स्नान भी बनाए ऊर्जावान

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चैतन्यता को व्यक्ति का आभूषण कहें तो शायद कोेई अतिश्योक्ति न होगी। जी हां, चैतन्यता व्यक्ति को कहीं अधिक ऊर्जावान बना देती है। चैतन्यता युक्त व्यक्ति अपने तेज से न केवल प्रभावित करता है बल्कि बुलंदियों को भी हासिल करता है। चैतन्यता वस्तुत: व्यक्तित्व विकास का एक अह्म हिस्सा होता है। ब्रह्ममुहूर्त का प्रत्येक पल, क्षण-घड़ी व्यक्ति को विशेष ऊर्जा प्रदान करती है। सनातन धर्म-सनातन संस्कृति में तो यही मान्यता है कि ब्रह्मकाल जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। लिहाजा दैनिक क्रियाकलाप का प्रारम्भ ब्राह्मकाल से ही करना व्यक्तित्व विकास एवं आनन्दित जीवन के लिए बेहद आवश्यक होता है।

सनातन परम्पराओं-मान्यताओं की मानें तो ब्राह्मकाल से प्रारम्भ दैनिक चर्या अति श्रेयकर होती है। ब्रह्मकाल को ऊर्जावान काल भी माना जाता है। ब्रह्मकाल को वस्तुत: दैनिक चर्या के लिए खुद को तैयार करने का काल-समय माना जाता है। इसे स्नान, ध्यान, पूजन-अर्चन का समय भी कह सकते हैं। सनातन परम्परा-सनातन संस्कृति में स्नान का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। स्नान का काल व्यक्तित्व विकास की दशा एवं दिशा भी तय करता है।

लिहाजा इसे प्राचीन काल से ही बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। स्नान कब आैर कैसे करें… यह प्रकृति का बनाया एक अद्भुत नियम है। सनातन परम्परा की मानें तो स्नान चार प्रकार के होते हैं। इनको मुनि स्नान, देव स्नान, मानव स्नान एवं राक्षस स्नान की संज्ञा दी गयी है। इन सभी स्नान का समय निधार्रित है।

मान्यता है कि मुनि स्नान प्रात:काल 4 बजे से 5 बजे की अवधि में किया जाता है। इसी प्रकार देव स्नान प्रात:काल 5 बजे से 6 बजे की अवधि में किया जाता है। मानव स्नान का समय प्रात:काल 6 बजे से 8 बजे के मध्य माना गया है। इस अवधि के पश्चात किया जाने वाला स्नान राक्षसी स्नान कहलाता है। इसमें प्रत्येेक स्नान का अपना एक अलग एवं विशेष महत्व है। प्रात:काल 4 बजे से 5 बजे केे मध्य किया जाने वाला मुनि स्नान सर्वोत्तम स्नान माना जाता है। इसके पश्चात प्रात:काल 5 बजे से 6 बजे के मध्य किया जाने वाला देव स्नान को उत्तम स्नान माना गया है। प्रात:काल 6 बजे से 8 बजे के मध्य किया जाने वाला मानव स्नान वस्तुत: सामान्य स्नान की श्रेणी में है। इसके पश्चात अर्थात प्रात:काल 8 बजेे के पश्चात सनातन परम्परा-सनातन संस्कृति में स्नान वर्जित है।

मान्यता है कि प्रात:काल 8 बजे के पश्चात स्नान नहीं करना चाहिए। कारण, यह स्नान व्यक्तित्व विकास पर विपरीत प्रभाव डालता है। मान्यता है कि मुनि स्नान करने सेे व्यक्ति के घर-परिवार मेें सुख शांति रहती है। समृद्धि का आगमन होता है तो वहीं परिवार पर सरस्वती का आशीर्वाद रहता है। लिहाजा परिवार शिक्षित होता है। इतना ही नहीं, यह स्नान परिवार को बल, आरोग्य एवं चेतना भी प्रदान करता है। इसी प्रकार देव स्नान के भी अनेकानेेक फल होते हैं। इनमें खास तौर से जीवन में यश-कीर्ति, धन-वैभव, सुख-शांति एवं आत्मसंतोष प्राप्त होता है।

मानव स्नान भी कल्याणकारी एवं फलदायक होता है। मानव स्नान का प्रतिफल व्यक्ति को सफलता-कामयाबी, भाग्य का उदय होना, सात्विक विचारधारा, अच्छे कार्यों की सूझ उत्पन्न होना, परिवार में एकता, मंगलमय परिवेश आदि इत्यादि प्रदान करना होता है। जबकि राक्षसी स्नान अमंगलकारी माना जाता है। इस अवधि में स्नान करने वाले व्यक्ति के परिवार में दरिद्रता, हानि-क्षति, क्लेश-विवाद, धन-सम्पदा की हानि आदि का आवागमन होता है। लिहाजा आनन्द की अनुभूति की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को प्रात:काल 8 बजे के पश्चात स्नान करने से परहेज करना चाहिए। सामान्यत: देखें तो प्रकृति के नियमों का पालन करने से परिवार का कल्याण होता है।