किस्से फिल्मी दुनिया के…
14 फरवरी 1933 को दिल्ली में जन्मीं मधुबाला के बचपन का नाम बेगम मुमताज जहां देहलवी था। वे ग्यारह भाई बहनों में पांचवें नम्बर पर थीं। उनके पिता पेशावर मेें इम्पीरियल टुबैैगो कम्पनी में काम करते थे। कम्पनी बंद हो गयी आैर वे रोजी रोटी की तलाश में दिल्ली चले आये। यहां परिवार का पेट पालने के लिए रिक्शा चलाने लगे। मुमताज को फिल्में देखना आैर उसमें काम करने की इच्छा बचपन से ही थी। वे घंटों शीशे के सामने खड़े होकर तरह तरह की अदाएं व चेहरा बनाया करती थीं।
दिल्ली आकाशवाणी में बच्चों के एक कार्यक्रम के दौरान संगीतकार मदनमोहन के पिता ने जब मुमताज को देखा तो पहली ही नजर में उन्हें प्रतिभा नजर आयी। उन्होंने उनके पिता को बम्बई जाकर फिल्म में काम करने की सलाह दी। ऐसा कहा जाता है कि एक ज्योतिष ने उनके माता-पिता से पहले ही कह दिया था कि मुमताज खूब कामयाबी और दौलत अर्जित करेगी लेकिन, उनका जीवन घोर दु:खदाई होगा। उन्होंने मुमताज के सिर पर हाथ रखा आैर कहा कि मैं तुम्हें बम्बई में मिलूंगा। पिता अयातुल्लाह खान इस भविष्यवाणी के बाद बेहतरी की तलाश में दिल्ली से मुंबई आ गये थे। अयातुल्लाह खान बेटी मुमताज की उंगली पकड़े एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो जाते। बाम्बे डॉक यार्ड में उनका नया आश्यिाना था। एक दिन जोरदार धमाके के साथ आग लग गयी आैर उनके घर के साथ तीन भाई बहन भी जल मरे। मधुबाला बच गयीं क्योंकि वे उस वक्त फिल्म देखने गयी थीं।
बाम्बे टकीज की फिल्म ‘बसंत” में एक बाल कलाकार की भूमिका की जरूरत थी। मुमताज का टेस्ट लिया गया आैर वह भूमिका मुमताज को दी गई। उन्हें सौ रुपये महीने पर रख लिया गया। फिर उनके पिता ने गुजारिश की कि मैं भी मधुबाला के साथ रहूंगा इसलिए उन्हें भी पैसा मिलना चाहिए। उन्हें भी पचास रुपये महीना देना तय हुआ। फिल्म ‘बसंत” में उन्होंने एक गीत भी गाया। बाम्बे टाकीज की मालकिन व टॉप की हीरोइन देविका रानी ‘बसंत” में बेबी मुमताज के अभिनय से बहुत प्रभावित हुईं और उन्होंने ही उनका नाम बदल कर ‘मधुबाला” रख दिया।
बहरहाल ‘बसंत” के बाद रणजीत स्टूडियो की कुछ फिल्मों में अभिनय और पर्दे पर गाने गाकर मुमताज ने अपना फिल्मी सफर आगे बढ़ाया। मधुबाला की सिनेमाई ट्रेनिंग चलती रही। मधुबाला समय से काफी आगे थीं। वे महज 12 साल की उम्र में ही ड्राइविंग सीख चुकी थीं!
मधुबाला जब मात्र 14 साल की थीं उनको पहली बार हीरोइन बनाया डायरेक्टर केदार शर्मा ने। बताते हैं कि केदार शर्मा की पत्नी का देहान्त हो गया था आैर वे मधुबाला को पसंद करने लगे थे लेकिन मधुबाला अपनी उम्र से बहुत ज्यादा बड़े केदार शर्मा को गुरु के अलावा कुछ नहीं समझती थीं। केदार शर्मा की फिल्म का नाम था ‘नीलकमल” और हीरो थे राजकपूर। इस फिल्म के बाद से ही उन्हे ‘पर्दे की सौन्दर्य देवी” (वीनस आफ दी स्क्रीन) कहा जाने लगा। बहरहाल, उन्हें बड़ी सफलता और लोकप्रियता फिल्म ‘महल” से मिली। इस सस्पेंस फिल्म के डायरेक्टर थे कमाल अमरोही आैर निर्माता आैर नायक थे अशोक कुमार। इस फिल्म में सुरैया को साइन किया गया था। उन्हें बतौर मेहनताना चालीस हजार भी दिये जा चुके थे। लेकिन पैसे की परवाह न करते हुए मधुबाला के हुस्न में गिरफ्तार कमाल अमरोही ने उन्हें ही लेकर फिल्म बनाने की जिद पकड़ ली। फिल्म ने कई इतिहास रचे। ‘महल” की सफलता के बाद मधुबाला ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उस समय के स्थापित अभिनेताओं के साथ उनकी एक के बाद एक ‘दुलारी”, ‘बेकसूर”, ‘शीरी फरहाद”, ‘तराना”, ‘कल हमारा है”, ‘बादल”, ‘ज्वार भाटा” जैसी फिल्में आती गयीं और सफल भी रहीं। उन्होंने राज कपूर, अशोक कुमार, दिलीप कुमार, देवानंद आदि उस दौर के सभी दिग्गज अभिनेताओं के साथ काम किया। 18 साल की उम्र तक उन्होंने बीस फिल्मों में काम कर लिया था।
बताया जाता है कि उनकी सुन्दरता का राज एक कुएं का पानी था जिससे वह रोज नहाती थीं। कहा यह भी जाता है कि बम्बई के एक पारसी मंदिर में बने इस कुएं के पानी में यह शिफत थी कि इसके पानी से नहाने से सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं। उनके पिताजी इस पानी का इंतजाम खुद अपनी देखरेख में करते थे। आज यह कुआं है भी या नहीं किसी को पता नहीं।…
इस दौरान उनकी कुछ फिल्में फ्लॉप भी हुईं क्योंकि परिवार उन्हीं की कमाई से चलता था ऐसे में गलत फिल्मों का चुनाव उनके लिए भारी पड़ा। उनके पिता ही उनके मैनेजेर भी थे। लेकिन, असफलताओं के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और साल 1958 में आई उनकी एक के बाद एक चार फिल्में ‘फागुन”, ‘हावड़ा ब्रिज”, काला पानी”, व ‘चलती का नाम गाड़ी” सुपर हिट साबित हुईं। 1960 में जब ‘मुगल-ए-आजम” रिलीज हुई तो इस फिल्म ने मधुबाला को एक अलग ही स्तर पर पहुंचा दिया! इसमें ‘अनारकली” की भूमिका उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका कही जाती है। फिल्म के दौरान उनका स्वास्थ्य भी काफी बिगड़ने लगा था लेकिन, वो पूरे जतन से जुटी रहीं। कई जगह बॉडी डबल का भी इस्तेमाल किया गया। इस फिल्म को बनने में नौ साल का लंबा वक्त लगा!
मधुबाला के लव लाइफ की बात करें तो दिलीप कुमार और मधुबाला की प्रेम गाथा किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। दिलीप कुमार की जिन्दगी में जब मधुबाला आईं तो वह महज 17 साल की थीं। फिल्म ‘तराना” के निर्माण के दौरान दोनों मिले आैर उन्हें इश्क हो गया। उन्होंने अपनी हेयर ड्रेसर के हाथ एक गुलाब आैर एक चिट्ठी दिलीप कुमार के मेकअप रूम में रखवाई जिसमें लिखा था कि अगर आप मुझे पसंद करते हैं तो गुलाब कोे स्वीकार कर लीजिएगा। दिलीप कुमार ने चिट्ठी पढ़ी आैर गुलाब को मुस्कुराते हुए अपनी जेब में रख लिया।
बताते हैं कि दिलीप कुमार भी मधुबाला की खूबसूरती के जाल में इस तरह फंस चुके थे कि वे मधुबाला को देखने के लिए उनके सेट पर पूना तक कार चलाकर पहुंच जाते थे। इसी दौरान शम्मी कपूर भी मधुबाला की अदाओं से घायल दिल हो गये। वे मधुबाला से शादी रचाना चाहते थे। इसका एक बड़ा कारण यह था कि उन्हें पृथ्वीराज के सुपुत्र होने से ज्यादा कोई नहीं जानता था आैर मधुबाला उनके हैंडसप पर्सनाल्टी आैर हंसोड़ स्वाभाव से प्रभावित थीं। शम्मी के कैरियर के लिए वे स्वयं जी जान से लगी हुई थीं। उन्होंने अपने प्रोडेक्शन हाउस की ओर से उन्हेें हीरो लेकर चार फिल्में भी बनायी थीं। व्यावसायिक रूप से ये फिल्में सफल नहीं रहीं आैर प्रोडक्शन हाउस को बंद करना पड़ा। शम्मी कपूर ने अपनी मां से अपने दिल की बात कही लेकिन मां ने शादी के लिए सख्ती से मना कर दिया। शम्मी कपूर फिर भी नहीं माने आैर हिम्मत करके मधुबाला से अपने दिल की बात कह दी। मधुबाला कुछ देर तो चुप रहीं लेकिन उन्होंने पहली बार स्वीकार किया कि वे दिलीप कुमार से बेइंतिहा मुहब्बत करती हैं। शम्मी कपूर कुछ नहीं बोले अौर उनके रास्ते से खामोशी से हट गये।…
(विभिन्न स्त्रोतों से साभार)
प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव