भगवान राम के आंसुओं को पोछें

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आज भगवान राम आंसू बहा रहे होंगे, यह देख कर कि जिस देश में मैंने जन्म लिया और अपने पिता के कहने पर न केवल राज सिंहासन व अपना एक चौथाई हिस्सा त्यागा बल्कि अपनी सौतेली मां और भाइयों की खुशी के लिए वन की ओर चला गया। अपने बच्चों को वाल्मीकि आश्रम में पढ़ाया अपनी पत्नी को त्यागा।

इस बलिदान के लिए वे कभी नहीं रोए मगर आज समाज की जो दुर्गति है उसे देख वह निश्चित आंसू बहा रहे होंगे। आज उनके ही देश में उनकी मर्यादाओं को हर घर में कुचला जा रहा है। पुत्र से बाप न केवल असुरक्षित है बल्कि पिटता है और जान तक गवा बैठता है, कई बाप औलादों के उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या तक कर रहे हैं। कई बाप पुत्रों से इस हद तक परेशान है कि वह पुत्रियों को ज्यादा तवज्जो देने लगे है।

यही स्थिति सगे भाइयों की है। भाई का सबसे बड़ा दुश्मन भाई बन बैठा है। बस हर तरफ महत्वाकांक्षा व जीवन की तृष्णा के लिए इंसान पूरी तरह क्षुद्र हो गया है। नैतिक पतन हो रहा है। जर्मन दार्शनिक शलेगल ने यहां तक कहा है कि महत्वाकांक्षा एक भयावह बीमारी है। मनुष्य जाति और सभ्यता का जितना ज्यादा नुकसान इस बीमारी के कारण हुआ है उतना किसी और कारण से नहीं हुआ है।

इसीलिए लोग “नर पशु” जीवन जी रहे हैं। अपने बीवी बच्चों से ज्यादा कुछ नहीं देख पाते। पेट और प्रजनन उनके जीवन का सीमित लक्ष्य रह गया है। क्या राम मंदिर बनाने से राम की मर्यादा पुनर्जीवित हो जाएंगी। यदि भारतीय संस्कृति को बचाना है तो भगवान राम की मर्यादाओं का पुनर्जागरण बहुत जरूरी है। जिसके लिए हमारे परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने न केवल अपनी सारी संपदा न्योछावर कर दी और वाल्मीकि रामायण का भाष्य कर उसके आदर्श पात्रों पर आधारित कई पुस्तकें भी लिखी। 32 सौ से ज्यादा किताबें, वेद व उपनिषद का भाष्य कर “नर को नारायण” बनाने का एक वैचारिक एवं अध्यात्मिक “पैकेज” भी दे गए।

इसीलिए उनके करोड़ों अनुयाई अक्सर यह गीत गुनगुनाते मिलेंगे, “राम और श्रीराम एक है दुनिया जान न पाई, दोनों ने ही एक तरह की रामायण दोहराई!” आइए रामनवमी पर राम भक्त बनने का नहीं बल्कि राम की मर्यादाओं को आत्मसात करने का संकल्प लें, तभी विष्णु अवतार भगवान श्री राम प्रसन्न होंगे और हम कोरोना जैसी तमाम व्याधियों से मुक्ति पा सकेंगे।

ज्ञानेंद्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार