बजट की आहट : वित्तीय प्रबंधन को बेहतर बनाने की कोशिश !

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बजट की आहट : वित्तीय प्रणाली चुस्त करें, वेल्थ टैक्स लगाएं, सरकारी वर्कफोर्स का पुनर्गठन जरूरी जीएसटी दरें और अनुकूल हों, घाटे के उपक्रमों पर त्वरित निर्णय लें, अर्थविदों की मानी जाए तो फिर से वेल्थ टैक्स लगाया जाना चाहिए। वित्तीय प्रणाली, वित्तीय प्रबंधन को चाक चौबंद करने की सख्त जरूरत है। सरकारी क्षेत्र को समयबद्धता के साथ ही जवाबदेही की आदत डालनी पड़ेगी। ग्राम पंचायत से लेकर विभाग और मंत्रालय तक में एकल समान संहिता पर उत्पादकता आधारित वेतनभत्ते निर्धारित किए बिना अपनी अर्थव्यवस्था को सही मायने में दुरुस्त कर पाना असंभव नहीं तो कठिन बहुत है।

इसी तरह हर स्तर पर अनियोजित व्यय और फिजूलखर्च समाप्त करने का दृढ़ संकल्प शीर्ष स्तर से नीचे तक न केवल लिया जाए बल्कि दैनिक दिनचर्या में शुमार हो। केंद्र सरकार के पूंजी व्यय में‌ वृद्धि के समानांतर ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, सरकारी महकमों, कर बोर्डों और अन्य गैर प्रशासनिक संस्थानों (जिनका वित्तपोषण सरकार के कंधों पर है) का पुनर्गठन करने में देर नहीं की जानी चाहिए। बतात चलें, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कुल तकरीबन 26 लाख करोड़ रुपये की पूंजी लगी हुई है। इनकी संख्या 249 (2018-19) है, इनमें से लाभ अर्जित करने वाले 174 उपक्रम हैं, इन्होंने वित्तीय वर्ष 2018-19 में 1.74 लाख करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया। दूसरी तरफ 70 उपक्रमों से दसियों साल से निराशा ही पल्ले पड़ी। 2009-10 से 2018-19 तक के दस वर्षों में इन उपक्रमों ने 2.65 लाख करोड़ रुपये की हानि दी। सार्वजनिक उपक्रमों में 10 लाख से अधिक कर्मी काम करते हैं। कम से कम इन उपक्रमों का न्यायोचित उपचार, पुनर्गठन या जो भी करना है तो त्वरित और प्रभावी निर्णय लिया जाय ताकि कठिनता से जुटाए गये श्रमवित्तीय संसाधनों का सही इस्तेमाल कर मुल्क की बेहतरी हो।

कर विशेषज्ञों का मानना है और विभिन्न उद्योग-व्यापार संगठन भी जीएसटी का सरलीकरण तथा कर दरों का अनुकूलीकरण करने की मांग भी करते आए हैं। इससे करदाताओं को और आसानी तो होगी ही लेकिन इससे भी अधिक, राजस्व में वृद्धि प्राप्त होगी। मिश्रित अर्थव्यवस्था सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास और इसमें सुसामंजस्य से ही बेहतर हो सकती है। कोविड काल से उबरे हैं हम, फिर भी दूसरे देशों में घटने वाले घटना क्रम, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मौजूदा हालात और घरेलू मांग तथा भविष्य में इन कारकों‌ के पड़ने वाले प्रभाव को लेकर निजी क्षेत्र सहमा हुआ है, निवेश करने यानी पूंजी लगाने का जोश बन नहीं पा रहा है। दरअसल निजी क्षेत्र कड़वे अनुभवों को ध्यान में रखते हुए ‘वेट ऐंड वाॅच’ मोड पर है, उसमें जोखिम उठाने का हौसला लौट आने का इंतजार है। इसक लिए बजट के बाद ही स्थितियां कुछ हद तक स्पष्ट हो पाएंगी।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी