महाबली हनुमान जी का आंतरिक बल

0
506

महाबली हनुमान जी आंतरिक बल……. गढ लंका के मैदान में वानर पुत्र हनुमान जी के अपनें आन्तरिक बल की सुन्दरता का परिचय देकर यह सिद्ध कर दिया कि बाहरी रूप रंग कैसा भी पर जब आंतरिक रूप निखर कर सामने आता है तो हर रूप उसके सामने फीके ही पड जाते हैं। गढ लंका के मैदान में वीर हनुमान जी की हुंकार ने लंका ओर लंकापति रावण दोनों को अपना परिचय दे दिया।

अपने आतंरिक रूप का ऋंगार कर वानर राज केसरी के पुत्र बजरंग बली ने लंकापति रावण ओर श्री राम दोनों को ही अपनी कद काठी के अस्तित्व का परिचय दे दिया ओर जगत को यह बता दिया कि केवल बाहरी सोंदर्य को निखार कर अपना रूप दिखाना तो केवल एक कला है। आंतरिक रूप का ऋंगार कर अपनी कद काठी का बल ओर साहस दिखाना एक साधना है। आंतरिक रूप व्यक्तितव को निखारता है ओर अपनी भूमिका का निर्वाह कर उस बल बुद्धि का परिचय देता है जिसकी महिमा स्वयं बिना पंख के प्रचारित ओर प्रसारित हो जातीं है।

वानर रूपधारी हनुमान ने अपने आतंरिक रूप का ऋंगार बाल अवस्था में ही दिखा कर यह सिद्ध कर दिया कि बाहरी सुंदरता से अधिक मन की सुंदरता होती है जिसका आधार बल बुद्धि ओर व्यवहार होता है और उसी आंतरिक रूप से देवराज इन्द्र ओर जगत के सूर्य को बता दिया कि इस जगत में बलवानो की कमी नहीं है चाहे बाहरी रूप ऋंगार कैसा भी हो।

हनुमान जी ने साबित कर दिया कि आंतरिक रूप ओर बल से व्यक्ति दुर्लभ से दुर्लभ लक्ष्यों को हासिल कर सकता है और इस संसार में विजय को प्राप्त करता हुआ अपनी गाथा कि अमर कीर्ति छोड़ सकता है। सात समुन्दर पार अकेले ही जाकर लंकापति रावण को चुनौती देना ओर सीता जी का पता लगा कर श्री राम को असली समाचार देना। वानरों की सहायता से गहरे समुद्र मे रास्ता बनवाना ओर वानर सेना के साथ लंका का रूप सोंदर्य नष्ट करना। नाग पाश में फंसे राम ओर लक्षमण के बंधन कटवाना द्रोणागिर पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर लक्षमण जी के प्राण बचाना यह सब दुर्लभ कार्य थे जिस पर वानर रूपधारी हनुमान ने अपनें आंतरिक रूप के ऋंगार बल ओर बुद्धि से विजय पा कर श्री राम के लंका विजय के लक्ष्यों को पूरा किया।