– चार दशकों में हजारों मासूमों की कातिल इंसेफेलाइिटस अब समाप्ति की ओर
– सरकार के चिकित्सा प्रबंधों से चार साल में इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों में हुई 90 फीसद की कमीं
लखनऊ। गोरखपुर के आसपास का क्षेत्र पूर्वांचल में आता है। चंद वर्ष पह्लते वहां हर साल दिमागी बुखार से हजारों बच्चों की मौत होती रही है। संसद में भी इसकी चर्चा होती रही है। एक बार इसकी चर्चा करते उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भावुक हो गये थे। लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके प्रयासों के दिमागी बुखार के रोकथाम और इलाज के बेहतर प्रबंधन से आज बहुत आशाजनक नतीजे देखने को मिल रहे हैं। इंसेफेलाइटिस पर प्रभावी नियंत्रण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये बातें आज स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्रीय बजट के प्रावधानों को प्रभावी तौर पर लागू करने को लेकर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कहीं।
राज्यपाल भी कर चुकी हैं सराहना : राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी राज्य विधान मंडल के अपने अभिभाषण में इस मुद्दे पर योगी सरकार की तारीफ कर चुकी हैं। उनके मुताबिक एक्यूट इंसेफेलाइिटस रोगियों की संख्या 2016 से 2020 के दौरान 3911 से घटकर 1624 पर आ गयी। इससे होने वाली मौतों की संख्या 641 से घटकर मात्र 79 रह गयी। वर्ष 2016 में जापानी इंसेफेलाइिटस और एक्यूट इंसेफेलाइिटस से क्रमश: 9 एवं 95 बच्चों की मौत हुई थी। 2020 में रोगियों और मृतकों की संख्या क्रमश: 95 और 9 रही।
कैसे हुआ यह चमत्कार : यह चमत्कार यूं ही नहीं हो गया। विभिन्न विभागों के सामूहिक प्रयास, स्वच्छता अभियान और प्राथमिक एवं सामूहिक स्वास्थ्य केंद्रों की बुनियादी संरचना को मजबूत करने के नतीजे से ऐसा हो सका। सरकार ने रोग के लिहाज से संवेदनशील जिलों के क्षेत्रों में पीडित बच्चों के प्रभावी इलाज के लिए 16 पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीकू), 15 मिनी पिकू और 177 इंसेफेलाइिटस उपचार केंद्र स्थापित किये। इस सबका नतीजा रहा कि आज इंसेफेलाइिटस समाप्त होने के कगार पर है।
2017 के पहले के हालात : इंसेफेलाइटिस, पूर्वांचल के हजारों मासूमों की कातिल है। जितने बच्चे इससे मरते थे, उससे करीब दोगुना शारीरिक और मानिसक रूप से विकलांग होते थे। विकलांगता मतलब ताउम्र परिवार के लिए बोझ। हर साल जून से नवंबर गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के इंसेफेलाइटिस वार्ड का मंजर बेहद डरावना होता था। रोग के पीक सीजन में एक बेड पर दो-दो बच्चे। इसके बाद बच्चे हुए बच्चों को वार्ड के फर्श पर जगह मिलती थी।
ये हालात तब थे जब संसद के हर सत्र में गोरखपुर के सांसद के रूप में संसद के हर सत्र में पुरजोर तरीके से इस मुद्दे को उठाते थे। सीजन में मासूमों के बेहतर इलाज के लिए डीएम कार्यालय पर धरना आम था। जून-जुलाई की उमस भरी गर्मी में हजारों की संख्या में योगी की अगुआई में लोग मेडिकल कॉलेज से कमिश्नर कार्यालय तक जुलूस निकालते थे। मेडिकल कॉलेज के कितने दौरे किये, इसकी कोई गिनती ही नहीं।
योगी के सीएम बनने के बाद बदल गये हालात : बतौर सांसद रहते हुए इंसेफेलाइिटस के मुद्दे पर सड़क से संसद तक संघर्ष करने वाले योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही हालात बदलने लगे। चार साल में तो मानो चमत्कार हो गया। आंकड़े इसके सबूत हैं। 2017 की तुलना में वर्ष 2020 में इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों की संख्या में 90 फीसद की कमीं आई है।