लखनऊ। कुछ दिनों पूर्व ही भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर बसपा का एकमात्र नेशनल कोऑर्डिनेटर बना देने वाली मायावती ने अपने कदम फिर वापस ले लिए हैं। अब तो उन्होंने आकाश को पार्टी से ही निकाल दिया है। मायावती ने यह भी कह दिया है कि उनके जीते जी उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा। अर्थात उन्होंने आकाश आनंद के पर कतरने के साथ ही सबको यह मैसेज क्लियर कर दिया है कि कोई उनका विकल्प नहीं हो सकता। और आकाश आनंद पर कार्रवाई इसलिए क्योंकि वे अपने ससुर अशोक सिद्धार्थ और पत्नी के दबाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन से रिश्ता जोड़ना चाहते थे। और यही उन पर भारी पड़ गया। इस बारे में समाजवादी पार्टी के महासचिव शिवपाल यादव की गोल-गोल प्रतिक्रिया भी काबिले गौर है। वे बड़ी मासूमियत से कहते हैं कि ये बसपा का अपना मामला है, बसपा ही जाने। जबकि कांग्रेस नेता उदित राज ने तो सीधे-सीधे आकाश आनंद को पार्टी में शामिल होने का न्योता दे डाला है। उधर इस निर्णय को लेकर मायावती पर आरोप लग रहा है कि वे भाजपा के इशारे पर यह सारे निर्णय ले रही हैं। परंतु भाजपा ने इसे बसपा की कमजोरी बताते हुए कहा है कि व्यक्ति आधारित पार्टियों में ऐसे ही फैसले होते हैं। इस फैसले पर मायावती के पूर्व सलाहकारों ने कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया है। वे कहते हैं कि बसपा प्रमुख ऐसे ही फैसलों के लिए जानी जाती हैं। पर बसपा को साथ लेने की विपक्ष की कोशिशों को देखकर तो यही लगता है कि जब तक मायावती और बसपा उनके साथ नहीं आएंगे तब तक भाजपा को देश में और विशेषकर उत्तर प्रदेश में हरा पाना बहुत मुश्किल काम है। इसके अलावा दो दिन पहले ही भाई आनंद कुमार और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम को नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाने वाली मायावती ने फिर अपना फैसला बदल दिया है। अब उन्होंने भाई आनंद कुमार को नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटाकर सिर्फ उनका उपाध्यक्ष का पद बरकरार रखा है। दूसरे नेशनल कोऑर्डिनेटर के रूप में जाट नेता रणधीर सिंह बेनीवाल को तैनाती दी गई है। विपक्ष का कहना है कि बसपा फिलहाल भाजपा के दबाव से उत्पन्न अपने पारिवारिक विवाद से उबरने की कोशिश में है। परंतु एक बात तो तय है कि आकाश आनंद अपनी ससुराल के चक्कर में घनचक्कर हो गए हैं।
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती ने पिछले दिनों एक बैठक करके अपने भतीजे और पार्टी के घोषित उत्तराधिकारी आकाश आनंद को पार्टी के सभी पदों से मुक्त करते हुए पार्टी से निकाल भी दिया है। मायावती ने आकाश आनंद को पहले नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटाया और उसके दूसरे दिन पार्टी से ही निकाल दिया। उन्होंने यह भी घोषणा कर दी है कि जब तक वे जीवित हैं, तब तक उनकी पार्टी में उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा। मायावती ने इसके साथ ही पार्टी में दो नए नेशनल कोऑर्डिनेटरों की नियुक्ति की थी। एक नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी उन्होंने अपने भाई आनंद कुमार को दी और दूसरे नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी राज्यसभा सांसद रामजी गौतम को दी। किंतु फिर इसमें बदलाव करते हुए उन्होंने अपने भाई आनंद कुमार से नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी वापस ले ली और उन्हें सिर्फ उपाध्यक्ष पद पर ही रखा। मायावती ने दूसरा नेशनल कोऑर्डिनेटर जाट नेता रणधीर सिंह बेनीवाल को बनाया है। यानी अब ये दोनों नेता ही मायावती के निर्देश पर बसपा की गतिविधियों का संचालन करेंगे। आनंद कुमार को नेशनल कोआर्डिनेटर के पद से हटाने के निर्णय के बारे में बताते हुए बसपा अध्यक्ष ने कहा कि आनंद कुमार ने सिर्फ उपाध्यक्ष पद पर रहने की इच्छा व्यक्त की थी, जिसको देखते हुए रणधीर सिंह बेनीवाल को दूसरा कोआर्डिनेटर बनाया गया है। मायावती ने कहा कि आनंद कुमार ने पार्टी और मूवमेंट के हित में एक पद पर कार्य करने की इच्छा जताई थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया है।
सुश्री मायावती ने बैठक के बाद कहा कि बहुजन समाज पार्टी को आकाश आनंद ने कुछ लोगों के बहकावे में आकर बहुत चोट पहुंचाई है। उनका इशारा आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ की तरफ है। मायावती ने कहा कि आकाश ने उन लोगों की सलाह पर ही ढेर सारे गलत निर्णय लिए हैं। मायावती का कहना है कि ऐसे लोगों ने आकाश आनंद के राजनीतिक कैरियर बर्बाद कर दिया है। यानी इस निर्णय के पीछे आकाश आनंद का दोष कम और उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ का अधिक है। सूत्रों का कहना है कि आकाश आनंद अपने ससुर अशोक सिद्धार्थ और पत्नी की सलाह से पार्टी के फैसले लेने लगे थे जो मायावती को नापसंद थे। सूत्रों का कहना है कि अशोक सिद्धार्थ के समझाने पर ही आकाश आनंद सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ जुड़कर एक नया चुनावी समीकरण बनाना चाहते थे। उनको समझाया गया था कि भूतकाल में कांशीराम और मुलायम सिंह के गठजोड़ ने प्रवेश की राजनीति में बड़ा उलटफेर कर प्रदेश की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। और अब इस समय ऐसे ही समीकरण की जरूरत है। खबरें तो यह भी है कि इस समीकरण के लिए कांग्रेस ने ही अशोक सिद्धार्थ को उकसाया था। ताकि प्रदेश के आने वाले विधानसभा चुनाव में यह तीनों पार्टियां एक साथ आएं और एक नया जातीय समीकरण तैयार कर भाजपा के हिंदुत्व समीकरण की काट तलाशी जा सके। कांग्रेस नेता उदित राज द्वारा आकाश आनंद को पार्टी में शामिल होने का न्योता भी कुछ इसी तरह का इशारा कर रहा है। किंतु मायावती को इसकी भनक लग गई और उन्होंने समय रहते ही आकाश आनंद के पर कतर दिए। सूत्रों का कहना है कि इसके पूर्व आकाश आनंद ने भाजपा के खिलाफ भी एक कड़ा बयान दिया था। उसके बाद मायावती ने नाराजगी जताते हुए आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटा दिया था। परंतु कुछ दिन बाद ही फिर उनकी वापसी कर दी थी। इससे उन आरोपों को भी बल मिलता है जिसमें यह कहा जा रहा है कि मायावती भाजपा के दबाव में पार्टी को चला रही हैं। आरोप है कि भाजपा ने उन्हें इडी और सीबीआई का डर दिखाकर शांत कर रखा है। इसीलिए जब आकाश आनंद ने भाजपा के खिलाफ बयानबाजी की तो मायावती ने तुरंत उनको नेशनल कोऑर्डिनेटर के पद से हटा दिया था। बताते हैं कि बाद में अशोक सिद्धार्थ ने ही मायावती को समझाकर फिर आकाश आनंद की बहाली कराई थी। परंतु आकाश आनंद ने फिर इंडी गठबंधन के साथ गलबहियां करने की नाकाम कोशिश की। पहले बसपाई रहे और अब वर्तमान सपाईयों ने भी आकाश आनंद को इसके लिए समझाया था।
जानकारों का कहना है कि दरअसल मायावती का समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ गठबंधन का बहुत अच्छा अनुभव नहीं रहा है। उन्होंने गेस्ट हाउस कांड की सारी कटुता भुलाकर 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा। पर उनकी सूचनाओं के अनुसार बसपा के वोट तो सपा को ट्रांसफर हो गए लेकिन समाजवादी पार्टी के वोट बसपा को नहीं मिले। इसी कारण मायावती ने तत्काल सपा से गठबंधन तोड़ दिया था। तब से लेकर आज तक सपा की तरफ से कई प्रयास किए गए किंतु मायावती ने तवज्जो नहीं दी। और ऐसे में इस बार आकाश आनंद को मोहरा बना कर एक बार फिर बसपा को साथ लेने की कोशिश की गई थी। इसके अलावा मायावती ने कांग्रेस के साथ भी विधानसभा का चुनाव लड़ा था किंतु उस चुनाव में भी बसपा को कोई खास लाभ नहीं हुआ। बल्कि उसका दलित वोटर छिटककर भाजपा की ओर चला गया था। शायद दलित समाज को बसपा-कांग्रेस का गठजोड़ नहीं सुहाया और उन्हें भाजपा में संभावनाएं दिखीं। तब काफी हद तक दलित वोट भाजपा को मिल गए थे। इसके बाद मायावती ने कांग्रेस से भी संबंध तोड़ लिए थे।
पिछले दिनों रायबरेली के दौरे पर आए राहुल गांधी ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी भाजपा की बी टीम के रूप में काम कर रही है। अगर बसपा इंडी गठबंधन के साथ मिलकर लड़ती तो परिणाम कुछ और होते। राहुल गांधी का यह बयान सीधे-सीधे इंडी गठबंधन के लिए बसपा की जरूरत को बताता है। पर राहुल के बयान पर मायावती भड़क गईं। और उन्होंने कहा कि कांग्रेस धोखेबाज पार्टी है, उस पर अब और विश्वास नहीं किया जा सकता। कांग्रेस को अब इस बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। मायावती ने कहा कि राहुल गांधी पहले अपनी गिरेबान में झांकें, फिर बात करें। खबर है कि मायावती को जब पता चला कि आकाश आनंद सपा और कांग्रेस के साथ गलबहियां करना चाहते हैं तो यह मायावती को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने तत्काल पार्टी की एक बड़ी मीटिंग बुलाई। उन्होंने मीटिंग में स्पष्ट किया कि आकाश आनंद पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर नहीं रहेंगे और साथ ही उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटा दिया है। मायावती का यह निर्णय इतना शाकिंग था कि इसकी उम्मीद आकाश आनंद को नहीं थी। उन्हें लगता था कि मायावती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाकर खुली छूट दे दी है। पर इस मामले में मायावती की नाराजगी का आलम यह था कि आकाश आनंद के ट्वीट को भी मायावती ने नकारात्मक रूप से लिया और दूसरे दिन उन्हें पार्टी से ही निकाल दिया। असल में आकाश मायावती को समझने में भूल कर बैठे। पर मायावती तो मायावती हैं, वे दुश्मनी नहीं भूलती हैं। वे गेस्ट हाउस कांड कैसे भूल सकती हैं, जिसमें उनकी जान पर बन आई थी। इसके अलावा वे उस भाजपा के खिलाफ कैसे जा सकती हैं जिसने कभी उनके साथ राजनीतिक धोखा नहीं किया। और तो और गेस्ट हाउस कांड में भी उन्हें बचाने वाले भाजपा के नेता स्वर्गीय ब्रह्म दत्त द्विवेदी ही थे। जानकारों का कहना है कि अगर ब्रह्मदत्त द्विवेदी समय से गेस्ट हाउस में पहुंचकर उनके सेफगार्ड न हुए होते तो शायद आज मायावती होतीं ही नहीं। ऐसे में मायावती का इतना फर्ज तो बनता ही है कि वे भाजपा के प्रति साफ्ट कार्नर रखें।
सूत्रों का कहना है के उत्तर प्रदेश के विधानसभा उपचुनाव में 8/10 के अंतर से मात खाने वाली समाजवादी पार्टी ने 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए अभी से रणनीति बनानी शुरू की है। ऐसे में समाजवादी पार्टी से बसपा में गए कुछ लोगों को इस बात के लिए तैयार किया गया कि वे मायावती को समझाएं कि वे इंडी के साथ गठबंधन करें। और इसके लिए कांग्रेस पार्टी ने भी समाजवादी पार्टी से बात की थी। सूत्रों का यह भी कहना है कि इस काम के लिए आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को मध्यस्थ बनाया गया था। मायावती के नजदीकी लोगों का कहना है कि बहन जी को लगता है कि अपने कोर वोटरों और हिंदू मतों के लिए इस समय समाजवादी पार्टी से अलग रहना ही बेहतर है। क्योंकि उसकी छवि मुस्लिम तुष्टीकरण वाली पार्टी की हो गई है। और चुनाव सिर्फ मुस्लिम वोटों से नहीं जीता जा सकता। वैसे भी मुस्लिम मुस्लिम वोट इस समय समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की ओर डाइवर्ट हो रहे हैं। ऐसे में उन्हें सपा-कांग्रेस के साथ जाना बुद्धिमानी नहीं लगा। वैसे तो मायावती कट्टर हिंदुत्व की बात नहीं करती हैं, लेकिन वे अब पहले जैसे मुस्लिम तुष्टिकरण की भी बात नहीं करती हैं। ऐसे में लगता है की देर-सवेर उनका झुकाव भाजपा की तरफ हो सकता है। उन पर आरोप भी लगते हैं कि वे भाजपा पर इतनी सख्त नहीं है जितनी कांग्रेस और सपा पर हैं।
खैर, पार्टी की बैठक के बाद मायावती ने पत्रकारों से कहा कि अशोक सिद्धार्थ ने आकाश का राजनीतिक करियर बर्बाद कर दिया। इसलिए उनको पार्टी से निकालना पड़ा। उनके अनुसार आकाश आनंद पर अशोक सिद्धार्थ की बेटी और आकाश आनंद की पत्नी का प्रभाव था जो पार्टी हित में नहीं था। ऐसे में दूसरी बार आकाश आनंद को उत्तराधिकारी और नेशनल कोऑर्डिनेटर पद से हटाया गया है। मायावती ने राज्यसभा सांसद रामजी गौतम और रणधीर सिंह बेनीवाल को नेशनल कोऑर्डिनेटर बना कर अधिकारों का विभाजन भी कर दिया है। और यह मैसेज क्लियर कर दिया है कि कोई भी व्यक्ति फिलहाल उनका उत्तराधिकारी नहीं होगा। मायावती ने आकाश आनंद की सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा संदेश पढ़ने के बाद उन्हें पार्टी से निकालते हुए कहा है कि आकाश ने अपनी गलती से सबक नहीं लिया। उन्हें इस बात का अफसोस भी नहीं है। वे अब भी अपने ससुर के दबाव में है, इसलिए उन्हें पार्टी से बाहर किया जा रहा है। और ऐसा करना बाबा साहब और मान्यवर काशीराम द्वारा बनाए गए पार्टी अनुशासन के लिए जरूरी है।
उधर आरोप है कि आकाश आनंद को उनके ससुर ने उनकी पत्नी के जरिए उन पर दबाव डालकर पार्टी में दो फाड़ करने की कोशिश की। उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ चाहते थे कि पार्टी में आकाश का रुतबा बढ़े ताकि उनकी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पूरी हो सकें। उधर मायावती के खास लोगों ने इस बारे में मायावती को समय रहते बताया तो इसके बाद मायावती ने ये कदम उठाया है। उन्होंने पहले उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से हटाया। और उसके बाद आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर व उत्तराधिकारी पद से हटाया। और फिर दूसरे दिन पार्टी से भी निकाल दिया है। मायावती ने साफ कर दिया है कि पार्टी में उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा। इसीलिए उन्होंने पार्टी में दो नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाए हैं।
कभी बसपा में रहे नेताओं ने मायावती के इस फैसले पर कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया है। उनका कहना है कि मायावती ऐसे ही फैसलों के लिए जानी जाती हैं। उनका कहना है कि बसपा में कोई सुनवाई नहीं होती है, सिर्फ फैसले लिए जाते हैं। बाकी दलों ने यह कहकर इस मामले से पल्ला झाड़ लिया है कि यह बसपा और मायावती का निजी मामला है, और इसके बारे में वही बेहतर समझ सकती हैं।
कभी बसपा प्रमुख मायावती के खास लोगों में रहे स्वामी प्रसाद मौर्य और कांग्रेस नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा है कि बसपा में कब क्या हो जाए, कौन कब हटा दिया जाए, इसको कोई नहीं जानता है। दोनों नेताओं का कहना है कि वैसे भी बसपा अब वह पार्टी नहीं रह गई है जिसे कांशीराम जी ने बनाया था। शायद इसीलिए यह दोनों ही नेता बसपा छोड़ चुके हैं। वैसे यह दोनों नेता जब तक बसपा में रहे तो मायावती के बहुत खास लोगों में से हुआ करते थे।
