पेशे से डॉक्टर नहीं हूं…! मगर मेडिकल साइंस की उतनी समझ है, जितनी सामान्य MBBS डॉक्टर को होती हैै। वजह, “जैक ऑफ ऑल”, वाले पेशे से जुड़ा होना है। कोरोना मौत का तांडव कर रहा है…और डॉक्टरों ने मेडिसिन प्रोटोकॉल जारी कर रखा है। हर इंसान का मैटाबॉलिज्म अलग है, डीएनए भी सिर्फ खून, सेक्स के रिश्ते से ही मिलता है।
तब मेडिसिन के एक प्रोटोकॉल से सभी का इलाज कैसे संभव? दूसरे, सामान्य खांसी, गले में खरास, हल्के बुखार, गले में थूक फंसने के लक्षण को कोरोना मानकर छोटे डॉक्टर Azithromycin, Ivermectin, Doxy, Zinc, Vitamin-D & C लिख रहे हैं। ये हाई एन्टीबॉयोटिक व बिटामिन हैं। जिससे लक्षण वाले मरीज को तात्कालिक फायदा हो जाता है। मरीज को प्रतीत होता है कि वह ठीक हो गया। डॉक्टर अच्छा है।
मगर वही इंसान जब सच में कोरोना की चपेट में आता है, तब तक उसके शरीर पर ये दवाएं अप्रभावी हो चुकी होती हैं। नतीजे में विशेषज्ञ डॉक्टर को जीवन रक्षा के लिए मरीज को “स्टेरायड” और ऑक्सीजन देनी पड़ती है। इससे से ज्यादातर मरीजों की प्राण रक्षा हो रही है। अब गड़बड़ी ये है कि विशेषज्ञ डॉक्टरों ने ढेरों वीडियो वायरल कर दिये हैं। जिसमें कोरोना से जीत में “स्टेरायड और ऑक्सीजन” को संजीवनी बूटी कहा गया है। (लक्ष्मण की जान बचाने के लिए हनुमान यही बूटी लाये थे) सो छोटे-छोटे डॉक्टरों ने भी मरीजों को अलग-अलग ब्रांड की स्टेरायड देनी शुरू कर दी।
जबकि स्टेरायड प्रोटोकाल के मुताबिक मरीज के वजन, वाइटल रिपोर्ट, आरटीपीसीआर या एचआरसीटी के आधार पर ही स्टेरायड का उपयोग होना चाहिए। विशेषज्ञ डॉक्टर तजुर्बे से कुछ चीजें समझ लेते हैं, लेकिन छोटे डॉक्टर धड़ल्ले से स्टेरायड लिख रहे हैं। इनमें से कई स्टेरायड प्रोटोकाल का पालन ही नहीं कर रहे हैं।
नतीजा ये है कि बड़ी संख्या में कोरोना पीड़ित लोग अब-CARCINOMA (कर्सिनोमा) की चपेट में आ रहे हैं। कर्सिनोमा जानलेवा है। इसमें लीवर मेें फंगश हो जाता है। प्रोस्टेट, त्वचा, होंठ का फंक्गश होता है जो कैंसर में तब्दील हो जाता है। यह बीमारी स्टेरायड बंद होने के एक से दो माह बाद पता चलती है यानी छोटे डॉक्टरों की लिखी स्टेरायड खाने से ठीक होने के दो माह बाद अचानक खुलासा होता है कि संबंधित व्यक्ति कार्सिनोमा का शिकार हो चुका है।
भारत में अजीब स्थिति है डॉक्टर ये बताते ही नहीं है कि ये बीमारी हुई क्यों ? मैं भविष्य वक्ता नहीं, विज्ञान का विशेषज्ञ नहीं फिर भी मुझे आशंका है कि कोरोना के कन्ट्रोल होने तक या बाद में कर्सिनोमा के मरीजों की संख्या में अचानक इजाफा हो सकता है।
यह लिखने, बताने का आशय ये है कि कोरोना का लक्षण दिखने पर आरटीपीसीआर जांच कराने में हिचक नहीं दिखांयें। छोटे डॉक्टरों के स्थान पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की सलाह लीजिए। उन डॉक्टरों की सलाह पर कोरोना से जुड़ी दवायें खायें जो कोरोना का ट्रीटमेन्ट कर रहे हैं। डॉक्टरों की बतायी वायरल दवाएं फार्मैसी से खरीदकर खाने से बचें। अंग्रेजी दवा के बारे में साफ प्रचलित है कि हर दवा का साइड इफेक्ट है।
सो कृपया अपना ध्यान रखें। जागरूकता, अलरटनेस ही इस बीमारी का इलाज है। कुएं से निकलकर खाई में जाने से बचने के लिए जरूरी है कि विशेषज्ञ डॉक्टर की देखरेख में मरीज को स्टेरायड पर डालें। जिस पैमाने पर मरीजों को स्टेरायड खिलायी जा रही है, उससे आने वाले दिनों में अगर बड़ी संख्या में कर्सिनोमा से जीवन का लास हो तो चौंकियेगा नहीं।
(डिस्कलेमरः यह विशेषज्ञ राय नही है। विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात के आधार पर जागरूकता के लिए लिखा गया है। ट्रीटमेंट से इसका लेना-देना नहीं है। बताना यह है कि कोई डॉक्टर मरीज को बिना जांच कोरोना की दवा खाने के लिए कह रहा है तो उससे पूरी जानकारी लीजिए। स्टेरायड दे रहा है तो डोज का ब्यौरा पहले पूछिए।) भारत स्वस्थ्य रहेगा, तभी अब भारत बचेगा भी।
परवेज अहमद, वरिष्ठ पत्रकार