चमगादड़ : पर्यावरण का अच्छा दोस्त

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‘चमगादड़” को भले ही नफरत व घृणा की दृष्टि से देखा जाता हो लेकिन वह किसी भी पर्यावरण मित्र से कम नहीं। जी हां, चमगादड़ के खान-पान से लेकर आहार-विहार तक देखे तो पायेंगे कि चमगादड़ एक बेहतर पर्यावरण मित्र की भूमिका सार्थक तौर तरीके से निभाता है। चमगादड़ की सत्तर प्रतिशत से अधिक प्रजातियों का मुख्य आहार अर्थात भोजन कीट-पतंगा होते हैं। इससे फूलों के पेड़-पौधों से लेकर फूल के पराग कण तक सुरक्षित होते हैं।

इतना ही नहीं कीट-पतंगा यदि चमगादड़ का आहार न बनें तो कृषि फसलों को भी कहीं अधिक नुकसान-क्षति हो सकती है। चमगादड़ सामान्य तौर पर आकाश में उड़ने वाला स्तनधारी जीव-जन्तु-प्राणी है। देश-दुनिया में चमगादड़ की नौ सौ से एक हजार प्रजातियां पायी जाती हैं। यह स्वभाव से आलसी-सुस्त होते हैं। शायद यही कारण है कि  चौबीस घंटे में अठारह से बीस घंटे सोने में व्यतीत करते हैं।

चमगादड़ की मुख्यत: दो प्रजातियां प्रचलन में सामने दिखती हैं। इन दो प्रजातियों को मेगा किरोप्टेरा व माइक्रो किरोप्टेरा के रूप से जाना जाता है। मेगा किरोप्टेरा का आकार बड़ा होता है जबकि माइक्रो किरोप्टेरा का आकार काफी छोटा होता है। इसका आकार करीब-करीब चूहा जैसा होता है। चमगादड़ पूरी तरह से निशा चर अर्थात रात्रि का प्राणी है। चमगादड़ को रात्रि में विचरण करने में कोई परेशानी या दिक्कत नहीं होती बल्कि निशा काल में वह स्वच्छंद विचरण करता है।

चांदनी रात में उसे न केवल भय लगता है बल्कि उसके लिए चांदनी रात की राह आसान नहीं होती। चमगादड़ का प्रवास-निवास-ठौर-ठिकाना खास तौर से अंधेरी गुफायें, गिरि कंदरायें या फिर सीलन भरे खण्डर आदि होते हैं। घने जंगलों में व पेड़ की शाखाओं में भी चमगादड़ उल्टे लटके दिख जायेंगे। चमगादड़ सत्तर प्रतिशत तो कीट-पतंगा भक्षी होते है लेकिन तीस प्रतिशत फल भक्षी होते हैं।

चमगादड़ अक्सर समूह में रहते हैं। भोजन की तलाश में भी यह समूह में ही निकलते हैं। प्रतिध्वनियों से यह भोजन व राह की तलाश करते हैं। चमगादड़ की शारीरिक संरचना भी अजीब होती है। त्वचा की एक झिल्ली चमगादड़ की गर्दन से प्रारम्भ होकर हाथ की उंगलियों व पाश्र्वभाग होते हुये पूंछ तक होती है। त्वचा की यह झिल्ली उड़ान के समय पंख के तौर पर काम करती है।

चमगादड़ की पिछली टांगें-पैर पतले व छोटे होते हैं। इनमें नाखून होते हैं। चमगादड़ के पंखों का आकार 2.90 सेंटीमीटर से 1500 सेंटीमीटर तक होता है। यह सब चमगादड़ के आकार प्रकार पर निर्भर होता है। चमगादड़ का वजन भी दस ग्राम से लेकर 1200 ग्राम तक होता है। छोटे आकार के चमगादड़ का वजन दस ग्राम या इसके आसपास होता है। खास बात यह होती है कि आकाश में उडान भरने वाली प्रजाति का पक्षी-जीव-जन्तु होने के बावजूद चमगादड़ अन्य पक्षियों की भांति जमीन से उड़ान नहीं भर सकता। यह आश्रय स्थल से सीधे उड़ान भरता है। चाहे वह गुफा या पेड़ पर उल्टा लटक कर विश्राम कर रहा हो या फिर किसी सीलन भरे खण्डहर में उल्टा लटका हो। उड़ान के लिए नीचे जमीन पर न आकर सीधे आश्रय स्थल से ही उड़ान भरता है।

चमगादड़ के पंजों की पकड़ अत्यधिक मजबूत होती है क्योंकि मजबूत पंजों की पकड़ से ही यह उल्टा लटक कर विश्राम करते व सोते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो वैम्पायर प्रजाति के चमगादड़ के अन्य प्रजातियों की तुलना में दांत कम होते हैं। लिहाजा इस प्रजाति के चमगादड़ आहार को चबाते नहीं हैं। इस प्रजाति के चमगादड़ खास तौर से खूून को आहार बनाते हैं जिससे उनको आहार को चबाना न पड़े।

जलवायु परिवर्तन से चमगादड़ का अस्तित्व भी खतरे में है। जलवायु परिवर्तन से चमगादड़ समूह को भोजन की तलाश करने व बसेरा करने में कहीं न कहीं परेशानी व दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि जलवायु परिवर्तन से परिवेश अनुकूल रहना मुश्किल है। विशेषज्ञों की मानें तो यूरोप व अमेरिका में चमगादड़ की 47 में से 38 पर अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है। इस पर्यावरण मित्र के अनुकूल परिवेश को ध्यान में रख कर वन संरक्षण व पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखना आवश्यक होगा।