निर्यात पर निर्भर है चीनी मिलों का दारोमदार…

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इस वर्ष देश में 3 करोड़ टन से अधिक चीनी उत्पादन और कुल खपत 2.6 करोड़ टन रहने, पिछले चीनी सत्र 2019-20 (चीनी वर्ष अक्टूबर से शुरू होकर सितंबर में समाप्त होता है) का 1 करोड़ टन से अधिक बचा स्टाॅक, निर्यात सब्सिडी में 44 फीसद से ज्यादा कटौती और प्रमुख खरीददार देश द्वारा इस बार आयात बहुत कम किए जाने का अंदेशा है। अन्य आयातक देशों से ऊंचे मूल्य पर भरपूर निर्यात आॅर्डर ही भारतीय चीनी मिलों की दिक्कतों को और बढ़ने से रोक पाएंगे।

भारतीय चीनी उद्योग उत्पादन के मामले में बेशक विश्व में दूसरे पायदान पर खड़ा है। जहां तक ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बात है तो योगदान करने वाला यह अकेला ऐसा उद्योग है जो 5 करोड़ गन्ना किसानों की आय का स्त्रोत है। इसकी बराबरी करना तो दूर इसके करीब भी नहीं आता ब्राजील और चीन का चीनी उद्योग। समय-समय पर इसे सरकारी अंकुशों से मुक्त करने की मांग, चर्चाएं खूब हुईं, सरकारों से आश्वासन दिए गए, कई बार लगा कि अन्य उद्योगों की तरह इसे भी खुली हवा में सांस लेने का मौका बस मिलने ही वाला है। हर बार दिवास्वप्न साबित हुआ।

यही जकड़न इसमें होने वाले उतार-चढ़ाव की खास वजह है। अनिश्चतता -प्रकृति की, इससे भी भयानक सरकारी नीतियों की। पहले कभी घरेलू मांग पूरी करने के लिए आयात का मोहताज रहने वाले भारत को मीठे उद्योग ने उत्पादन आधिक्य में परिवर्तित कर प्रमुख निर्यातक और सालाना 13-14 हजार करोड़ रु. की कीमती विदेशी मुद्रा कमा कर लाता है। कर राजस्व चुकाता है अलग।‌ 30 सितंबर 2019 में खत्म चीनी सत्र 2018-19 (गन्ना पेराई के आधार पर चीनी सत्र या वर्ष अक्टूबर से शुरू होकर सितंबर में खत्म होता है) के अंत और चालू 2019-20 सत्र के शुरू होने के समय यानी 1 अक्टूबर को 1 करोड़ टन चीनी का स्टाॅक था।

चालू सत्र में अक्टूबर 2020 से 2021 जनवरी तक चार महीनों में 2 करोड़ 9 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ जोकि पिछले सत्र 2018-19 की समान अवधि में हुए उत्पादन की तुलना में 54 लाख टन अधिक है। चीनी उद्योग के अग्रणी संगठन ‘इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन’ (इसमा) ने चालू सत्र में उत्पादन का अनुमान पहले 3.10 करोड़ टन और फिर जनवरी में घटाकर 3.02 करोड़ टन कर दिया। पिछला स्टाॅक और उत्पादन मिलाकर देश में कुल 4 करोड़ टन से भी अधिक चीनी उपलब्ध रहेगी।

चालू सत्र के दौरान देश में कुल घरेलू खपत अधिकतम 2 करोड़ 60 लाख टन के स्तर पर रहने का अनुमान है इसमा का। अब बची 1.40 करोड़ टन। केंद्र सरकार ने पिछले सत्र में प्रति टन 10400 रु.की दर से निर्यात सब्सिडी दी थी, इस बार 44 फीसद कटौती कर 5800 रु. की दर से देने का निर्णय किया, इसका असर निर्यात पर पड़ेगा। अब अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर आते हैं। ब्राजील चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक दोनों है। यह अपने कुल उत्पादन का सिर्फ 30-35 फीसद घरेलू मांग को पूरा करने में खपा पाता है, बाकी मात्रा का निर्यात कर देता है।

अंतर्राष्ट्रीय बाजार विश्लेषकों ने चालू साल 2020-21 में ब्राजील में उत्पादन 40 फीसद बढ़कर 4.20 करोड़ टन से ऊपर होने का अनुमान लगाया है। जाहिर है ब्राजील निर्यात बढ़ाएगा, मूल्य प्रतिद्वंद्विता और गहराएगी। जिससे भारत की कठिनाई बढ़ेगी। उधर ईरान ने पिछले साल भारत से 11.40 लाख टन चीनी का रिकाॅर्ड आयात किया था जोकि भारत के कुल निर्यात का 20 फीसद था। इस बार स्थितियां भारत के पक्ष में बिलकुल भी नहीं हैं। ईरान के पास जरूरत से ज्यादा स्टाॅक जमा है। इसके अलावा ईरान के बैंकों के ‘वोस्त्रो’ खातों में भारतीय रुपये शेष नहीं‌ बचे हैं, ये खाते यूको बैंक और आईडीबीआई बैंक में हैं, इससे भारतीय निर्यात को झटका लगेगा।

पिछले कलेंडर वर्ष में कई खाद्य जिंसों का निर्यात भारत ने ईरान को किया था। जिनका पूरा भुगतान अब तक नहीं हो पाया। इन वजहों को देखते हुए चालू सत्र में भारतीय चीनी निर्यात घटने का अंदेशा है। आल इंडिया शुगर ट्रेड एसोसिएशन के प्रमुख पदाधिकारी ने 44-45 लाख टन चीनी निर्यात होने का अनुमान जताया है। पिछले सत्र में प्रति टन 10400 रुपये की सब्सिडी की बदौलत भारत से 57 लाख टन चीनी निर्यात कर पाना संभव हो सका था। टीआरक्यू (टैरिफ रेट कोटा) के अंतर्गत चालू सत्र में भारत 8424 टन चीनी का निर्यात अमेरिका को करेगा। भारत के विदेश व्यापार महानिदेशालय की अधिसूचना के अनुसार यह मात्रा 2021 सितंबर तक निर्यात की जानी है। अमेरिका अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए ब्राजील, मेक्सिको, डाॅमिनिकन रिपब्लिक, कोलोम्बिया, ग्वाटेमाला, आस्ट्रेलिया सहित कोई डेढ़ दर्जन उत्पादक देशों से चीनी काआयात करता है। इसने 2018-19 में 27.90 लाख टन और 2019-20 में 33.80 लाख टन चीनी आयात की।

प्रणतेश नारायण बाजपेयी