसा प्रधानमंत्री नहीं और उत्तर प्रदेश में योगी जैसा मुख्यमंत्री नहीं। डबल इंजन की सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है। राजनीति के जानकार अब उनके इस बयान के निहितार्थ समझने में लग गए हैं।
उम्मीद है कि इसके साथ ही आगामी विधानसभा उपचुनाव के लिए भी अच्छी रणनीति तैयार होगी। ताकि भाजपा को उत्तर प्रदेश में संजीवनी मिल जाए। सूत्रों का कहना है कि अगले पार्टी अध्यक्ष पद के नाम के लिए संघ की तरफ से सहमति मिलना जरूरी है। अब जब पार्टी में अहम पदों पर रह चुके दिग्गजों को केंद्र सरकार में शामिल किया जा चुका है, तो भाजपा जमीनी राजनीति के बैकग्राउंड वाले नेता की तलाश कर रही है। अटकलें हैं कि अगला अध्यक्ष महिला या ओबीसी भी हो सकता है। क्योंकि इससे पहले कभी भी भाजपा की कमान किसी महिला के हाथ में नहीं रही है। वैसे भी महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने का कानून पास कर भाजपा ने एक नया नैरेटिव देने की कोशिश की है। और हो सकता है कि उसके अगले क्रम में किसी महिला को पार्टी की कवन सौंप दी जाए। ऐसे में पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का नाम चर्चा में है। ओबीसी चेहरे के रूप में धर्मेंद्र प्रधान, केशव प्रसाद मौर्य का नाम चर्चा में है। इस बार यह भी हो सकता है कि दक्षिण के किसी राज्य से किसी चेहरे को लाकर दक्षिण कै वोटरों से रिश्ता मजबूत करने की कोशिश की जाए। इसके अलावा मानसून संसद सत्र के दौरान चर्चा में आए पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का भी नाम गंभीरता से इस पद के लिए चर्चा में है। इसके पक्ष में तर्क देने वाले कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री की गुड बुक के हैं। और राहुल गांधी के खिलाफ आक्रामक अंदाज की प्रधानमंत्री ने तारीफ भी की है। जब से उनको मंत्री पद नहीं दिया गया है तबसे ही उनको संगठन में कोई बड़ा पद मिलने की चर्चा बनी हुई है।
यूपी बीजेपी सूत्रों के हवाले से खबर है कि भाजपा संगठन में बड़े बदलाव के संकेत हैं। कई क्षेत्रीय अध्यक्षों को भी बदलने की तैयारी है। सूत्रों का कहना है कि कई क्षेत्रीय अध्यक्ष और ऐसे हैं जो मेंबर तक का चुनाव नहीं जीत सकते हैं पर मंत्री भी बन जाते हैं। इनकी बस एक खासियत यह है कि ये चापलूस गजब के हैं। और ऐसे लोगों के कारण पार्टी का जनाधार खिसकता जा रहा है। यें सारी बातें भी समन्वय बैठक में चर्चा का विषय होंगी। अब देखना यह होगा कि दो सितंबर के बाद भाजपा का ऊंट किस करवट बैठेगा।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक