अहा… जिंदगी, वाह… जिंदगी। जी हां, जिंदगी सुखद एवं रोमांचक हो तो क्या कहने! मन-मस्तिष्क में एक प्रफुल्लता हो… ह्मदय प्रसन्नता से पुलकित हो रहा हो… मन एवं तन एक खास रोमांच का अहसास कर रहा हो… शायद यही अहा जिंदगी से वाह जिंदगी का एक शानदार सफर रेखांकित करता है। रोमांचक जिंदगी व्यक्ति को हर पल हर क्षण जीना एवं आनन्द का लुफ्त लेना सिखा देती है। आनन्द की यह अनुभूति व्यक्तित्व में निखार लाती है तो वहीं व्यक्ति को सदैव ऊर्जावान बनाये रखती है। ऊर्जावान… आशय व्यक्तित्व विकास… कर्मशील-कर्मठ, पराक्रमशील, प्रगतिशील आदि इत्यादि।
व्यक्तित्व विकास के लिए जीवन में नियम-संयम भी आवश्यक है। नियम संयम आशय कि स्नान-ध्यान, पूजा-पाठ एवं दैनिक चर्या आदि इत्यादि। वैसे देखें तो सफलता के लिए कोई इंतजार नहीं करना चाहता। कोई इंतजार करे भी क्यूं…! लेकिन कामयाबी-सफलता मिलना हमेशा अपने हाथ में नहीं होता। इसका आशय यह कतई नहीं कि सफलता मिलना भाग्य भरोसे छोड़ कर चुप बैठ जाना चाहिए। बिल्कुल नहीं…। सफलता काफी कुछ व्यक्तित्व विकास एवं कर्मशीलता पर आधारित होती है।
कामयाबी की राह में बाधाएं-अवरोध भी आते हैं। इन अवरोधों-प्राब्लम्स को सुलझाना-मैनेज करना प्रबंधन की एक बड़ी कला है। इतना ही नहीं, किसी कार्य की असफलता यह साबित करती है कि प्रयास पूरी ईमानदारी, दक्षता एवं क्षमता से नहीं किया गया… अन्यथा कोई कारण नहीं कि कामयाबी न हासिल हो। लिहाजा किसी कार्य को पूर्ण ईमानदारी, पूर्ण क्षमता एवं पूर्ण दक्षता से करना चाहिए। जीवन में संतुलित व्यवहार हो तो व्यक्तिगत जीवन से लेकर सामाजिक जीवन सहित बहुत कुछ आदर्श बन जाता है।
आनन्द की सुखद अनुभूति हो या दुख का सागर हो या फिर क्रोध की ज्वाला धधक रही हो… जीवन बेहद संतुलित होना चाहिए। कारण आनन्द, दुख एवं क्रोध की परिस्थिति में आपका कोई भी निर्णय सदैव सकारात्मक एवं रचनात्मक नहीं हो सकता या हित में नहीं हो सकता। लिहाजा आनन्द, दुख एवं क्रोध की परिस्थिति में कोई भी निर्णय लेने से बचना चाहिए। संतुलित जीवन एवं संतुलित व्यवहार किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को आदर्श बनाने का एक सकारात्मक गुण है।
आनन्द से विभोर हों तो किसी से कोई वादा नहीं करना चाहिए। आनन्द में किसी को कोई वचन नहीं देना चाहिए। कारण आनन्द के पल में कोई भी वादा आपकी सीमाओं-क्षमताओं से अधिक होने पर तत्पश्चात आपको कष्ट देगा।
कई बार आर्थिक क्षति का कारण भी बनेगा। इसी प्रकार दुख पर नियंत्रण रखना चाहिए। कारण दुख के समय व्यक्ति का अत्यधिक भावुक होना स्वाभाविक है। इस भावुकता में दुखी व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति के समक्ष ह्मदय से बात करता है। लिहाजा कई बार व्यक्ति को उपहास का केन्द्र बनना पड़ता है। यह स्थिति व्यक्तित्व विकास का एक नकारात्मक हिस्सा बन जाती है। क्रोध पर भी व्यक्ति को नियंत्रण रखना चाहिए।
कारण क्रोध में व्यक्ति कई बार ऐसे निर्णय ले लेता है, जिसका पश्चाताप-प्रायश्चित जीवन पर्यंत करना पड़ता है। आशय यह कि चिंतन-मनन-विचार के बाद ही किसी प्रकार का निर्णय लेना चाहिए। समग्रता में देखेें तो व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है कि जीवन में संतुलित व्यवहार का मुख्य स्थान हो। इस प्रकार देखें तो जीवन में संतुलित व्यवहार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।