क्या गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे

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# शिवचरण चौहान

क्या फैजाबाद के गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे? यह सवाल वर्षों पहले उठता रहा है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसकी जांच भी कराई थी पर जांच रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की। दिल्ली की सत्ता में आने से पहले भाजपा ने भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में खुलासा करने को कहा था पर सत्ता में आते ही भाजपा भी मौन साध कर बैठ गई। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या तो कर दिया राम मंदिर का काम तो शुरू करा दिया पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन का वह अध्याय अभी तक नहीं खुला जिसमें यह साबित होता कि क्या गुमनामी बाबा फैजाबाद में अपना नाम छुपा कर रह रहे थे और वही सुभाष चंद्र बोस थे?

सुभाष चंद्र बोस के बारे में कहा जाता है कि उनकी विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। किंतु उनकी कोई ऐसी पहचान नहीं मिली जिससे यह साबित होता कि सुभाष चंद्र बोस ही हवाई दुर्घटना में अकाल मौत को प्राप्त हुए थे। ना उनके कपड़े, ना ही उनकी अस्थियां मिली है। जिस शरीर को उनका बताया गया था वह इतना जल चुका था की पहचान में ही नहीं आया कि यह व्यक्ति कौन है। जिसके कारण निश्चित तौर से हम नहीं कह सकते हैं कि सुभाष चंद्र बोस की मौत वायु दुर्घटना में हुई थी? आखिर यह सच कब उजागर होगा, कौन करेगा। गुमनामी बाबा जो वर्षों तक फैजाबाद में रहे और फैजाबाद में हो उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके बारे में अक्सर कहा जाता था कि यही सुभाष चंद्र बोस हैं जो पहचान छिपाकर फैजाबाद में रह रहे हैं।

कहा जाता था कि कांग्रेस कभी नहीं चाहती कि सुभाष चंद्र बोस प्रगट हों। आखिर प्रधानमंत्री पद के असली हकदार तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे। फैजाबाद के पत्रकार शीतला सिंह और अनेक गणमान्य लोगों ने यह बात जोर शोर से उठाई थी की गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस हैं, इसकी जांच कराई जाए। तत्कालीन केंद्र सरकार ने जांच भी कराई पर रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गई। इससे संदेह उत्पन्न होता है। भारतीय जनता पार्टी इस बात की सच्चाई उजागर करने की बात कहती रही है कि गुमनामी बाबा का रहस्य वह उजागर करेंगे।

भारतीय जनता पार्टी की सरकार केंद्र में आ गई और उसे एक कार्यकाल मिल गया और अब दूसरा पंचवर्षीय कार्यकाल चल रहा है फिर भी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका। इसके लिए किसको दोष दिया जाए।
कुछ लोगों का कहना है कि सुभाष चंद्र बोस विमान दुर्घटना में मरे नहीं थे। वह कांग्रेश सरकार के भय से पहचान छिपाकर रह रहे थे। गुमनामी बाबा की मौत के बाद फैजाबाद में उनके सामान से प्राप्त वस्तुओं कागजात साहित्य चश्मे आदि देखने के बाद लोगों का कहना था कि यही सुभाष चंद्र बोस हैं। सुभाष चंद्र बोस से संबंधित बहुत सी चीजें गुमनामी बाबा के पास से मिली थी। जो जांच के नाम पर सरकार के पास हैं। अनेक बार लोकसभा में यह मामला उठा है पर सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका।

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को जगन्नाथ पुरी के पास कटक में श्री जानकी प्रसाद बोस के घर उनकी पत्नी प्रभावती की कोख से हुआ था। वह अपने माता-पिता की छठवीं संतान थे। अपनी प्राइमरी शिक्षा कटक में पूरी करने के बाद सुभाष बाबू कोलकाता चले आए थे। सन 1915 में उन्होंने प्रथम श्रेणी में एफ ए की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था। अंग्रेज भारतीयों को बहुत अपमानित करते थे। यह बात सुभाष बाबू को अच्छी नहीं लगती थी। उनका खून अंग्रेजो के खिलाफ खौलता था। सुभाष बाबू के पिता चाहते थे कि सुभाष आईंइएस की परीक्षा पास कर सरकारी अफसर बने पर सुभाष बाबू को तो भारत की गुलामी बहुत बुरी लगती थी। वह अंग्रेजों की डिवाइड और रूल यानी फूट डालो राज करो की नीति से बहुत चिढ़ते थे।

सुभाष बाबू अंग्रेजों का विरोध करने के लिए कांग्रेस में आए पर गांधी जी की नीतियों के कारण उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। सुभाष बाबू क्रांतिकारी विचारधारा के थे और उन्होंने क्रांतिकारी संगठन बनाया अंग्रेजों ने उनको उनके ही घर में नजरबंद कर रखा था। 15 जनवरी 1941 को एक मौलवी का भेष बनाकर सुभाष चंद्र बोस कोलकाता से भाग निकले। वह पेशावर होते हुए काबुल नदी तक गए और फिर अफगानिस्तान पहुंचे। सुभाष चंद्र बोस की क्रांतिकारी विचारधारा का लोगों ने बहुत स्वागत किया। सुभाष चंद्र बोस इटालियन दूत के सहयोग से मास्को पहुंचे और फिर 27 मार्च को स्टालिन से मिले। स्टालिन उन दिनों रूश का शासक था। सुभाष बाबू ने भारत की आजादी के लिए स्टालिन से मदद मांगी मगर स्टालिन ने मना कर दिया। तब सुभाष चंद्र बोस 28 मार्च 1941 को विमान से बर्लिन पहुंचे और वहां के शासक हिटलर से मदद मांगी। हिटलर ने सुभाष चंद्र बोस का स्वागत किया और हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया। और हर संभव मदद की। हिटलर ने सुभाष चंद्र बोस को कई पदवी से नवाजा और वह सुभाष चंद्र को भारत का भविष्य कहता था। बर्लिन में ही सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई। किसका काम था अंग्रेजों से लड़कर भारत को आजाद कराना।

जर्मनी के बर्लिन में आजाद हिंद फौज का गठन हुआ और दुनिया के कई देशों में आजाद हिंद फौज की शाखाएं बनाई गई जिनका काम था भारत को आजाद कराना। आजाद हिंद फौज का विस्तार करने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस 20 जून 1943 को पनडुब्बी द्वारा टोक्यो गए और वहां के प्रधानमंत्री तो जो से मिले। टोक्यो में जनरल प्रताप सिंह ने पहले आजाद हिंद सेना बना रखी थी जिसमें रासबिहारी बोस भी थे। आजाद हिंद फौज के 4 ब्रिगेड थे।

5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के केपटाउन में आजाद हिंद सेना ने परेड की जिसमें घोषणा की गई कि आजाद हिंद फौज का उद्देश भारत को स्वतंत्र कराना है उस समय तक आजाद हिंद फौज में 50000 से ऊपर सैनिक और 1500 अधिकारी थे। और इनकी सदस्यों की संख्या सवा लाख के ऊपर हो गई थी 20 लाख लोगों ने सुभाष चंद्र बोस के आदर्शों पर और उनके दिखाए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस कालाकोट सफेद पेंट काली टोपी पहनते थे और बहुत गजब का भाषण देते थे। एक दिन आजाद हिंद फौज को संबोधित करते हुए नेता जी ने कहा कि भारत की भूमि बलिदान मांगती है तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। यह नारा तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। बहुत लोकप्रिय हुआ और हजारों लोगों ने खून से हस्ताक्षर कर नेताजी को प्रतिज्ञा पत्र सौंपा जिसमें कहा गया था कि हम तब तक लड़ते रहेंगे जब तक भारत आजाद नहीं हो जाता। आजाद हिंद फौज का मुख्यालय 1944 को सिंगापुर लाया गया। 4 फरवरी 1944 को सेनाओं ने भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए कूंच किया।

उसी वर्ष अगस्त में अमेरिकी सेनाओं ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों में एटम बम गिरा दिए जिसमें लाखों लोग मारे गए। जापान ने हथियार डाल दिए अमेरिकन और अंग्रेज युद्ध जीत गए। यह घटना सुभाष चंद्र बोस को बहुत खली क्योंकि उनकी सारी योजना इससे गड़बड़ा गई। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के मन में भारत की आजादी के लिए बहुत तीव्र झटपटाहट थी।

24 अप्रैल 1945 को सुभाष चंद्र बोस रंगून से बैंकॉक चले गए। 16 अगस्त के दिन सुभाष चंद्र बोस विमान से सिंगापुर से टोक्यो चले। 18 अगस्त के दिन 2 बजे यह विमान जिसमें सुभाष चंद्र बोस सवार थे ताई होक के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। कहते हैं सुभाष चंद्र बोस का शरीर जल गया और उनका देहांत हो गया उनको पहचाना नहीं जा सका। रेडियो जापान ने नेताजी की दुर्घटना की खबर 23 अगस्त 1945 को दी थी। पर बहुत लोगों का कहना था इस तरह
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अंत नहीं हुआ था। दुर्घटना के बाद वह बच गए थे और वही गुमनामी बाबा के रूप में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में आकर रहने लगे थे। गुमनामी बाबा कौन थे क्या थे वह सुभाष चंद्र बोस थे कि नहीं थे यह अब किसी को पता नहीं है। पर उनके पास से जो वस्तुएं बरामद हुई थीं वह साबित करती थीं की वही सुभाष चंद्र बोस थे।

फैजाबाद के जनमोर्चा के संपादक शीतला सिंह और सुप्रसिद्ध लेखक पत्रकार सारिका, गंगा पत्रिका तथा एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के संपादक कमलेश्वर ने एक अभियान चलाकर गुमनामी बाबा के बारे में बहुत सामग्री प्रकाशित की थी। इस पर तत्कालीन केंद्र सरकार ने एक आयोग बनाया था जिसने जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। कांग्रेस सरकार ने इस रिपोर्ट को कभी उजागर नहीं किया। कांग्रेस को लगता था कि अगर भेद खुल गया तो उनके लिए संकट पैदा हो जाएगा। भारतीय जनता पार्टी ने इसी बात को मुद्दा बनाया था कि वह जब केंद्र की सत्ता में आएगी तो सुभाष चंद्र बोस की मौत के रहस्य से पर्दा उठाएगी? पर यह पर्दा अब कब उठेगा? उठेगा भी या पटाक्षेप ही रहेगा। कौन बता सकता है। क्या नेताजी सुभाष चंद्र की मौत का रहस्य रहस्य ही रहेगा?

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