इस बारे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय का कहना है कि बसपा अपने परिवार की समस्याओं में उलझ गई है। वैसे ये बसपा का अंदरूनी मामला है। इसलिए इस मामले को कैसे देखना है, मायावती ही बेहतर समझ सकती हैं। इस विषय में भाजपा नेता और परिवहन राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार दयाशंकर सिंह का कहना है कि व्यक्तिवादी पार्टियों की यही दशा होती है। वहां जब चाहे, जो भी चाहें निर्णय हो जाते हैं, उस पर क्या कहा जा सकता है। वैसे भी यह उनका अपना मानना है। उसमें हम क्या कह सकते हैं। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के बड़े नेता शिवपाल यादव का कहना है कि यह मायावती की पार्टी का व्यक्तिगत मामला है। इसलिए हम कुछ नहीं कह सकते। वे पार्टी को जैसे चलाना चाहती हैं, चलाएं। सपा सांसद राजीव राय ने भी कहा है कि बसपा में फैसले अब मायावती नहीं लेती हैं। अब तो जो भाजपा तय करती है, वही मायावती करती हैं। उनका कहना है कि मायावती पूरी तरह भाजपा के दबाव में अपनी पार्टी चला रही हैं। उधर आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद ने आकाश आनंद को पार्टी के सभी पदों से हटाने पर कहा कि ये बहनजी का अपना निर्णय है। वे अपनी पार्टी की मालिक हैं। पार्टी के निजी फैसले पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता। परंतु उनके फैसलों का असर समाज पर भी होता है, उन्हें इसका ध्यान रखना चाहिए।
आकाश आनंद को कांग्रेस नेता उदित राज का आफर : कांग्रेस नेता उदित राज ने तो सीधे-सीधे आकाश आनंद को कांग्रेस पार्टी में शामिल होने का ऑफर ही दे डाला है। उन्होंने आरोप लगाया है कि मायावती ने बसपा का बीजेपीकरण कर दिया है। मायावती के बाद सतीश मिश्रा ही पार्टी में सबसे अधिक ताकतवर है। उन्होंने कहा कि मैं न्योता देता हूं आकाश आनंद को कि वे कांग्रेस पार्टी में आए। और सिर्फ वे ही नहीं, सभी बीएसपी कार्यकर्ता कांग्रेस पार्टी में आएं और संविधान बचाने, आरक्षण बचाने और जाति जनगणना की लड़ाई में सहयोग करें। उदित राज ने एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में कहा कि आकाश आनंद को मायावती ने इसलिए पार्टी से निकाल दिया क्योंकि उन्होंने बीजेपी के खिलाफ आक्रामक भाषण दिया। उन्होंने कहा कि आकाश आनंद को दो बार बीएसपी का राष्ट्रीय समन्वयक बनाना और फिर पार्टी से निकालना इस बात को दिखाता है कि बीएसपी का संचालन बीजेपी कर रही है। उनका मानना है कि मायावती बिना दबाव के ऐसे आत्मघाती कदम नहीं उठातीं हैं।
कौन हैं रणधीर बेनीवाल : रणधीर सिंह बेनीवाल सहारनपुर के रहने वाले हैं। बेनीवाल जाट समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इनका राजनीतिक सफर बसपा के साथ लंबे समय से जुड़ा रहा है। उन्होंने संगठनात्मक स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनको पार्टी में सक्रियता और समर्पण के लिए जाना जाता है। वे उत्तर प्रदेश में बसपा के लिए जमीनी स्तर पर काम करते रहे हैं। और खासकर जाट बहुल क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं। मायावती ने इन्हें पंजाब का प्रभारी भी बनाया था। और अब फिर एक बार बड़ी जिम्मेदारी दी है। मायावती ने अपने इस फैसले से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बिरादरी को भी साधने की कोशिश की है।
बसपा के सांगठनिक ढांचे में भी किया बदलाव : मायावती ने बीएसपी में कुछ संगठनात्मक बदलाव करते हुए हर मंडल में चार कोऑर्डिनेटर बनाए हैं। पार्टी ने ये बदलाव 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर किया है। पार्टी में दो जिला और दो विधानसभा प्रभारी भी बनाए गए हैं। सुश्री मायावती ने कार्यकर्ताओं से कहा है कि अभियान चलाकर संगठन को मजबूत किया जाए। इसके अलावा मायावती ने 15 मार्च को काशीराम जयंती पर लखनऊ और नोएडा में कार्यक्रम भी करने का निर्देश दिया है।
बसपा का अब तक का राजनीतिक सफर : बहुजन समाज पार्टी का गठन करिश्माई नेता कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 में किया था। इस पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथी है। 1999-2004 की तेरहवीं लोकसभा में पार्टी के 14 सदस्य थे। 14वीं लोक सभा में यह संख्या 17 और 15 वीं लोकसभा में 21 थी। दलितों की राजनीति में यकीन रखने वाली बसपा का मुख्य रूप से जनाधार उत्तर प्रदेश में है। कांशीराम ने कभी शासन की बागडोर अपने हाथ में नहीं रखी। और उन्होंने सुश्री मायावती को अपनी पार्टी की ओर से आगे रखा। कांशीराम ने जब भी अपने बाद किसी को तरजीह दी तो वह मायावती ही नहीं। पार्टी की वर्तमान मुखिया मायावती 4 बार यूपी की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। यूपी के अलावा उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान में भी बसपा का मामूली जनाधार है। बसपा की स्थापना से पहले कांशीराम ने दबे-कुचले लोगों का हाल जानने के लिए पूरे भारत की यात्रा की और फिर 1978 में ‘बामसेफ’ और फिर डीएस-4 नामक संगठन बनाया। और अंत में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई। इसके पहले अध्यक्ष स्वयं कांशीराम बने। वैसे सवर्ण समाज के विरोध को आधार बनाकर जन्मी बसपा ने बाद में सवर्ण समाज में भी पैठ बनाई है। पार्टी में मुस्लिमों को भी जोड़ा गया। वर्तमान में इसकी मुखिया मायावती हैं। मायावती मुख्यमंत्री के रूप में 1995, 1997 और 2002 में अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं, जबकि चौथी बार 2007 से 2012 तक उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।13वीं से 15वीं लोकसभा में सामान्य प्रदर्शन करने वाली बसपा 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव में यूपी में खाता भी नहीं खोल पाई। 2019 के लोस चुनाव में बसपा ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा, जिसका उसे फायदा भी हुआ। इस बार बसपा 10 सीटें जीतने में सफल रही, वहीं सपा की झोली में मात्र 5 सीटें ही आईं। समय के साथ मायावती के जनाधार में काफी गिरावट भी देखने को मिली। आमतौर पर दलितों की राजनीति करने वाली मायावती ने 2007 के यूपी के विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया। इसके तहत उन्होंने एडवोकेट सतीश मिश्रा को पार्टी में अहम भूमिका दी। टिकट वितरण में भी सवर्णों (ब्राह्मण, राजपूति आदि) को भी स्थान दिया। इसके चलते बसपा को दलित वोटों के साथ सवर्णों के वोट भी मिले और वे पूरे बहुमत के साथ सत्ता में आईं। पर अब धीरे-धीरे बसपा राजनीतिक रूप से कमजोर होती जा रही है। इसय उसका लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है, जबकि उत्तर प्रदेश में उसका सिर्फ एक विधायक हैं, वह भी सवर्ण है। भाजपा के खिलाफ सख्ती न बरतने के आरोपों के चलते विरोधी लगातार मायावती की खिंचाई करते हैं। मायावती पर आरोप लगता है कि अब वे इडी और सीबीआई के इतने दबाव में हैं कि वे भाजपा के खिलाफ बोलने से परहेज़ करती हैं। पार्टी में चल रहे वर्तमान घटनाक्रम को भी लेकर उन पर यही आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने आकाश आनंद को पार्टी से इसलिए निकाला है, क्योंकि वे भाजपा के खिलाफ मुखर हो रहे थे।
अभयानंद शुक्ल
राजनीतिक विश्लेषक