बदलना चाहिए महिला को देखने का दृष्टिकोण

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इस दुनिया में सबसे ज्यादा निषेध समझे जाने वाले शब्द के साथ आज 28 मई एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में स्थापित है। जिस शब्द को लेना एक अपराध जैसा माना जाता है, उसी शब्द से उद्भूत एक समारोह जून के तीसरे सप्ताह में आसाम में स्थपित देवी कामख्या के मंदिर में आयोजित किया जायेगा।

ऐसा माना जाता है कि माँ के जनन अंगो से तीन दिन तक रक्त स्राव होता है, जो देवी को वर्ष में एक बार इस समय में होने वाली माहवारी का ही हिस्सा है और तंत्र की दुनिया में इस रक्त स्राव का बड़ा ही महत्व है। पूरी दुनिया से तंत्र के साधक यहाँ आते है और इस रक्त मिश्रित पानी को पाने का प्रयत्न करते है क्योकि इसे पाने से वो अपनी तंत्र साधन पूरी कर सकते है। जिस रक्त स्राव में इतनी अद्भुत शक्ति को अधिवेष्ठित समझा जाता है।

उसी माहवारी, पीरियड, रजस्वला, ऋतुस्राव को एक निषेध के रूप में भी मान्यता मिली हुई है क्योकि इस समय में महिला एक अछूत जैसी हो जाती है। उसको गंदे रहने, स्नान न करने, नाख़ून न काटना, सर में तेल लगा कर अपने को ऐसे बनाये रखने की परम्परा रही है, जिससे ऐसा सन्देश दिया जाता है कि महिला के साथ ये समय सबसे गन्दा समय है। जिस माहवारी के तत्वों से ही इस धरा के हर प्राणी का जन्म है.. अस्तित्व है.. उसी अंडे को लेकर इतनी घृणा एक विमर्श का विषय रहा है।

इस दुनिया में एक भ्रान्ति यह भी रही है कि माहवारी सिर्फ महिला को होती है और उसके पीछे कारण ये है कि महिला को रक्त स्राव होता है पर पश्चिमी देशो में शोध हो चूका है कि माहवारी पुरुषो को भी होता है। हाँ, उसमे पीड़ा और रक्त स्राव न होने के कारण इसके बारे में न तो लोग सोचते है न जानते है पर ये एक सामान्य सत्य है कि जैसे माह में उत्सर्जित होने वाले अंडे का उपयोग न हो पाने के कारण माहवारी महिला में होती है। वैसे ही पुरुषो में स्पर्म का उपयोग न होने के कारण वो भी मृत होकर बाहर निकल जाते है। जिसे इंग्लिश में नाईट फाल कहते है।

महिला के जीवन में जन्म के समय से उसके गर्भ के दोनों ओर स्थित ओवैरी (अंडाशय) में करीब 20 लाख अंडे होते है, जो 9 वर्ष की उम्र या कभी कभी 11 साल तक परिपक्व होकर प्रति सप्ताह एक के हिसाब से उत्सर्जित होते है। एक माह में जिस ओवेरी से अंडा निकलता है.. दूसरे माह दूसरे ओवेरी से निकलता है। एक अंडे को परिपक्व होने में जो कुल समय लगता है वो 28 दिन का होता है। एक अंडे के चक्र में 28 में से 11 से 18 दिन के बीच का समय या कुछ अधययनो के अनुसार 13 से 18 दिन के बीच निषेचन होकर संतान की प्राप्ति होती है।

एक तरफ जहा महिला अपने चक्र के अनुसार ये जान सकती है कि कब अंडा परिपक्व हुआ है वही शरीर के ताप मान से भी जाना जा सकता है कि अंडा परिपक्व हो गया है। महिला के शरीर में गर्भाशय स्थिति होने के कारण शरीर के तापमान (37 सेंटीग्रेड) से 3-4 डिग्री कम होने पर ही अंडे को जीवित रखा जा सकता है। इस लिए शरीर के तापमान से भी जाना जा सकता है कि अंडा परिपक्व है।

सबसे जरुरी बात ये है कि क्या जरूरत है माहवारी दिवस मनाने की जबकि 60 लाख साल से मानव इस पृथ्वी पर बच्चे पेड आकार रहे है और माहवारी कोई आज की नयी बात नहीं है तो फिर आज इतनी जागरूकता की क्या जरूरत है।

यही से महिला सशक्तिकरण का अध्याय शुरू होता है क्योकि महिला को घर के अंडे रही रहना होता था और सिर्फ खाना बनाना बच्चे पेड अकारण ही उसका काम था पर आज स्थितियां बदल गयी है। आज लड़की खेल खेल रही है.. नौकरी कर रही है, दौड़ लगा रही है.. क्रिकेट खेल रही है.. पढ़ रही है.. सफ़र कर रही है। ऐसे मे वो अपनी माहवारी का रोना रो कर घर मे नहीं बैठ सकती है और इसी लिए इसके प्रति ज्ञान पैदा करके के लोगो की भ्रांतियां मिटाने का प्रयास किया जा रहा है।

पैड मैन जैसी पिक्चर बनायीं जा रही है, सिनेटरी पैड के प्रति जागरूकता पैदा की जा रही है.. इन सबके के इतर आज लड़की के साथ तनाव हताशा आदि के कारण अधिक रक्त स्राव से पीड़ित हो रही है। शादी हो रही है पर माहवारी के गलत चक्र के कारण परिपक्व अंडे नहीं बन रहे है। लड़कियां एनेमिक होती जा रही है। गर्भाशय की अम्लता, क्षारीयता आदि के बारे में महिला का ज्ञान अधूरा है।

कितना अजीब है कि मंदिर में माँ की योनी की पूजा आदि काल से हो रही है पर जीवित लड़की की समस्या को कहना और बात करना एक निषेध है और आपके चरित्र को प्रश्नगत करता है। यही कारण है कि भारत जैसे देश में माहवारी एक अजीब सा शब्द है। जिस शब्द की पूर्णता माँ जैसे शब्द पर जाकर समाप्त होती है। वही माहवारी की बात करने पर आप एक अजीब व्यक्तित्व के व्यक्ति बन जाते है।

आज हम सबको इस बात के समझना होगा कि महिला जिस रक्त से सृष्टि को सजीव बनाये हुए है और मानव के अस्तित्व की कहानी को जिन्दा रखे है, उस महिला के माहवारी की समस्याओ पर हम बोले …. मैं जब केरल में गया तो वहा पर ये आम बात थी कि महिला अपने पैड के लिए अपने घर के पुरुषो से कह देती थी यही नहीं केरल में ही नायर में जब लड़की को रजस्वला का आरम्भ होता था तो लड़की को एक कुर्सी पर बैठा कर अपने समाज के लोगो को ये सन्देश दिया जाता था कि लड़की अब प्रजनन के योग्य हो गयी है यही नहीं ऐसी ही परम्परा अमेरिका की समाओ जनजाति में पायी जाती है।

वैदिक काल में ये परम्परा बनायीं गयी थी कि फलां के घर पर बेटी को रीती स्राव शुरू नहीं होना चाहिए अगर हो जायेगा तो पिता को ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा और इसने ही बाल विवाह का प्रचलन किया। जिसके पीछे सिर्फ पित्र्त्व निर्धारण का प्रश्न था पर आज ऐसा नहीं है लड़की सिर्फ माँ बनने के लिए ही नहीं पैदा हो रही है बल्कि इससे इतर वो सारे काम में अपने को सफल साबित करना चाहती है, जो पुरुष सिर्फ अपने योग्य बनाता है।

ऐसे में महिला का प्राकृतिक गुण यानि माहवारी सामने आ जाता है और उसको जीते हुए कैसे बहता जीवन जिया जा सकता है उसी को समझाने का नाम अंतर्राष्ट्रीय माहवारी दिवस है। ऐसे निषेध विषय पर आज अखिल भारतीय अधिकार संगठन ने इसी लिए लेखनी चलायी क्योकि हम सबको सिर्फ जागरूक करने का काम करते है और ये जरुरी है कि समाज में महिला को एक अबला की तरह न देखा जाए बल्कि सही तथ्यों को सामने रख कर हम सब अपनी माँ का चिंतन करते हुए महिला के साथ सहयोग करें क्योकि कोई माँ तभी बन पाती है या कोई इस दुनिया में तभी आ पाता है जब एक महिला माहवारी के कष्ट दर्द, और एक मानसिक उलझन को लेकर न सिर्फ जीती है बल्कि गुजरती है।

आइये हम सब उस महिला के साहस का सम्मान करें, जो अपनी इस प्राकृतिक असुविधा के 3-4 दिन को भी बर्बाद न करके समाज और राष्ट्र परिवार के निर्माण में लगाना चाहती है…….. एक बार माहवारी पर सोचिये शायद आपको माँ का दर्द समझ में आ जाये शायद आप किसी भी महिला को देखने में अपना दृष्टिकोण बदल दे।

डॉ आलोक चान्टिया