विश्वविद्यालय तो हैं शिक्षक नहीं, 6 हजार पद खाली

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विश्वविद्यालय तो हैं शिक्षक नहीं, 6 हजार पद खाली….. ऐसी विश्वविद्यालयीय शिक्षा समाज का क्या भला कर पाएगी जहां विश्वविद्यालय तो हैं पर ज्ञानदाता शिक्षक नहीं है। भारत में दुनिया के नामचीन विश्वविद्यालयों-शिक्षा संस्थानों के प्रवेश के लिए रेडकार्पेट बिछाने की तैयारी है और दूसरी तरफ घरेलू विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का टोंटा शिक्षा की गाड़ी को बढ़ने नहीं दे रहा है। गंभीर मामला है कि देश में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के एक तिहाई पद खाली चल रहे हैं, कुल स्वीकृत 18956 पदों में से 6028 पद रिक्त चल रहे हैं क्योंकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को शिक्षक नहीं मिल रहे हैं। ऐसा लगता है यूजीसी अपनी जिम्मेदारियों को संभाल नहीं पा रहा है।

यहां पर ऐसे दस राज्यों में स्थित केंद्रीय वि वि में शिक्षक पदों का संक्षिप्त ब्यौरा दे रहे हैं जहां पर शिक्षकों का भीषण अभाव है। भयावह स्थिति की एक मिसाल पेश है,जिसमें तो एक भी शिक्षक नहीं है और यह है आंध्र में स्थित के वि वि, अकल्पनीय! दु:खद शर्मनाक। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ उड़ीसा में सिर्फ बारह प्रतिशत पदों पर शिक्षक तैनात हैं, सोचा भी नहीं जा सकता कि 88 प्रतिशत पद खाली चल रहे हैं, पढ़ाई कितनी और कैसे होती होगी? नार्थ ईस्ट में त्रिपुरा यूनिवर्सिटी में 50.3 प्रतिशत पद रिक्त हैं, काफी गनीमत है। नार्थ- इस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी में ४२ प्रतिशत से ज्यादा पद खाली हैं।

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर 60 प्रतिशत से भी अधिक पद रिक्त हैं। डाॅ हरि सिंह गौड़ यूनिवर्सिटी में 39 प्रतिशत पदों पर शिक्षक हैं, 61प्रतिशत पद खाली हैं। सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ जम्मू 46 प्रतिशत से अधिक पद शिक्षकों की प्रतीक्षा में खाली चल रहे हैं। उत्तर प्रदेश में आइए – उच्च शिक्षा का प्रख्यात केंद्र रहा है इलाहाबाद, यूनिवर्सिटी ऑफ इलाहाबाद में तकरीबन 48 प्रतिशत पद रिक्त हैं।

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कर्नाटक में लगभग 43 प्रतिशत पद रिक्त हैं। और तो और, ‘दिया तले अंधेरा’ देखने के लिए कुछ पल देश की सबसे शक्तिशाली नगरी और राजधानी दिल्ली का जायजा लीजिए – बड़ा नाम है चारों तरफ यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली का, पूरा देश यहीं से चलाया जाता है, लेकिन यहां 46.4 प्रतिशत पद भरे नहीं जा सके। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए शिक्षकों के कुल 18 हजार 956 पदों की स्वीकृति मिली हुई है और इनमें से 12 हजार 928 पदों पर नियुक्तियां की जा सकीं, खाली चल रहे 6 हजार 28 पदों पर नियुक्तियां कब तक हो पाएंगी अनुमान लगाना ही गलत है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार का बयान है, नव स्थापित केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पद रिक्त रहने का कारण इनका दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित होना है। प्रोफेसर की यह दलील गले नहीं उतरती। यूनिवर्सिटी ऑफ इलाहाबाद, यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कर्नाटक सहित कई केंद्रीय विश्वविद्यालय तो दूरदराज में स्थित नहीं हैं फिर भी बड़े पैमाने पर पद क्यों रिक्त चल रहे हैं। उनका यह तर्क, कि नए स्थापित वि.वि. में नियुक्तियां नहीं होने से पद रिक्त हैं, भी कुतर्क है।

यूजीसी ने शिक्षकों की भर्ती के लिए पोर्टल’ सीयू- चयन’ लांच करके अपनी फर्ज अदायगी कर दी। प्रोफेसर कुमार का यह भी कहना है कि पिछले दो महीनों में बीस हजार शिक्षक पोर्टल पर पंजीकरण करा चुके हैं। पड़ताल करने पर सामने आया कि यूजीसी 900 वि.वि. और कोई 30 हजार कालेज की जिम्मेदारी निभा पाने में असमर्थ है, इस पर काम का जरूरत से बहुत ज्यादा बोझ है। दूसरे सरकार 1956 में मौलाना आज़ाद द्वारा संस्थापित यूजीसी के स्थान पर ‘हायर एजूकेशन कमीशन ऑफ इंडिया’ की स्थापना करने की योजना का खुलासा भी 2018 में किया था लेकिन आंतरिक गतिरोध के चलते योजना डस्टबिन में डाल दी गई। कुछ भी हो, अंततः उच्च शिक्षा की चाक चौबंद व्यवस्था नहीं होने से देश बैक गियर में जा रहा है।

प्रणतेश बाजपेयी